क्रिकेट विश्वकप: अर्थव्यवस्था और पर्यटन / जयप्रकाश चौकसे

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क्रिकेट विश्वकप: अर्थव्यवस्था और पर्यटन
प्रकाशन तिथि : 09 जुलाई 2019


दशकों पूर्व देव आनंद और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म 'लव मैरिज' में नायक क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में प्रस्तुत किया गया है परंतु पहले दृश्य के बाद क्रिकेट का कोई विवरण फिल्म में नहीं है। सन् 2000 में आमिर खान और आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'लगान' को क्रिकेट प्रेरित फिल्म कहा जा सकता है परंतु इसका मूल साधनहीन व्यक्ति की साधन संपन्न पर जीत है।

दरअसल इसी फिल्म से आमिर खान का कायाकल्प हुआ है और उन्होंने सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में रचना प्रारंभ किया। 'ठग ऑफ हिंदोस्तान' में वे रास्ते से भटक गए थे, परंतु हर व्यक्ति का कभी-कभी भटकना मुमकिन है। हर मोड़ पर बहकने का डर बना रहता है। अब क्रिकेट एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है। एक दौर में खिलाड़ी को कपड़ों की धुलाई के नाम पर प्रति मैच मात्र 300 रुपए दिए जाते थे परंतु अब वे करोड़ों में खेल रहे हैं। आईपीएल तमाशा क्रिकेट ने यह परिवर्तन प्रस्तुत किया है। विराट कोहली विश्व के अमीरों की सूची में शामिल कर दिए गए हैं। इसी के साथ क्रिकेट अब बारहमासी हो चुका है। पहले यह केवल शीत ऋतु में खेला जाता था। अब तो ग्रीष्म की तपती दोपहर में भी खेला जाता है, क्योंकि शीतल पेय बनाने वाली कंपनियां प्रायोजक हैं। हजारों गांवों में बिजली नहीं पहुंची परंतु लाखों वॉट बिजली और करोड़ों लीटर पानी इस खेल में जाया किया जाता है। बाजार और विज्ञापन की ताकतें इस कदर शक्तिशाली हैं कि इंग्लैंड के क्रिकेट मैदानों के नीचे नलियां बिछाकर पानी की निकासी की गई है ताकि उसकी आद्रता से गेंद घूमे नहीं। पिच क्या मनुष्य तक का चरित्र बदला जा रहा है। टीमें पहाड़ सा स्कोर खड़ा करें क्योंकि दर्शक यह पसंद करते हैं। उन्हें कम रनों के खेल में अधिक आनंद नहीं आता। कभी समानता आधारित रहे इस खेल को अब बल्लेबाजी का स्वर्ग बना दिया गया है। एक अच्छी बात यह सामने आई है कि अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे साधनहीन देशों की टीमों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। अफगानिस्तान ने भारत की टीम को लगभग पराजित कर दिया था परंतु कदाचित अपनी अप्रत्याशित जीत के रोमांच से थरथराते तीन खिलाड़ी आखिरी ओवर में अपना विकेट गवां गए। कभी-कभी जीत को सामने पाकर साधनहीन व्यक्ति आतंकित हो जाता है।

दक्षिण भारत में बनी एक फिल्म में एक कस्बे के लोग निर्मम हुक्मरान के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करते हैं। अंतिम दृश्य में जालिम निहत्था हुक्मरान घुटने टेक रहा है और गरीब क्रांतिकारी के हाथ में तलवार है परंतु सदियों से गुलामी सहते व्यक्ति के अवचेतन में इतना भय समाया हुआ है कि वह तलवार फेंक देता है। 'मैट्रिक्स' फिल्म में साहसी अवतार में आम आदमी प्रकट हुआ है परंतु अपनी शक्ति और अपने जन्म के उद्देश्य से अपरिचित वह जालिम हुक्मरान की गुलामी करने लगता है। कितने महान समुद्र मंथन से गणतंत्र व्यवस्था का उदय हुआ था परंतु उससे निकले अमृत पर अब चुनिंदा लोगों का अधिकार हो गया है।

ज्ञातव्य है कि वर्तमान में इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, परंतु विश्वकप के कारणों से अधिक पर्यटक इंग्लैंड पहुंचे हैं। इस कारण अर्थव्यवस्था संभल रही है। इंग्लैंड में पर्यटक हमेशा आते रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को बड़े जतन से संजोए रखा है। आज भी शेक्सपियर का निवास इस तरह रखा गया है कि वे अपने आगमन पर पुन: लिखना प्रारंभ कर सकते हैं। इंग्लैंड के शहर विकसित हैं परंतु उनका कस्बाई क्षेत्र आज भी अपनी गरिमा और परंपरा को छाती से चिपकाए हुए है। हमारे किले खंडहर बन गए हैं और ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज गुम हो गए हैं। शास्त्रीय संगीत के वाद्य यंत्र खोजने पर भी नहीं मिल पा रहे हैं। मां सरस्वती के हाथ की वीणा जाने कहां चली गई। अब तो उनके हाथ बहीखाता थमाने का प्रयास हो रहा है।

इतिहास प्राय: विजेता के दृष्टिकोण से लिखा गया है परंतु कुछ प्रामाणिक घटनाओं को भी कपोल कल्पित बताया जा रहा है। चुनावी विजय वाले क्षेत्र की सीमा का विस्तार किया जा रहा है और हार जाने वाले भूप्रदेश के हिस्से घटाए जा रहे हैं। इस तरह भौगोलिक सीमाओं को भी बदला जा रहा है। इतिहास पुन: लिखवाया जा रहा है, भूगोल में भी परिवर्तन किया जा रहा है। जीवन मूल्य भी बदल गए हैं। 'अंधेरे की गोद में दुबका है इतिहास, भूगोल का प्रकाश सीमित किया जा रहा है, मनुष्य की धुरी पर ही घूमती है पृथ्वी, इतिहास और भूगोल।'