कृष्णा कपूर और 'जोकर अवधारणा' / जयप्रकाश चौकसे

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कृष्णा कपूर और 'जोकर अवधारणा'
प्रकाशन तिथि :09 अगस्त 2016


अाजकल कृष्णा राज कपूर मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने इसी अस्पताल में अरसे पहले अपने बच्चों को जन्म दिया था। कपूर परिवार ने गुजश्ता सदी में जितनी रकम इस अस्पताल में इलाज के एवज में चुकाई, उतने में वे अपने अस्पताल की इमारत बना सकते थे। शम्मी कपूर व शशि कपूर लंबे समय तक उस अस्पताल में रहे हैं। अंग्रेजों ने कुछ संस्थाएं अपने उपयोग के लिए निर्मित की थीं, जिनमें आम भारतीय व्यक्ति का प्रवेश निषिद्ध था। ब्रीच कैंडी क्लब और अस्पताल वैसी ही संस्थाएं हैं। रेस कोर्स संस्थान में सदस्य की मृत्यु के बाद सदस्यता उसके ज्येेष्ठ पुत्र को प्राप्त होती है। कुछ संस्थाओं को संचालित करने के लिए गणतांत्रिक तरीके से स्वतंत्र रखा गया है। मतदान द्वारा चुनी गईं सरकारों ने अपने वादे नहीं निभाए परंतु इसका दोष गणतांत्रिक तौर-तरीकों को नहीं दिया जा सकता। नकली करेंसी नोट बनाए जाने के कारण हम मुद्रा व्यवस्था तो नहीं बदलते। किसी प्रयोग के सफल न होने पर हम प्रयोग करना तो बंद नहीं करते।

शव-यात्रा में शामिल व्यक्ति जीवन की क्षण-भंगुरता को समझ लेता है और कुछ वस्तुओं के उपभोग से अपने को बचाता है गोयाकि चिता के साथ हम अपनी बुराइयों का भी दहन कर देते हैं परंतु यह सब 'श्मशान वैराग्य' कहलाता है, क्योंकि थोड़े समय बाद ही हम अपनी असलियत पर वापस आ जाते हैं। शुद्धिकरण की किसी भी प्रक्रिया का सारे समय अनुसरण नहीं किया जा सकता। मनुष्य पल-पल बदलता है और सतत परिवर्तन शाश्वत नियम है। कृष्णा कपूर रीवा के सामान्य परिवार से आई हैं और विवाह के समय वे मात्र सोलह वर्ष की थीं। उनके परिवार से एकदम अलग कपूर परिवार के तौर-तरीकों में शामिल होने में उन्हें थोड़ा समय लगा। कृष्णा कपूर ने कपूर परिवार की परम्पराओं का निर्वाह करते हुए कुछ नई बातों को प्रारंभ भी किया। उन्होंने समय-समय पर हवन व यज्ञ के आयोजन भी किए, जिसमें उनकी अंग्रेज देवरानी जेनीफर केंडल कपूर भी शामिल होती थीं।

कृष्णाजी ने ही यह परम्परा डालीं कि महीने में कम से कम एक बार पूरा कपूर परिवार साथ में भोजन करे तथा यह भोज बारी-बारी से तीनों भाइयों के घर पर आयोजित किया जाए। कृष्णाजी किस मिट्‌टी की बनी हैं इसका अनुमान आप इस बात से जान सकते हैं कि अपने प्रेमल पति के बार-बार अन्य महिलाओं के प्रेम में पड़ जाने को उन्होंने अपनी गरिमा अक्षुण्ण रखकर सहा और कालांतर में उनके पति की प्रेमिकाएं दरअसल कृष्णाजी के सद्व्यवहार की कायल होते हुए उनके प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करने लगीं। उनकी जीवन-शैली से प्रभावित नरगिस और वैजयंतीमाला कुछ हद तक 'कृष्णामय' हो गईं कि राज कपूर किसी भी स्री से प्रेम कर रहे हों, उसमें उनकी पत्नी की छाया और प्रभाव प्रवेश कर चुका था। अत: वे सर्वत्र कृष्णाजी को या उनके अंश को ही प्रेम कर रहे थे गोयाकि जिससे भाग रहे थे, उसी के निकट आ रहे थे। इस फिनामिना को मायथोलॉजी से जोड़ना तो नहीं चाहिए परंतु यह कहना होगा कि श्रीकृष्ण के प्रेम में पड़ी सोलह हजार गोपियों में राधा का ही अंश समाया था अर्थात श्रीकृष्ण सभी माध्यमों से गुजरते हुए भी राधामय ही रहे परंतु सामान्य धारणा तो यह है कि सभी राधाएं कृष्णमय रहीं। दोनों ही अवधारणाओं में समान बात प्रेम में एक होने का महान आदर्श है परंतु मनुष्य का अहंकार कभी यह होने नहीं देता। प्रेम के पवित्र क्षणों में भी अहंकार, लोभ, छल-प्रपंच सभी साथ रहते हैं।

बहरहाल, धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' में राधा की शिकायत कुछ इस तरह से अभिव्यक्त होती है, 'हे कृष्ण तुमने मुझे अपनी बाहों में तो बांधा परंतु अपने इतिहास से क्यों वंचित किया?' अब राधा तक यह बात कैसे पहुंचाएं कि इतिहास में व्यक्ति की लोकप्रिय छवि का वर्णन होता है, असल व्यक्ति तो हमेशा गोपनीय ही रह जाता है। 'मेरा नाम जोकर' में राज कपूर कहते हैं कि उनका हृदय इतना विशाल हो गया कि पूरी दुनिया उसमें समा गई है। यह तथ्य तो कृष्णाजी के हृदय की विराटता और अथाह करुणा का ही वर्णन करता है।