कैफियत (विकलांग श्रद्धा का दौर) / हरिशंकर परसाई

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कुछ चुनी हुई रचनाएँ इस संग्रह में हैं। ये 1975 से 1979 तक की अवधि में लिखी गई हैं। 2-4 पहले की भी हो सकती हैं। पिछले सालों में मैंने लघुकथाएँ अधिक लिखी हैं। वे इस संग्रह में हैं।

पिछले 5 सालों में दो घटनाएँ महत्त्वपूर्ण हुईं—1975 से राजनीतिक उथल-पुथल और 1976 में मेरी टाँग का टूटना। राजनीतिक विकलांगता और मेरी शारीरिक विकलांगता।

1974 में ‘संपूर्ण क्रांति’ नाम से गैरकम्युनिस्ट दलों का आंदोलन चला। जून 1975 में आपात्काल लगा। 1976 के अंत में आपात्काल उठा और मार्च 1977 में आम चुनाव हुआ। कांग्रेस हारी। 5 गैरकम्युनिस्ट गुटों के गठबंधन से ‘जनता पार्टी’ बनी और मोरारजी भाई के नेतृत्व में केंद्रीय सरकार बनी।

इसे इन लोगों ने ‘दूसरी आजादी’ कहा। जनता सरकार ने पिछली सरकार के कार्यों की जाँच के लिए कमीशन बिठाए। संपूर्ण क्रांति, आपात्काल, जनता पार्टी सरकार, जाँच कमीशन के बारे में मेरे अपने विचार रहे। ये विचार मैंने खुलकर प्रकट किए। बहुत लेखक दूसरे विचार रखते हैं। कौन सही है, कहा नहीं जा सकता।

मैंने इस संदर्भ में लिखी कुछ रचनाएँ इस संग्रह में दी हैं।

‘तीसरी आजादी का जाँच कमीशन’ के अंतर्गत तीन रचनाएँ ऐसी हैं। जाँच कमीशन का काम रोज सघन प्रचार के साथ जिस तरह होता वह हास्यपद हो गया है। इस दौर में चरित्रहीन भी बहुत हुआ। वास्तव में यह दौर राजनीति में मूल्यों की गिरावट का था। इतना झूठ, फरेब, छल पहले कभी नहीं देखा था। दग़ाबाजी संस्कृति हो गई थी। दोमुँहापन नीति। बहुत बड़े-बड़े व्यक्तित्व बौने हो गए। श्रद्धा सब कहीं से टूट गई। इन सब स्थितियों पर मैंने जहाँ-तहाँ लिखा। इनके संदर्भ भी कई रचनाओं में प्रसंगवश आ गए हैं।

आत्म-पवित्रता के दंभ के इस राजनीतिक दौर में देश के सामयिक जीवन में सबकुछ टूट-सा गया। भ्रष्ट राजनीतिक संस्कृति ने अपना असर सब कहीं डाला। किसी का किसी पर विश्वास नहीं रह गया था-न व्यक्ति पर न संस्था पर। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का नंगापन प्रकट हो गया। श्रद्धा कहीं नहीं रह गई। यह विकलांग श्रद्धा का भी दौर था। अभी भी सरकार बदलने के बाद स्थितियाँ सुधरी नहीं। गिरावट बढ़ रही है। किसी दल का बहुत अधिक सीटें जीतना और सरकार बना लेना, लोकतंत्र की कोई गारंटी नहीं है। लोकतांत्रिक स्परिट गिरावट पर है।

मेरी टाँग टूटना भी एक व्यक्तिगत आपात्काल था, जो मेरी मानसिकता पर छाया रहा। इस मानसिकता से मैंने एक से अधिक निबंध और कहानियाँ लिखीं। इस दुर्घटना के संदर्भ भी कई जगह आ गए हैं। राजनीतिक और व्यक्तिगत विक्लांगता की प्रतिक्रिया जिस अभिव्यक्ति की प्रेरणा हुई, मैंने उसे पुनरावृत्ति की परवाह किए बिना, प्रकट कर दिया है।

एक लंबी फैंटेसी मैंने धारावाहिक शुरू की है—रिटायर्ड भागवान की कथा।

इसकी भूमिका एक अलग निबंध ही है, जो इस संग्रह में दे दिया गया है।

हरिशंकर परसाई