कुमार विश्वास शांत रहो, कोर्ट जारी है / जयप्रकाश चौकसे

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कुमार विश्वास शांत रहो, कोर्ट जारी है
प्रकाशन तिथि :17 जुलाई 2017


कुमार विश्वास को अमिताभ बच्चन ने कानूनी नोटिस भेजा है। उन पर इलज़ाम है कि उन्होंने बिना आज्ञा लिए डॉ. हरिवंशराय बच्चन की कुछ पंक्तियों को उद्‌धृत किया है। कुमार विश्वास क्षमा याचना कर चुके हैं। वर्तमान में कवियों और सृजनधर्मियों को दर्जन दो दर्जन क्षमा याचनाएं पहले से लिखकर अपनी जेब में रखना चाहिए। जाने कब, कहां और क्यों उनकी आवश्यकता पड़ जाए। क्षमा याचना को प्रिंट करा लेना चाहिए, कब तक हाथ से लिखते रहेंगे। प्राय: कवि और शायर अन्य रचनाकारों की पंक्तियां उद्‌धृत करते हैं और इसे उनका अध्ययनशील होना माना जाता है। वैदिक साहित्य में तो रचनाकार प्रारंभ ही इस बात से करता है कि उसके पूर्व इस तरह का या इससे बेहतर काम हुआ है और उसको नमन करते हुए अपनी व्याख्या प्रस्तुत कर रहा हूं। अजंता, एलोरा को गढ़ने वालों ने कभी कृति के नीचे अपना नाम नहीं लिखा है।

विश्वास से नहीं कहता परंतु ऐसी धुंधली-सी याद है कि प्रकाश मेहरा की फिल्म में एक गीत था 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है।' इस गीत को पहले हरिवंशराय बच्चन की रचना माना गया परंतु बाद में यह दावा हटा दिया गया, क्योंकि यह पारम्परिक रचना है और लोकगीत माना जाता है। उनकी अभिनीत 'सिलसिला' का एक गीत निदा फाज़ली की पंक्तियों से शुरू होता है परंतु बाद की पंक्तियां किसी और की लिखी गई हैं परंतु निदा फाज़ली से न इसकी इज़ाजत ली गई न ही कोई मुआवजा दिया गया। वे पंक्तियां थीं, 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता।' सलीम जावेद के लिखे संवादों की अदायगी अमिताभ बच्चन ने की और अब कई विज्ञापनों में उनका प्रयोग होता है तो क्या सलीम जावेद ने कोई मुकदमा कायम किया है? 'मसान' नामक फिल्म में जगह-जगह दुष्यंत कुमार की पंक्तियों का इस्तेमाल किया गया है। कहीं कोई मुकदमा नहीं कायम हुआ। अदब की दुनिया में अगर आप उद‌्धृत किए जा रहे हैं तो इसे सम्मान देना माना जाता है।

कितने ही लोगों ने बुल्लेशाह को उद्‌धृत किया है। राज कपूर की 'बॉबी' का तो एक गीत ही यूं शुरू होता है, 'बेशक मंदिर-मस्जिद तोड़ तो, बुल्लेशाह वे कहता पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ों इसमें दिलभर रहता।' उनका जन्म नाम अब्दुल शाह था और वे 1680 में जन्मे तथा 1757 में उनका निधन हुआ। खाकसार की बनाई फिल्म 'शायद' में एक प्रसंग मिलावटी शराब पीकर मरने या अंधे हो जाने का था। उसके लिए निदा फाज़ली का गीत था परंतु प्रारंभ में कासिफ इंदौरी की दो पंक्तियां थीं, 'सरासर गलत है मुझ पे इलजामे बलानोशी का, जिस कदर आंसू पिए हैं, उससे कम पी है शराब।' इसके एवज में उनके जान-पहचान वालों के परामर्श से परिवार को गेहूं इत्यादि दिया गया था। इसी फिल्म में दुष्यंत कुमार के गीत का प्रयोग किया गया, 'ये ज़िंदगी इस तरह जी नहीं जाती वह देखो उस तरफ उजाला है, जिस तरफ रोशनी नहीं जाती।' उजाला वाली पंक्ति के छायांकन में अनेक शवदाह का दृश्य था। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि हरिवंशराय बच्चन की 'मधुशाला' का प्रेरणास्रोत उमर खय्याम की रुबाइयां हैं। कुछ लोगों का तो यह भी विचार है कि हरिवंशराय बच्चन की पांच खंडों में लिखी आत्म-कथा के पहले दो खंड 'क्या भूलूं क्या याद करूं' और नीड़ का निर्माण फिर को उनकी कविताओं से अधिक लंबे समय तक याद रखा जाएगा। अदब के क्षेत्र में बहुत स्वतंत्रता है, बहुत उदारता है। हरिवंश राय बच्चन ने खय्याम की रुबाइयों का अनुवाद किया है और शेक्सपीयर के कुछ नाटकों का भी किया है।

उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं, 'बीत गई सो बात गई, जीवन में एक सितारा था, जो बहुत प्यारा था, वह टूट गया तो टूट गया पर बोलो टूटे तारों पर कब अम्बर शोक मनाता है..!' अमिताभ बच्चन ने अपने पिता की रचनाओं को कई बार पढ़ा है। संभवत: वे कुमार विश्वास को नोटिस भेजते समय इन पंक्तियों को भूल गए।

कहीं ऐसा तो नहीं कि कुमार विश्वास नरेंद्र मोदी का विरोध करते रहे हैं, इसलिए अमिताभ बच्चन ने यह कदम उठाया? यह कितने आश्चर्य की बात है कि परदे पर आक्रोश की मुद्रा से लोकप्रियता प्राप्त करने वाले बच्चन महोदय हमेशा विभिन्न सत्ताओं के साथखड़े हुए हैं। एक दौर में वे गांधी-नेहरू परिवार के निकट रहे, आजकल मौजूदा सत्ता के साथ खड़े हैं। सचमुच उनसे अधिक विलक्षण कलाकार कोई नहीं है! निदा फाज़ली की पंक्तियां हैं-, 'औरों जैसे होकर भी बाइज्जत है बस्ती में, कुछ लोगों का सीधापन है, कुछ है अपनी अय्यारी भी, जीवन जीना सहज नहीं, यह है बहुत बड़ी फनकारी भी।'