क्या जिंदगी सचमुच हसीन है? / जयप्रकाश चौकसे

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क्या जिंदगी सचमुच हसीन है?
प्रकाशन तिथि : 09 मई 2019


चुनावी भाषणों में कविताएं उद्‌धृत की जा रही हैं गोयाकि पढ़े-लिखे लोगों को वेतन देकर काम पर रखा जा रहा है। कुछ लोग महाभारत के अंश अपने भाषणों में इस्तेमाल कर रहे हैं। सत्य के लिए कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध में दोनों पक्षों ने झूठ का सहारा लिया था। यूरोप के विशेषज्ञ कहते हैं कि जो भी महाभारत में वर्णित नहीं, वह भारत में कभी घटा ही नहीं गोयाकि सत्य के लिए लड़े गए युद्ध में झूठ एक साधन था। इसके बावजूद 'सत्यम शिवम सुंदरम' हमारा स्थायी प्रलाप है।

कमलेश्वर के उपन्यास 'काली आंधी' से प्रेरित गुलजार की संजीव कुमार और सुचित्रा सेन अभिनीत 'आंधी' में एक गीत कुछ इस तरह था, 'आली जनाब वोट मांगने आए हैं, पांच सालों का हिसाब साथ लाए हैं'। गीत का आशय यह था कि कुछ किया नहीं और कुछ करने का भोंडा स्वांग मात्र रचा। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कभी सवैतनिक भाषण लिखने वाले नहीं रखे। वे अपने मुख्यमंत्रियों को प्रति माह दो पत्र लिखते थे। यह सब लेखन प्रकाशित किया जा चुका है और किताबें भी उपलब्ध हैं।

याद आता है कि फिल्म 'आंधी' में नेता के सलाहकार की भूमिका ओमप्रकाश ने अभिनीत की थी। वे अपने साथ शराब का पव्वा रखते हैं, जिस पर दवा का लेबल और खुराक के निशान अंकित होते हैं। वे अपने नेता पर पत्थर फिंकवाते हैं और सहानुभूति की लहर पैदा करते हैं। वर्तमान में भी इस तरह के 'विशेषज्ञ' सवैतनिक तैनात होते हैं। दरअसल, चुनाव प्रचार बेरोजगारी को दूर करता है। कुछ समय के लिए लोग कामकाज प्राप्त कर लेते हैं। चुनाव में स्कूलों की बस में लादकर किराए की भीड़ जुटाई जाती है। स्कूल के मालिक आज भी अपनी बसों का किराया मिलने का इंतजार कर रहे हैं।

चुनाव परिणाम के दिन अवाम टेलीविजन और एफएम रेडियो से चिपका रहता है। मनोहर श्याम जोशी ने कहा था कि हमें सारा समय चुनाव चुनाव खेलना चाहिए और काल्पनिक परिणाम जानने में अवाम को उलझाए रखना चाहिए। यह चुनाव नामक खिलौना हमें सदियों के संघर्ष के बाद मिला है। इसे तोड़कर भी हम इससे खेलते रहेंगे। 'टूटे हुए खिलौनों से इतना प्यार किसलिए' यह गीत देव आनंद और ऊषा किरण अभिनीत अमिया चक्रवर्ती की फिल्म 'पतिता' का है। राज कपूर केदार शर्मा के सहायक के रूप में प्रचारित हैं परंतु स्वयं उनका मानना था कि अमिया चक्रवर्ती का सहायक रहते हुए उन्होंने बहुत कुछ सीखा है। राज कपूर बंगाली भाषा जानते थे, इसलिए अमिया चक्रवर्ती को उन्हें अपना सहायक रखने में सुविधा थी।

आरके नैय्यर ने फिल्म बनाई थी 'यह जिंदगी कितनी हसीन है', जिसमें मोतीलाल ने ऐसे नेता की भूमिका अभिनीत की थी, जिसने अपने प्रतिद्वंद्वी के सबसे नजदीकी सहयोगी के रूप में अपना आदमी तैनात कर दिया था। अशोक कुमार ने प्रतिद्वंद्वी की भूमिका अभिनीत की थी। अशोक कुमार अहिंसा के हामी दिखाई गए हैं और मोतीलाल को हिंसा पर एतबार है। इस फिल्म में अशोक कुमार अपना कत्ल करने आए व्यक्ति को स्वयं रिवॉल्वर देते हैं। उसे बताते हैं कि उसकी नियुक्ति के दिन से ही वे जानते थे कि वह किसका आदमी है और क्या करना चाहता है। संभवत: फिल्म का यह दृश्य उस सत्य घटना से प्रेरित है जब मुंबई से पुणे जाते समय गांधी पर हमले का प्रयास हुआ और पकड़े गए हमलावर को गांधीजी ने छोड़ देने का आग्रह किया था।

इस तरह आरके नैय्यर को पहली राजनीतिक फिल्म बनाने का श्रेय है। जरा फिल्म के टाइटल पर गौर फरमाएं 'ये जिंदगी कितनी हसीन है'। क्या स्वतंत्रता प्राप्त करने के लगभग सात दशक व अनगिनत चुनावों के बाद अवाम के लिए जिंदगी हसीन है? कोई चुनाव परिणाम इस प्रश्न का सही उत्तर नहीं दे सकता। सबकुछ निर्भर करता है आम आदमी की स्वतंत्र एवं निर्भय विचार प्रक्रिया पर।