क्रेज़ी फ़ैंटेसी की दुनिया / अभिज्ञात / पृष्ठ 3

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

-'ठीक है किन्तु हम बड़ी मुश्किल मैं हैं यदि यह सच है तो। जिस देश ने यह किया है वह उससे हमारे रिश्ते बेहतरी की ओर जा रहे हैं। हमारे देश के कई बड़े सौदे उसके साथ लगभग अंतिम चरण में हैं। हम किसी भी क़ीमत पर सौदे को सफल कराने में लगे हैं। यह हमारी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। और इन सौदों की सफलता ही हमें फिर से सरकार बनाने में सहायक सिद्ध होगी। उसी के बल पर हम अगले चुनाव में लोगों के सामने जायेंगे। फिर आप तो जानते हैं कि गठबंधन सरकार की मुश्क़िलें। गठबंधन सरकार चलाना एक पलड़े में कई मेंढक तौलने के समान है। जिसे देखे गठबंधन तोड़ने की धमकी देता रहता है। जिस देश की यह करतूत है वह देश हमें क्रेज़ी फ़ैंटेसी की बला से निपटने के लिए करोड़ों की राहत दे रहा है। दवाओं के रूप में और डॉक्टरों के रूप में। डॉक्टरों की टीमें आ चुकी हैं और बीमार लोगों का इलाज किया जा रहा है। आशा की जाती है कि सब कुछ ठीक हो जायेगा क्योंकि वह देश स्वयं जानता है कि उसने हमें क्या बीमारी परोसी है और उसका क्या इलाज है। आपके इस बात से इनकार नहीं होना चाहिए कि आपकी चुप्पी ही देश हित में है और हमारी सरकार के भी। हम जानते हैं आप देश के ज़िम्मेदार नागरिक हैं। फिलहाल जैसी स्थिति है आपसे आग्रह है कि सब्र रखें। हम आपको कुछ दिनों के लिए अज्ञात स्थान पर नजरबंद करने जा रहे हैं जहां आप किसी से नहीं मिल सकते।'

-'यह क्या?'

-'यह ज़रूरी है क्योंकि यदि किसी के सामने आप कुछ कह बैठे तो हमारी सरकार तो गयी। हमारे सौदों पर भी आंच आ जायेगी। आप कूटनीति नहीं समझते प्रोफेसर। आप चिन्ता न करें। आपकी बेटी को हम देश के एक बड़े बोर्डिंग स्कूल में भेज रहे हैं जहां उसकी पढ़ाई सहित सारा खर्च सरकार वहन करेगी। और हां हम अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार के लिए भी आपको नामित करने जा रहे हैं। आप तो जानते ही हैं कि वही देश के इशारे पर कई पुरस्कार तय होते हैं। इस साल पद्म पुरस्कारों के लिए भी हम सिफारिश करेंगे। आपकी शोध संस्थान व प्रोजेक्ट पोर्ट टारटाइज के लिए सौ करोड़ की ग्रांट दी जायेगी। फिर मिलते हैं। नमस्ते।'

और तेज कदमों से प्रोफेसर निगम प्रधानमंत्री कार्यालय से निकले थे। बाहर निकलते ही उन्हें खुफिया पुलिस के लोग अपने साथ किसी अज्ञात स्थान पर ले जाते हैं जहां उन्हें सबसे अलग तथा तमाम सुविधाओं से लैस बंगले में रखा जाता है।

