कुमायूँनी कविता / सुमित्रानंदन पंत

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महाकवि पंत की कुमायूँनी कविता
ब्लाग बैरंग से साभार
महाकवि सुमित्रा नंदन पंत द्वारा लिखी कुमायूँनी कविता

हम सुमित्रा नंदन पंत द्वारा खड़ी बोली लिखी में कविताओ से परिचित हैं, परन्तु पंत जी ने संस्कृत और कुमायूँनी में भी लिखा है जिससे हम अपरिचित हैं,

'मौन-निमंत्रण' पंत की अत्यंत लोकप्रिय कविता है, जिसमें प्रकृति के माध्यम से रहस्यसत्ता की व्यंजना की गयी है। पंत जी की सभी रचनाएँ प्रकृति-व्यपार को विषय बनाती हैं परंतु पंत जी बाह्य प्रकृति का आलम्बन छोड़कर कल्पित रूपजगत में खो जाते हैं। भावसाम्य के आधार पर उसके कल्पना-जगत में असंख्य फूल खिल जाते हैं और उसकी कवि-प्रतिभा किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं मानती।

पर्वतीय क्षेत्रों में खिलने वाल पुष्प बुरांस अनेक स्थानीय लोककथाओं को समेटे है महाकवि सुमित्रानेदन पंत ने भी श्रेत्रीय कुमायूँनी भाषा में इस पुष्प पर कुछ पंक्तियों लिखी हैं जो मुझे ब्लाग बैरंग बैरंग ...पर मिलीं इन्हे आपके साथ साझा कर रहा हूं। इस क्षेत्रीय कुमायूँनी कविता में भी प्रकृति को भावों से रंग कर नया रूप रंग और नया सार्थकता देने की अपार क्षमता है।

शब्दार्थः सारे जंगल में तेरे जैसा कोई नहीं रे कोई नहीं फूलों से कहा बुरांस जंगल जैसे जल जाता है । सल्ल है देवदार है पइंया है अयांर है (यह सब पेडों की विभिन्न किस्में है) सबके फाग में पीठ का भार है फिर तुझमें जवानी का फाग है।रगों में तेरे लौ है प्यार का खुमार है।