कोक्कास बढ़ई / जगदीशचन्द्र जैन

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शूर्पारक (सोपारा, जिला ठाणा) नगर में कोक्कास नामक एक बढ़ई रहता था।

एक बार शूर्पारक में दुर्भिक्ष पड़ा और कोक्कास उज्जयिनी में जाकर रहने लगा।

कोक्कास एक कुशल शिल्पकार था। उसने यन्त्रमय कबूतर तैयार किये। इन्हें वह राजभवन में छोड़ देता, और वहाँ वे गन्धशालि (एक प्रकार के सुगन्धित चावल) चुगकर लौट आते।

एक दिन कोठरियों में जाकर राजा से निवेदन किया कि महाराज, कबूतर कोठार के सब चावल खा जाते हैं।

राजा ने कबूतरों के मालिक की खोज में आदमी भेजे और वे कोक्कास को पकड़कर राजा के पास ले आये।

राजा कोक्कास की शिल्पकला देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उसे अपने यहाँ रख लिया।

एक बार कोक्कास ने आकाश में उड़नेवाला एक सुन्दर गरुड़-यन्त्र बनाया। राजा अपनी महारानी को यन्त्र में बैठा आकाश की सैर कर बड़ा खुश होता। जो राजा उसकी आज्ञा न मानते, उनसे वह कहता कि यदि तुम लोग मेरी आज्ञा में न चलोगे तो आकाश-मार्ग से आकर मैं तुम्हें मार डालूँगा।

राजा अपनी महारानी को लेकर रोज आकाश की सैर करने जाता। अपनी अन्य रानियों को वह कभी विमान में नहीं बैठाता था, अतएव वे महारानी से ईर्ष्या करती थीं।

एक दिन उन्होंने यन्त्र को पीछे लौटाने वाली कील को कहीं छिपा दिया।

राजा महारानी को विमान में बैठाकर चल दिया। उड़ते-उड़ते जब विमान बहुत दूर निकल गया, और उसे पीछे लौटाने की आवश्यकता हुई तो मालूम हुआ कि कील गायब है। विमान बड़े वेग से जा रहा था, उसके पंख टूट गये और वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।

विमान कलिंग देश की भूमि पर गिरा। परन्तु खैर हुई कि किसी को चोट नहीं लगी। विमान को ठीक करने के लिए कोक्कास औजार लेने के लिए नगर में गया। उसने देखा कि एक रथकार रथ बना रहा है। रथ का एक पहिया बन चुका है, दूसरा बनना बाकी है।

कोक्कास ने रथकार से औजार माँगे। रथकार ने कहा, ‘‘ये औजार रियासत के हैं, इन्हें बाहर ले जाने का हुक्म नहीं, अतएव मैं तुम्हें अपने औजार घर से लाकर देता हूँ।’’ यह कहकर रथकार औजार लेने चल दिया।

इस बीच में कोक्कास ने उसके अधूरे पहिये को बनाकर तैयार कर दिया।

रथकार ने देखा कि वह पहिया ऊपर कर देने से ऊपर उड़ने लगता है, नीचे कर देने से नीचे गिर जाता है, तथा उलटा रख देने से गिरता नहीं, जबकि उसके बनाये हुए पहिये में ये विशेषताएँ नहीं थीं।

रथकार समझ गया कि अवश्य ही वह कोक्कास होना चाहिए।

वह कुछ बहाना बनाकर वहाँ से चला गया। उसने जाकर राजा को खबर दी कि कोक्कास आया है।

राजा ने उसे तुरन्त पकड़वा मँगाया और खूब पिटवाया।

कोक्कास ने सब हाल सच-सच बता दिया।

कलिंगराज ने राजा और रानी को गिरफ्तार कर बन्दीगृह में डाल दिया।

कलिंगराज ने कोक्कास को आज्ञा दी कि वह उसके तथा राजकुमारों के रहने के लिए सात तले का एक सुन्दर भवन बनाए।

कोक्कास ने शीघ्र ही भवन बनाकर तैयार कर दिया।

उसने उज्जयिनी में राजकुमार के पास शकुनयन्त्र-द्वारा समाचार भेजा कि वह शीघ्र ही कलिंग पर चढ़ाई कर दे, और अपने माता-पिता को छुड़ाकर ले जाए।

कलिंगराज अपने पुत्रों के साथ नवनिर्मित भवन में आनन्दपूर्वक समय व्यतीत कर रहा था कि इतने में उज्जयिनी के राजकुमार ने कलिंग को चारों ओर से घेर लिया और उस पर अधिकार कर लिया।