कुत्ते का ब्रह्मज्ञान / भगवान सिंह

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बात बहुत पुरानी है। उस समय कुत्ते आदमी की और आदमी कुत्तों की भाषा जानते थे और कुछ कुत्ते तो सामगान करते हुए भौंकते थे। जो लोग कुत्तों की भाषा समझ लेते थे वे कुत्तों के ज्ञान पर आदमी के ज्ञान से अधिक भरोसा करते थे। एक खास आध्यात्मिक ऊँचाई पर पहुँचे हुए कुत्ते ऐसे लोगों से उसी तेवर और तर्ज में बात करते थे जैसे ऋषियों में अपने को सीनियर माननेवाले नये स्नातकों से किया करते थे। कहते हैं उन्हीं दिनों एक ऋषिकुमार स्वाध्याय के लिए गाँव के बाहर एकान्त में बने एक जलाशय के पास गया। उसके बारे में यह तय नहीं हो पाया है कि यह दल्भ का पुत्र बक था या मित्रा का पुत्र ग्लाव। कारण, उसका नाम कुछ दुविधा के साथ था तो दल्भ का लड़का या मित्रा का लड़का ग्लाव-बको दाल्भ्यो ग्लावो वा मैत्रेयः-बताया गया है। इन दो शिनाख्तों के बावजूद उसका परिचय एक वचन में ही दिया गया है अतः सम्भावना इस बात की है कि यह दोनों का पुत्र रहा हो। ननिहाल में जन्म के कारण इसके नाना ने जन्म के समय उसका नाम सोमरस निकालनेवाला ग्राव रख दिया हो जो पुरबिया प्रभाव के कारण ग्लाव हो गया हो और जब मित्रा उसे लिये दिये ससुर के घर पहुँची हो तो उसके दादा जी ने नाना जी से अपनी हैसियत ऊँची सिद्ध करने के लिए प्यार से उसका नाम बक रख दिया हो।

सम्भव है पितृपक्ष से दिया गया नाम उसकी योग्यता को देखते हुए कुछ अधिक उपयुक्त रहा हो। जब वह उस जलाशय के किनारे टहलता हुआ रट्टा मार रहा था उसी समय उसके सामने एक सफेद कुत्ता प्रकट हुआ। वह कुत्ता या तो पिछले जन्म में सामगान की कोई पाठशाला चलाता था या इस जन्म में ही किसी सामगायक के आश्रम के आसपास मँडराता रहता था और सामगान सुनते-सुनते उसका स्वर इतना सध गया था कि ऋषियों का सामगान व्यर्थ चला जाए, उसका नहीं जा सकता था। वह कम से कम अपनी बिरादरी को देखते हुए विद्वान भी इतना हो गया था कि देश-देशान्तर में घूमता हुआ दूसरे कुत्तों को शास्त्रार्थ के लिए ललकारता रहता था। इस अनुमान का कारण यह है कि उसके प्रकट होने के कुछ ही देर बाद दूसरे कई कुत्ते उसके पास आये और बोले, “भगवन्, हमें बहुत भूख लगी है अतः आप हमारे लिए अन्न का आगान कीजिए।” इस बात की पूरी सम्भावना है कि ये कुत्ते भी आम कुत्ते नहीं अपितु उसी के शिष्य थे जो उसके साथ ही भ्रमण कर रहे थे और शास्त्रीय संकट आने पर दूसरे कुत्तों को हूट कर सकते थे। ये सभी कई दिन से भूखे थे।

उस कुत्ते ने यदि तुरत अन्नवर्षी सामगान कर दिया होता तो उसकी अपनी हैसियत को बट्टा लगता। देखने और सुननेवाले समझते कि वह उन कुत्तों का हुक्म बजा रहा है। इस भ्रामक स्थिति को टालने के लिए उसने इस आयोजन को कम से कम चौबीस घण्टे के लिए टाल देना अधिक उचित समझा। उसने आदेश के स्वर में कहा, “तुम लोग ठीक इसी समय कल यहाँ आना।”

