क्या हालचाल है? / राजकिशोर

Gadya Kosh से
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वह मेरे प्रिय मित्रों में एक था। बहुत दिनों के बाद उससे मुलाकात हुई थी। उसने पूछा, क्या हालचाल है? मैंने जवाब दिया, सब ठीक-ठाक है। वह हँसने लगा, खाक ठीक-ठाक है? सुना, पिछले साल तुम्हारे छोटे भाई की मृत्यु हो गई। मैंने कहा, हाँ, उसकी दोनों किडनियाँ फेल हो गई थीं। वह थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, और तुम्हें अपना मकान बेचना पड़ा? दिल्ली छोड़ कर तुम गाजियाबाद चले गए हो। मैंने स्वीकार किया, हाँ, दिल्ली का मकान अच्छे दामों पर जा रहा था। हमने सोचा, इसे बेचकर सस्ते में गाजियाबाद में मकान ले लें। रिटायर होने के बाद कहीं भी रहो, क्या फर्क पड़ता है। उसने आगे पूछा, सुना है, भाभी जी आजकल चल-फिर नहीं पातीं। बेड पर ही पड़ी रहती हैं। मुझे कहना पड़ा, दरअसल, उसका गँठिया बहुत बढ़ गया है। कोई भी दवा काम नहीं कर रही है। इस पर भी वह शांत नहीं हुआ। पूछा, और तुम्हारा बेटा जर्मनी चला गया है। वहीं उसने शादी भी कर ली है। मैंने स्वीकार किया, तुम्हारी सूचना सही है। छह-छह महीने तक उसका ईमेल नहीं आता। आता भी है, तो मुख्तसर-सा - उम्मीद है, आप लोग मजे में हैं। दफ्तर से छुट्टी नहीं मिलती। इंडिया आने का प्लान बनाता रह जाता हूँ।

मित्र हँसने लगा, फिर भी तुम कहते हो, सब ठीक-ठाक है? लानत है तुम पर। मैंने जवाब दिया, यार, इतने दिनों के बाद तो मिले हो। मैंने सोचा, अपनी मुसीबतें बता कर तुम्हें बोर क्यों करूँ। थोड़ी देर बाद चलते-चलते उसने कहा - तुमने मेरा हाल नहीं पूछा? मैंने कहा, चुस्त-दुरुस्त आदमी हो। सब ठीक-ठाक ही होगा। वह बोला, अभी कुछ दिन दिल्ली में ही हूँ। सारा किस्सा अगली मुलाकात में बताऊँगा। अभी इतना ही जान लो कि हैदराबाद वाली मेरी नौकरी छूट गई है। तीन महीने से कोशिश कर रहा हूँ, पर नई नौकरी नहीं खोज पाया हूँ। इसी सिलसिले में दिल्ली आना हुआ। पर यहाँ भी गुंजाइश दिखाई नहीं पड़ती।

बाई-बाई करता हुआ वह चला गया। उसके लिबास और चलने के अंदाज से लगा जैसे वह किसी फैशन शो की अध्यक्षता करने जा रहा हो।

यह हम दो मित्रों की मुलाकात थी। सोचो तो यह किन्हीं दो मित्रों की मुलाकात हो सकती है। थोड़ा और सोचो, तो यह किन्हीं दो व्यक्तियों की मुलाकात हो सकती है। ऐसी मुलाकातों की विडंबना यह है कि जब क ख से पूछता है कि क्या हालचाल है, तो क्या वह वाकई ख का हालचाल जानना चाहता है? ऐसा नहीं है कि उसे ख से कोई मतलब नहीं है। लेकिन जब क उसका हालचाल पूछता है, तो मईज एक शिष्टाचार निभा रहा होता है।

जरा सोचिए, जवाब में आप अपना पूरा हालचाल बताने लग जाएँ, तो पूछने वाले पर क्या गुजरेगी? अगर वह कुछ कम शिष्ट हुआ तो कहेगा, मैं अभी जरा जल्दी में हूँ। इस बारे में बाद में बात करूँगा। अगर वह शिष्ट हुआ, तो बात-बात पर 'अच्छा! अच्छा!' कहता रहेगा और थोड़ी देर बाद उसके चेहरे पर यह लिखा हुआ मिलेगा कि यार, कब तक बोर करोगे? वह बहुत शिष्ट हुआ, तो काफी देर तक धैर्यपूर्वक सुनता रहेगा, लेकिन सिर्फ सुनता ही रहेगा। वास्तव में उसका ध्यान कहीं और भटक रहा होगा। इसकी कल्पना आप स्वयं कर लें कि वह अशिष्ट हुआ, तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी। सभी शिष्ट लोग एक जैसे होते हैं, पर अशिष्ट लोगों में विविधता दिखाई देती है। शिष्टाचार का एक शास्त्र है, पर अशिष्टता हमेशा अराजक होती है। एक को अर्जित करना होता है और दूसरे का आविष्कार।

इसीलिए जब हालचाल पूछे जाने पर कोई 'सब ठीक-ठाक है' कहता है, तो वह प्रश्न से पलायन नहीं करना चाहता है। वह जानता है कि आप सचमुच उसका हालचाल नहीं जानना चाहते, बस शिष्टाचार निभा रहे हैं। इसीलिए 'सब ठीक-ठाक है' कह कर वह शिष्टाचार का जवाब शिष्टाचार से देता है। वह जानता है कि अगर वह सचमुच अपना हाल-चाल बताने लगा, तो आप उसे छोड़ कर उठ भागेंगे। समझिए कि वह एक तरह से आप पर करुणा करता है। वैसी ही करुणा, जैसी आपने उसके प्रति की थी।

बहुत कम लोग होते हैं, जो 'सब कुछ ठीक-ठाक होने' का दावा कर सकते हैं। सच पूछिए तो किसी का हाल ठीक-ठाक नहीं होता। इस धरती पर कोई ऐसा जूता नहीं बना जो कहीं न कहीं काटता न हो। दिनकर के शब्दों में कहा जाए तो, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है; उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता, और फिर बेचैन हो जगता न सोता है। धरती को मृत्यु लोक कहने के बजाय अगर चिन्ता लोक कहा जाए, तो ज्यादा सही होगा। लेकिन स्वर्ग भी चिन्ता-विहीन लोक है, इसका प्रमाण नहीं मिलता। वहाँ भी सत्ता खोने की चिन्ता होती है, एक-दूसरे से प्रतिद्वंद्विता होती है और बीच-बीच में शान्ति भंग होने लगती है। अप्सराएँ भी इन समस्याओं से मुक्त नहीं हैं। उर्वशी, मेनका और रंभा की कथाओं से तो यही जाहिर होता है। आजकल देवताओं के बीच क्या चल रहा है, इसकी खबर नहीं आती, इसलिए उनके जीवन के बारे में हम भ्रम में पड़े रहते हैं। वैसे, अगर 'इतिहास का अन्त' मुहावरा किसी सन्दर्भ में सत्य है, तो देवताओं के सन्दर्भ में ही। वे चिर काल तक एक ही स्थिति में रहते हैं। अमेरिका अपने को पृथ्वी का एकमात्र देवता समझता है, क्या इसीलिए उसने इतिहास के अन्त की घोषणा कर दी है? लेकिन उसका अपना हालचाल ही कौन-सा ठीक है?