क्रूरता के कालखंड में 'प्रेम' की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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क्रूरता के कालखंड में 'प्रेम' की वापसी
प्रकाशन तिथि :14 नवम्बर 2015


सूरज बड़जात्या की सलमान खान अभिनीत 'प्रेम रतन धन पायो' एक अत्यंत मनोरंजक फिल्म है और राजश्री के सात दशक पुराने पारिवारिक मूल्यों का महिमा गान वर्तमान काल में पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण इसलिए है कि आर्थिक उदारवाद के बाद परिवारों में स्वार्थ की दीवारें खड़ी हो गईं और भारतीय समाज हजारों वर्षों से पारिवारिक मूल्यों के कारण ही सारे आक्रमण, अतिक्रमण और विविध मुखौटों का इस्तेमाल करने वाली क्रूरता से अपने को और देश को बचाता आया है। आज रिश्तों में कड़वाहट आ गई है और बाजारवाद तथा उपभोक्ता अपसंस्कृति के व्यापार के लिए विभाजित परिवार आवश्यक हैं। परिवार जितनी अधिक इकाइयों में बंटता है, उतने अधिक फ्रिज, कारें, दोपहियां वाहन इत्यादि बिकते हैं। विज्ञापन तंत्र बाजार का हिस्सा है और वह अनावश्यक वस्तु्ओं की खरीदी के हवन में घी का काम कर रहा है। इन सब बातों का सूरज ने प्रचार नहीं किया, उसने केवल मनोरंजन किया है और मनोरंजन की सतह के नीचे ये तथ्य प्रवाहित हैं।

सूरज ने अपनी प्रेम कहानी को प्रस्तुत करने के लिए उन सामंतवादी परिवारों की पृष्ठभूमि ली है, जिहोंने सामंतवाद की समाप्ति पर अपना धन उद्योग-धंधों में लगाया, विदेशों में पूंजी निवेश किया परंतु अपने घर में उन्होंने सामंतवादी परम्पराअों का निर्वाह भी किया गोयाकि राज्य नहीं है परंतु ज्येष्ठ युवराज का राजतिलक कराना और शादियां भी अपने तरह के परिवारों में करना। क्या सूरज ने यह पृष्ठभूमि केवल इसलिए चुनी कि वे भव्यता का प्रदर्शन कर सकें? सतही तौर पर यह सही लग सकता है परंतु भीतरी सतह यह कहती है कि भारतीय गणतंत्र में सामंतवादी तत्व शामिल रहे हैं, सरकारें नए रजवाड़ों की तरह काम करती हैं। भारत का गणतंत्र अन्य गणतंत्रों से अलग है, क्योंकि भारत के आवाम का सामूहिक अवचेतन अलग है, उसमें मायथोलॉजी के रेशे शामिल हैं। अदूर की एक फिल्म में एक शोषक के हाथ में तलवार है परंतु उसके हाथ कांपते हैं और वह मार नहीं पाता। सदियों शोषित रहने के कारण उसके अवचेतन में आज भी भय है। आजादी के बाद प्राय: सामंतवादी लोग चुनाव जीतते रहे हैं और उनकी 'रियाया' उन्हें बखुशी मत देती रही है।

इस फिल्म का नायक प्रेम गरीब है और नौटंकी का अभिनेता है। नौटंकी का मालिक नई पोशाक नहीं बनाता और नए अभिनेता को भी तंग पोशाक व छोटे जूते पहनना पड़ते हैं। यह एक तरह से संकेत है कि मनोरंजन उद्योग के कुछ शाश्वत तौर-तरीके हैं और वे बदलते नहीं। बहरहाल, यह गरीब प्रेम राजकुमारी का घोर प्रशंसक है, जो जनता की सहायता करती है और उसी से मिलने के लिए प्रीतमपुर जाता है। उस रियासत के राजकुमार को उसके अपनों ने मारने की कोशिश की है और पुराने वफादार साथी उसका इलाज एक गुप्त स्थान पर करते हैं तथा प्रेम के हमशक्ल होने का लाभ उठाकर उसे कुछ समय के लिए राजकुमार बना देते हैं। अनेक घटनाओं के बाद अंत में असली राजकुमार, राजकुमारी की शादी कराते हैं। राजवंश की बहनें अपने अावाम से आए भाई के साथ दूज मनाती हैं। क्या यह संकेत है कि 'सरकार' आम आदमी का सम्मान करना तथा उसे बराबर समझने की गणतंत्रीय इच्छा रखने का प्रयास कभी कर सकती है।

सूरज राजनीतिक सिनेमा नहीं बनाते, उनके सिनेमा का वैचारिक केंद्र परिवार है। परिवार की विराट छाया देश है, अत: परिवार में रिश्तों की पवित्रता का प्रभाव पूरे देश पर पड़ता है। जिस समय परिवार में बच्चों से कहा गया है कि आने वाले को कहे, पापा घर पर नहीं हैं। अपने बच्चे को पहला झूठ सिखा दिया। बहरहाल, सूरज की प्रेम कहानी पारिवारिकता के मूल्यों के डोरों से बनी है। फिल्म का वह प्रसंग जिसमें उपेक्षित सौतेली बहनों को उनका अधिकार और सम्मान लौटाया जाता है, दर्शकों की आंखें नम कर देता है। हमने पारिवारिक मूल्यों और परिभाषाओं को सीमित व संकुचित कर दिया है। मसलन, ममता का अर्थ दूसरों के बच्चों को भी प्यार करना है, क्योंकि केवल अपने बच्चों को तो पक्षी और जानवर भी प्यार करते हैं। इसी तरह सौतेला शब्द ही प्रदूषित है, क्योंकि रक्त और जीन्स तो सगे ही होते हैं।

सलमान पचास के निकट हैं परंतु उनके चेहरे पर गजब की ताज़गी है और उनके अभिनय में फिल्म दर फिल्म सुधार हो रहा है और अब वे मात्र सितारा हैसियत नहीं रह गए वरन् स्वाभाविकता का निर्वाह कर रहे हैं। फिल्म के माधुर्य के लिए हिमेश रेशमिया की प्रशंसा करनी होग और इरशाद कामिल ने इस माधुर्य को सार्थकता से भर दिया। उनका 'दर्पण बना बचपन कहां है?' गीत बहुत कुछ कहता है। दरअसल, जीवन की फिल्म ही बचपन की पटकथा पढ़ बनती है और सूरज ने भी क्लाइमैक्स दर्पणों के कक्ष में शूट किया है, अत: बचपन की यादें रिश्तों में आई दरारों को भरती है। भौतिक वस्तुओं को संपदा मानने की गलती करने वाले क्रूरता के इस कालखंड में में 'प्रेम रतन धन पायो' सार्थक प्रयास है।