कैटरीना कैफ: क्या खोया, क्या पाया / जयप्रकाश चौकसे

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कैटरीना कैफ: क्या खोया, क्या पाया
प्रकाशन तिथि :11 जुलाई 2016


जब कैटरीना कैफ भारत आई थी तब उसे हिंदुस्तानी जबान अौर तहजीब की कोई जानकारी नहीं थी परंतु सात बहनों की परिवार की ज्येष्ठ कन्या के उत्तरदायित्व बहुत थे। उसने मेहनत करके जबान सीखी, तहज़ीब का इल्म हासिल किया और हिंदुस्तानी सिनेमा में अपना मकाम भी बनाया। उस पर कंजूस होने का आरोप है परंतु उसने अपनी कमाई से परिवार की मदद की और हिंदुस्तान में ही चतुराई से पूंजी निवेश किया कि लगातार कुछ आय प्राप्त होती रहे और अभिनय कॅरिअर समाप्त होने पर भी उसका गुजारा हो सके। सलमान खान ने उसकी बहुत मदद की। खबरें तो यह भी रही हैं कि उसका रणबीर कपूर से इस कदर इश्क था कि वे एक मकान में भी कुछ समय साथ रहे। यह रिश्ता क्यों टूटा इस बात पर दोनों ने गरिमामय खामोशी बनाए रखी है और अलगाव के बाद भी अनुराग बसु की 'जग्गा जासूस' के लिए साथ में शूटिंग की है। उस फिल्म के प्रदर्शन की तारीखें घोषित होती रही हैं परंतु अब शायद अगले वर्ष ही प्रदर्शित हो। फिल्म में पूंजी लगाने वालों के प्रयास अभी भी चल रहे हैं कि इसी वर्ष नवंबर में फिल्म प्रदर्शित हो जाए। अनुराग बसु महेश भट्‌ट के स्कूल में प्रशिक्षित हुए हैं और वहां किफायत से फिल्में बनाई जाती हैं। जग्गा जासूस के लिए बहुत शूटिंग की गई है और धन भी खर्च हुआ है।

अनुराग बसु 'बर्फी' जैसी कठिन फिल्म बना चुके हैं और वह कामयाब भी हुई है। रणबीर कपूर ने उस भूमिका को स्वीकार करके साहस का काम किया था। 'जग्गा जासूस' में वे नायक होने के साथ ही उसके निर्माण में भागीदार भी हैं। अत: उसका प्रदर्शन व सफलता उनके लिए भी जरूरी है। रणबीर कपूर को अनुराग बसु के साथ ही इम्तियाज अली पर बहुत भरोसा है और 'तमाशा' की असफलता से भी वे विचलित नहीं है। इरशाद कामिल ने इम्तियाज की सभी फिल्मों के गीत लिखे हैं और उन्होंने इत्मियाज अली को साहिर लुधियानवी का बायोपिक बनाने का इसरार भी किया है। इस बीच कोई अन्य निर्माता भी साहिर पर फिल्म बनाने का प्रयास कर रहा है। साहिर लुधियानवी व अमृता प्रीतम का इश्क प्रसिद्ध रहा है और यह भी एक फिल्म का विषय हो सकता है। बहरहाल शेयर बाजार की ओर आकृष्ट इस दौर में शायर का बायोपिक बनना मुमकिन नज़र नहीं आता। बाजार शासित इस कालखंड में जीवन मूल्यों से अधिक जोर चीजों की कीमत पर है। आज साध्य से अधिक मूल्य साधनों का है। गांधीजी का विश्वास तो यह था कि पवित्र साधनों से ही साध्य प्राप्त करना चाहिए। आज करेंसी नोट पर गांधीजी का चित्र अंकित रहता है परंतु उनके जीवन मूल्य हम पूरी तरह भूल चुके हैं।

गालिब का एक शेर है, 'गारत गरे नामूष न हो गर हवा से जर क्यों शाहिदे गुल बाग से बाजार में आवे।' कमाल है कि इतने वर्ष पूर्व शायर गालिब ने इस दौर को भाप लिया था। अगर अमीरों को अपने घर के गुलदान में फूल सजाने का शौक न जागा होता तो फूल बगीचे में ही अपनी खुशबू बिखरते, न वे तोड़े जाते,न बाजार में बिकते! अब तो बाजार का चलन है कि फूलों से घर के गुलदान सजाए जाएं जबकि उनकी सुगंध को महूसस करने की कूवत भी हम खो चुके हैं।