कुंभ कथाएं और फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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कुंभ कथाएं और फिल्में
प्रकाशन तिथि :09 अप्रैल 2016


एक अदालत ने सामाजिक महत्व का सवाल उठाया कि सूखे से जूझते देश में आईपीएल तमाशा कैसे जारी रखा जाता है, जिसमें पानी और बिजली का अपव्यय शामिल है। दूसरी अदालत ने खेल जारी रखने का आदेश दिया और प्रकरण की अगली सुनवाई खेल प्रारंभ होने के चौथे दिन रखी गई है। सनी देओल की फिल्म 'दामिनी' की तर्ज पर सुनवाई की डेट पर डेट लंबे समय तक दी जाएगी। यह हमारी शैली है कि निर्णय को उस समय तक मुल्तवी रखा जाए, जब तक प्रकरण का अर्थ ही नष्ट न हो जाए। क्रिकेट संगठनों में अनेक नामी-गिरामी नेता सत्तासीन है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी दिल्ली क्रिकेट संघ के अध्यक्ष हैं। अत: हुकूमत इस तमाशे को जारी रखना चाहती है। जब तक तमाशे जारी रहेंगे मूलभूत प्रश्न पर विचार ही नहीं होगा। समस्या के निदान का यह ढंग निराला देखा कि उसे समाप्त होने तक टालते रहो। श्रीलाल शुक्ल के भारतीय सामूहिक जनमानस में गहरे पैंठने वाले सर्वकालिक महान उपन्यास 'राग दरबारी' में भी एक पात्र ताउम्र मुल्तवी होते केस के लिए अदालतों के चक्कर काटता रहता है। आईपीएल तमाशा एक बड़ा व्यापार है और व्यापारी लोग इतने शक्तिशाली हैं कि उनके इशारों पर ही सारे कामकाज चलते हैं। अत: अपव्यय का दौर चलता रहेगा। यह बताना कठिन है कि भारत में क्रिकेट और सिनेमा के बीच अधिक लोकप्रिय कौन है? महेंद्रसिंह धोनी का बायोपिक निर्माण के अंतिम चरण में है। सुशांत सिंह ने केंद्रीय भूमिका अभिनीत की है। कई दशक पूर्व बाबूराम इशारा ने क्रिकेट सितारे सलीम दुर्रानी और परवीन बॉबी के साथ 'चरित' नामक फिल्म बनाई थी। क्रिकेट खिलाड़ी की भूमिका में देवआनंद की 'लव मैरिज' नामक फिल्म दशकों पूर्व बनी थी।

क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर सुभाष घई द्वारा निर्मित 'इकबाल' सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। इसमें नसीरुद्दीन शाह ने क्रिकेट संगठन में व्याप्त गंदी राजनीति के शिकार खिलाड़ी की भूमिका जीवंत की थी। चेतन भगत के एक उपन्यास में भी एक प्रतिभाशाली मुस्लिम युवा के प्राण बचाने में जुटे लोगों के साहस की कथा है। पृष्ठभूमि गुजरात में घटे एक सांप्रदायिक दंगे की थी। किसी भी फिल्म की पृष्ठभूमि खेल हो या शेयर बाजार हो उसमें निहित मानवीय संवेदनाओं के कारण वह आम दर्शक को पसंद आती है। एक तेज गेंदबाज पंद्रह गज की दूरी से दौड़कर गेंद करता है और बल्ले का किनारा लेकर एक न पकड़ में आने वाली गेंद सीमा रेखा पार कर जाती है। उस समय गेंदबाज का चेहरा वेदना से विदिर्ण हो जाता है। खिलाड़ियों की शोहरत और धन खूब प्रचारित होता है परंतु उसकी वेदना का विवरण प्रस्तुत नहीं किया जाता। अपने लंबे कॅरिअर में मध्यम गति के गेंदबाज कपिल देव निखंज कितने हजार मील दौड़े होंगे- इसका हिसाब किसी के पास नहीं है। वे संभवत: तीस हजार मील केवल अपनी गेंदबाजी के रनअप के लिए दौड़े होंगे। राकेश मेहरा की 'भाग मिल्खा भाग' में अभ्यास के दौरान बहाए पसीने को बाल्टियों में भरा दिखाया गया था। कठोर अभ्यास के समय खिलाड़ी की आंखों से आंसू भी बहते हैं और बेहिसाब बहते हैं। वे रोम के सम्राट नीरो तो नहीं जो अपने आंसुओं को संग्रहित करने का पाखंड भी रचता है। राजा और रंक के आंसुओं में हमेशा अंतर होता है, भले ही उनकी रगों में बहते खून का रंग यकसा लाल हो।

रायपुर के संजीव बख्शी के उपन्यास 'भूलन कांदा' में गांव की पंचायत के निर्णय का अभूतपूर्व वर्णन है। उसकी पटकथा की संभावनाएं टटोली जा रही है और एक संस्करण में अदालत के अहाते में रात में सोते हुए ग्रामीण वर्षा से बचने के लिए अदालत कक्ष में शरण लेते हैं और एक बच्चा जज महोदय की कुर्सी पर जा बैठता है। शायद मनुष्यों की तरह कहानियों की भी कुंडली होती है और कोई नहीं जानता कि कब वे फिल्माई जाएंगी? गुलशेर शानी की 'कस्तूरी' जो 'सांप और सीढ़ी' के नाम से भी प्रकाशित हुई है, उस पर भी फिल्म बनाने के प्रयास होते रहे हैं। उनका उपन्यास 'काला जल' भी फिल्माया जा सकता है। बस्तर का आदिवासी जीवन अनेक फिल्मों को प्रेरित कर सकता है। घोटुल परम्परा भी फिल्माने की सामग्री है। दरअसल, साहित्य के खजाने फिल्मकारों की नज़र से अछूते ही रहे हैं। फिल्मों में कथा का अकाल भी फिल्म जगत के दुरुह अर्थशास्तर द्वारा ही रचा गया है। सृजन क्षमता के बांझपन की व्यथा निराली ही है। कथा विचारों के दोहराव इस कंगाली को उभारकर रखते हैं। हर प्रांत में एक संस्कृति विभाग होता है, जिसके पास भरपूर धन भी होता है। कुंभ की तैयारी में भी अकूत धन और साधन लगे हैं। विमल राय अपनी बीमारी के दिनों में कुंभ पर एक कथा फिल्म पर काम कर रहे थे, जिसकी पूरी जानकारी गुलजार साहब को है। बिमल राय का वह सपना साकार किया जाना चाहिए। भैरप्पा के उपन्यास 'अपनी अपनी आस्थाओं के दायरे' में भी कुंभ मेले में ही सारी पहेलियों के हल छिपे हैं। बहरहाल, उज्जैन में आयोजित कुंभ तो शीघ्र ही होने वाला है परंतु इलाहबाद में होने वाले कुंभ में अभी येथष्ट समय है।