यह बात ग्लाव और बक दोनों नामों से पुकारे जानेवाले उस ऋषिकुमार ने भी सुन ली। भूख मिटाने का यह निश्चय ही एक नायाब तरीका था। गान गाओ, भोजन की थाली सामने आ जाए। खेती-बारी और चूल्हे-चक्की की झंझट से छुट्टी। इसे जानना कुत्तों के लिए जितना जरूरी था उतना ही जरूरी ऋषियों के लिए भी था क्योंकि इस एक रहस्य का ज्ञान न होने के कारण आपदा के समय में वामदेव और विश्वामित्र को कुत्तों की अँतड़ियाँ पकाकर खानी पड़ी थीं और उषस्ति चाक्रायण को महावत के जूठे और घुने हुए उड़द।

उस कुमार को यद्यपि अलग से निमन्त्रण नहीं दिया गया था पर इस मन्त्र को जानने की उत्सुकता के कारण अगले दिन वह भी ठीक उसी समय पर वहाँ उपस्थित हो गया।

बक उर्फ ग्लाव को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे कुत्ते ठीक वेदपाठियों की तरह आचरण कर रहे थे। जिस प्रकार सामगान करनेवाले बहिष्पवमान स्तोत्र का पाठ करते हुए एक साथ परिक्रमा करते हैं, उसी तरह कुत्तों ने एक-दूसरे की पूँछ दाँतों में दबाये हुए परिक्रमा की और बैठकर हिंकार करने लगे। वे गा रहे थे :

“ओं हम खाते हैं, ओं हम पीते हैं, ओं देवता, वरुण, प्रजापति, सूर्यदेव यहाँ अन्न लाएँ। हे अन्नपते, यहाँ अन्न लाओ, अन्न लाओ, ओं।”

कहानीकार ने यह नहीं बताया है कि अन्न उसके बाद आया भी या नहीं क्योंकि कहानी यहीं पर समाप्त मान ली गयी है। पर यहाँ एक बहुत बड़ा कलात्मक रहस्य छिपा हुआ है। लोग कहते हैं कि कहानी में सब कुछ कहना जरूरी नहीं। पाठकों के अनुमान पर भरोसा करते हुए सबकुछ कहने के स्थान पर कुछ छोड़ भी दिया जा सकता है। इस सूझ को लोग आज की कहानी की देन मानते हैं। उन्हें यह पता ही नहीं कि आधुनिक कहानी के जन्मदाता होने का श्रेय भी उपनिषदकारों ने उनके युग के लिए नहीं छोड़ा है।

इस मन्त्र का प्रभाव कलिकाल में भी वही रह गया है या नहीं, इसकी परीक्षा करनी हो तो इसका आसान तरीका यह है कि पहले ऊपर के मन्त्र को शुद्ध वैदिक में सामपाठियों से पढ़ने का अभ्यास करें। मूलमन्त्र इस प्रकार है :

ओ 3 मदा 3 मों 3 पिबा 3 मों 3 देवो वरुणः प्रजापतिः सविता 2 न्नमिहा 2 हरदन्नपते 3 ऽन्नमिहा 2 हरा 2 हरो 3 मिति।

जब अभ्यास पूरा हो जाए तो एक दर्जन कुत्ते पालिए और उन्हें यह मन्त्र सस्वर कण्ठस्थ कराइए और साथ ही उनके बीच कुत्ता सुलभ दुर्भावना को दूर कराते हुए एक-दूसरे की पूँछ पकड़कर परिक्रमा करने का अभ्यास कराइए। यह काम पूरा हो जाने पर उन्हें कुछ दिन भूखा रखिए और फिर उक्त विधि से उक्त मन्त्र का पाठ करने का इशारा कीजिए और फिर नतीजा देखिए। हो सकता है मन्त्र शक्ति आज तक बची रह गयी हो। सफल हो गये तो दुनिया के भुक्खड़ों के बीच आपको जो लोकप्रियता मिलेगी उतने ही से भारत का कुछ भला हो जाएगा।