कैटरीना की कैफियत और बहनापा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
कैटरीना की कैफियत और बहनापा
प्रकाशन तिथि :04 अप्रैल 2018


कैटरीना कैफ अपनी छोटी बहन इसाबेल को अभिनय क्षेत्र में प्रस्तुत करने जा रही हैं और उनके मित्र सलमान खान भी उस काम में उनकी सहायता करने जा रहे हैं। कैटरीना कैफ के माता-पिता के संबंध टूट गए फिर कैटरीना कैफ भारतीय फिल्म उद्योग में अभिनय करने आईं। उन्होंने 'बूम' जैसी असफल फिल्म में एक चरित्र भूमिका निभाई थी। अपने प्रारंभिक दौर में उन्हें हिन्दुस्तानी भाषा बोलने में कठिनाई होती थी और वे नृत्य करना भी नहीं जानती थीं। उन्होंने अपने परिश्रम से अपना रास्ता बनाया और सभी सफल सितारों की नायिका बनीं। आदित्य चोपड़ा की 'धूम' में एक कठिन नृत्य के लिए उन्होंने खूब परिश्रम किया। यह रियाज कई दिन तक जारी रहा। आज वे सफल सितारा हैं और अपनी बहन का कॅरिअर बना रही हैं। वे अपनी बहनों की माता का दायित्व निर्वाह कर रही हैं। प्रारंभ से ही उन्होंने अपनी आय का कुछ भाग बचत खाते में डाला, क्योंकि वे धन के महत्व को जानती हैं और पूंजी निवेश के गुर भी सीख चुकी हैं। बरसों तक वे बांद्रा की एक इमारत की ऊपरी मंजिल पर बतौर किराएदार रहीं परंतु उन्होंने एक बंगला खरीद लिया है।

कैटरीना कैफ का जीवन परी कथा की सिन्ड्रेला की तरह रहा है। इस तरह वे अपने बायोपिक की भी हकदार हैं। प्राय: बायोपिक उम्रदराज और सेवानिवृत लोगों के ही बनाए जाते हैं। कैटरीना कैफ अभी जवान और सक्रिय हैं। 'एक था टाइगर' और 'टाइगर जिंदा है' शृंखला की अगली कड़ी भी बन सकती है। कैटरीना कैफ और रणवीर कपूर की भी गहरी मित्रता रही है। पहाड़ों पर चढ़ाई करने वाले मौसम के तेवर बदलते ही अपने बेस कैम्प में लौट आते हैं। कुछ इसी अंदाज में कैटरीना कैफ भी रणवीर कपूर के साथ मित्रता के बाद अपने बेस कैम्प में पहुंच गई हैं। युवा रणवीर कपूर तो पहाड़ी नदी की तरह बहता रहा है और नदी के किनारे घाट तो बन जाते हैं परंतु नदी किसी घाट में नहीं बंधती। दीपिका पादुकोण से भी उसकी मित्रता रही है। खबर है कि दीपिका और रणवीर सिंह का विवाह होने जा रहा है। क्या इस समारोह में रणवीर कपूर आमंत्रित होंगे? रणवीर कपूर ने एक फिल्म में ऐसे व्यक्ति का किरदार निभाया है जो अपनी सभी भूतपूर्व प्रेमिकाओं से क्षमा याचना के लिए जाता है। कभी जीवन के यथार्थ कल्पना की तरह नज़र आते हैं और कभी कल्पना भी यथार्थ बन जाती है।

ऋषि कपूर अपने पाली हिल स्थित बंगले को तोड़ चुके हैं और वहां अब चौदह माले की इमारत बन रही है, जिसके एक माले पर सिनेमाघर होगा, जिसमें परिवार के सदस्य फिल्में देख सकेंगे। रणवीर कपूर दीपिका पादुकोण और कैटरीना कैफ अभिनीत फिल्में देख सकेंगे। ज्ञातव्य है कि मधुबाला अपने अरेबियन नाइट्स नामक बंगले में तल माले पर बने सिनेमाघर में 'मुगले आजम' की वे रीलें देखती थीं, जिनमें दिलीप कुमार और उसके स्वयं के प्रेम दृश्य थे। पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता।

फिल्मकार सुधीर मिश्रा अपनी पत्नी सलूजा का बायोपिक बनाने जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि सलूजा का विवाह विधू विनोद चोपड़ा से हुआ था और तलाक के बाद उनका विवाह सुधीर मिश्रा से हुआ। ये तीनों ही पूना फिल्म संस्थान में एक-दूसरे के मित्र बने थे। रेणु सलूजा की मृत्यु कैन्सर से हुई। उनका दाह संस्कार सुधीर मिश्रा और विधू विनोद चोपड़ा ने मिलकर किया। सुधीर मिश्रा ने ही विनोद चोपड़ा को चिता में अग्नि देने का काम सौंपा था। रेणु सलूजा फिल्म संपादन में अत्यंत कुशल थीं। फिल्म निर्माण प्रक्रिया में दो टेबल महत्वपूर्ण माने जाते हैं - लेखक का टेबल और संपादन का टेबल। ज्ञातव्य है फिल्म संपादन एक यंत्र पर होता था जिसमें आगे या पीछे के दृश्य एक बटन दबाकर देखे जा सकते थे। मसलन दृश्य में पात्र के मुंह से सिगरेट का धुआं निकल रहा है तो विलोम गति में चलाने पर धुआं पीने वाले के मुंह में वापस जाते देख सकते थे। केवल इसी संपादन यंत्र पर बाहर आए टूथपेस्ट को वापस जाते देखा जा सकता था।

यथार्थ जीवन में यादें भी संपादन टेबल की तरह मनुष्य को विगत में ले जाती हैं। स्मृति बड़ी चमत्कारिक है। अच्छे दिनों की रीलें बार-बार देखी जा सकती हैं और कड़वी घटनाओं को विस्मृत किया जा सकता है जिसे फिल्म संपादन में एन.जी. शॉट्स कहते हैं। ये वे शॉट्स हैं जिन्हें कचरादान में डाल दिया जाता है। यह संपादन प्रक्रिया सेल्यूलाइड के इस्तेमाल के दौर की है परंतु अब डिजिटल बन शूट की गई फिल्मों का संपादन अलग ढंग से किया जाता है। पश्चिम के कुछ फिल्मकार पुन: सेल्यूलाइड का इस्तेमाल करने लगे हैं, क्योंकि डिजिटल पर शूट किए दृश्य जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं। सेल्यूलाइड पर बनी फिल्में लंबे समय तक सहेज कर रखी जा सकती हैं।

फिल्मों के सेल्यूलाइड पर बनाने के दौर में एक लाभ यह भी था कि चलने लायक नहीं रहने पर उसे गलाकर उसमें से चांदी निकाली जाती थी। चांदी का अंश थोड़ा ही होता था परंतु उसी चांदी को बेचकर फिल्मकारों का बुढ़ापा कट जाता था। डिजिटल में चांदी नहीं होती। बहरहाल, दो बहनों की कथा पर कैटरीना व इसाबेल को साथ लेकर भी फिल्म बनाई जा सकती है।