केमिकल लोचा, फितूर या प्रायोजित उन्माद / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
केमिकल लोचा, फितूर या प्रायोजित उन्माद
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2020


लॉयड सी.डगलस की फिल्म ‘द मैग्नीफिसेंट ऑब्सेशन’ का एक पात्र तेज बाइक, तेज मोटरबोट चलाने का शौकीन है। गति में ही उसकी मति रमी हुई है। वह एक दिलफेंक आशिक मिजाज खिलंदड़ व्यक्ति है। एक बार उसकी मोटरबोट दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। मछुआरे उसे कस्बे के डॉक्टर के पास ले आते हैं। डॉक्टर उसकी चिकित्सा करता है। मरीज चंगा हो जाता है, परंतु डॉक्टर की मृत्यु हृदयाघात से हो जाती है। डॉक्टर की पत्नी की मदद नागरिक करते हैं। दरअसल सफल डॉक्टर ने पहले अपनी कमाई गरीबों के बीच बांटी थी। वहां का पादरी विधवा को समझाता है कि लोग उसे उसके पति का धन लौटा रहे हैं। इसे दया न समझकर उसे अपना अधिकार समझना चाहिए।

नागरिक मोटरबोट चलाने वाले को दोषी मानते हैं। उसे बचाने के अथक परिश्रम से ही डॉक्टर की मृत्यु हुई है। सीढ़ियों से फिसलने के कारण विधवा की दृष्टि चली जाती है। मोटरबोट चलाने वाला उसका इलाज करवाता है, परंतु अपना असली परिचय छुपाए रखता है। एक शल्य चिकित्सा द्वारा विधवा को दिखने लगता है। वह जान लेती है कि उसकी सहायता वही व्यक्ति कर रहा है, जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हुई थी। फिल्म ‘फना’ में भी ऑपरेशन के बाद नायिका आतंकवादी को पहचान लेती है। वह उससे नफरत करने लगती है। खिलंदड़ व्यक्ति को उससे प्यार हो जाता है। नफरत और मोहब्बत की कश्मकश जारी रहती है। खिलंदड़ जुनून और विधवा की नफरत समान प्रमाण में जारी रहती है। नफरत की चट्‌टान पर प्रेम की एक कोंपल खिल जाती है। चट्‌टान की दरार में मिट्‌टी होती है, जिसमें कोंपल खिल जाती है। शिद्दत से किया जाने वाला प्रायश्चित प्रार्थना और प्रेम में बदल जाता है। भारतीय फिल्मकार दुलाल गुहा ने निर्माता प्रेमजी के लिए राजेश खन्ना और मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ‘दुश्मन’ बनाई थी। ट्रक ड्रॉइवर राजेश खन्ना से तेज गति के कारण दुर्घटना हो जाती है। न्यायाधीश महोदय फैसला देते हैं कि राजेश खन्ना (फिल्म का नायक) विधवा के परिवार का उत्तरदायित्व ले। अपनी मेहनत से उनके लिए रोटी अर्जित करे। आर्थिक मजबूरी के कारण विधवा को यह स्वीकार करना पड़ता है। आर्थिक सीमाएं तमाम मानवीय रिश्तों को बदल देती हैं। राजिंदर सिंह बेदी का उपन्यास ‘एक चादर मैली सी’ भी इसी तरह की रचना है। इससे प्रेरित फिल्म में हेमा मालिनी ऋषि कपूर और पूनम ढिल्लो ने अभिनय किया है। ज्ञात रहे कि शांताराम जी की ‘दो आंखें बारह हाथ’ में भी अपराधियों को सुधारने की कथा प्रस्तुत की गई थी। जीवन में दूसरा अवसर सभी को मिलना चाहिए। शाश्वत मूल्य है कि अपराध से नफरत करना चाहिए परंतु अपराधी से नहीं। यह विराट फितूर बड़ा उलझा हुआ विषय है। अपने काम के लिए जोश और पैशन सृजनधर्मी लोगों के लिए एक वरदान होता है, परंतु फितूर नकारात्मक होता है। फितूर को जे. ली थॉमसन की ‘केप फियर’ में प्रस्तुत किया गया, जिसकी प्रेरणा से यश चोपड़ा ने शाहरुख खान अभिनीत ‘डर’ बनाई। यह नकारात्मक फितूर मासूम से केमिकल लोचे से अलग है। उन्मादी भीड़ फितूर और केमिकल लोचे के कारण हिंसा नहीं करती वरन यह संकीर्णता द्वारा बनाई क्रूरता है। उन्मादी हिंसक लोग मिसगाइडेड मिसाइल की तरह विध्वंस करते हैं। स्पेन में एक खेल खेला जाता है। संकरी गलियों में उन्मादी बुल दौड़ते हैं और खिलाड़ी स्वयं को बचाते हुए भागते हैं। कुछ लोग सुरक्षित गलियों में शरण लेते हैं। वर्तमान में उन्मादी भीड़ बुल की तरह दौड़ रही है। शेर को घेरने के लिए हांका आयोजित किया जाता था। ढोल, ताशे, टीन पीटकर शेर को घेरा जाता था। सुरक्षित मचान पर बैठा अफसर निशाना साधता था। उसका अर्दली भी निशाना साधता था। अर्दली की गोली से शेर मरता है और अफसर मरे हुए शेर पर पैर रखकर फोटो खिंचवाता था। व्यवस्था भी उसका श्रेय ले रही है, जो उसने किया ही नहीं। सत्ता में बने रहने की इच्छा को फितूर कहें या उन्माद?