---

इधर, प्रधानमंत्री ने गृहमंत्रालय से इस सम्बंध में चर्चा की और खफिया विभाग की उच्च स्तरीय बैठक बुलायी तो उन्हें जानकर हैरत हुई कि प्रोफेसर की बातों में सच्चाई थी। जो मछलियां पायी गयीं उनमें वायरस प्लांट किये गये थे। एक विकसित देश ने एक खास तरह के वायरस से छुटकारा पाने का यह उपाय किया था। दुनिया को एक बड़ी बीमारी से सौ साल तक बचाने वाले एक खास टीके को नष्ट करना उसकी मज़बूरी थी क्योंकि वह बीमारी दुनिया से अब ख़त्म हो चुकी है। रोग के वायरस से ही उसके निवारण के टीके बनाये गये थे। अब जबकि बीमारी का दुनिया से पूरी तरह से खात्मा हो चुका था टीकों के वायरस को ख़त्म किया जाना ज़रूरी थी। उसे ख़त्म करने की घोषणा तो आनन-फानन में कर दी गयी किन्तु चाहकर भी वायरस के बदले स्वरूप को एकदम निष्प्रभावी नहीं किया जा सका हालांकि उसका प्रभाव काफी क्षीण हो गया था। वायरस का यह बदला रूप किसी में संक्रमण कर जाये तो वह हैल्युसिनेशन बीमारी को जन्म दे सकता था। यह दीमागी बीमारी है जो किसी व्यक्ति में उसकी तीव्रतर कल्पना को हक़ीकत का भ्रम पैदा करने में समर्थ है। इस बीमारी का इलाज संभव था। यह बीमारी दीमागी हालत के ठीक होते ही अपना प्रभाव भी खत्म कर सकता था।

वायरस के बदले रूप को उस देश ने कुछ मछलियों के अन्दर प्लांट कर दिया और उसे उस देश के काफी दूर समुद्र में छोड़ दिया गया। अब जबकि प्रोफेसर निगम दावा कर रहे हैं कि यह वायरस उन्हीं मछलियों से यहां आया है तो यह दलील सही जान पड़ती है। और जल्द ही खुफिया विभाग ने इस बात की ताकीद कर दी कि जिन शहरों में ये मछलियां पायी गयीं क्रेज़ी फ़ेंटेसी के कहर की खबरें उन्ही शहरों से मिली हैं। और जो लोग शिकार हुए हैं, उन्होंने मछलियां खायी थी।

रिपोर्ट आने के बाद गठबंधन सरकार की बैठक हुई थी। क्रेज़ी फ़ैंटेसी से निपटने की जो योजना बनायी गयी थी वह व्यापक थी और बैठक में भाग लेने वालों के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर। बैठक के बाद सरकार की ओर से क्रेज़ी फ़ैंटेसी से निपटने के लिए हजार करोड़ रुपये मंजूर किये गये थे। सरकार ने बताया कि प्रो. निगम ने क्रेज़ी वायरस की खोज की है। यह वायरस मछलियों से फैला है। लोगों से अपील की गयी है कि वे मछलियां न खायें। मछलियों से क्रेज़ी वायरस फैल सकता है। सरकार ने तमाम मछलियों को मारने की घोषणा की है। जिन लोगों ने अपने तालाब में मछलियां पाली हैं सरकार उन्हें मछलियों को मुआवजा देगी। जगह-जगह कार्यबल तैनात किये जायेंगे ताकि मछलियों का सफाया किया जा सके। यह फरमान तत्काल प्रभाव से लागू हो गया था।

---

यह प्रधानमंत्री से प्रोफेसर निगम की अगली बैठक थी। प्रधानमंत्री ने प्रोफेसर को बधाई दी थी उन्हें वायरस की खोज के लिए जल्द ही सम्मान दिया जायेगा तथा वे क्रेज़ी वायरस किलर अभियान के सलाहकार नियुक्त किये गये हैं। वे हैल्युसिनेशन ग्रस्त लोगों की समस्या के निदान के लिए जो भी उपाय करना चाहें करें। सरकार को सुझाव दें। सरकार दो हजार करोड़ रुपये तो क्रेज़ी के सफाये के लिए बहा ही रही है।'

जब प्रोफेसर ने मछलियों के सफाये आदि के तौर-तरीकों और औचित्य का प्रश्न उठाया तो प्रधानमंत्री मुस्कुराये-'आप क्या समझते हैं आपदा प्रबंधन क्या होता है। सरकार का अपना तौर तरीका होता है। सरकारें अपना काम तंत्र से करती हैं। तंत्र के काम करने की अपनी पध्दति है। सरकार को पता है कि केन्द्र से रवाना हुए दस रुपये में से एक ही रुपया वास्तविक कार्य पर खर्च होगा बाकी तंत्र की भेंट चढ़ जायेगा। जब काम शुरू होता है तभी सबको पता होता है तंत्र कैसे काम करेगा फिर भी दसवां हिस्सा ही सही होता तो है तंत्र के भरोसे।बिना तंत्र के सरकारें नहीं चला करतीं। कई बार तो दसवां हिस्सा भी नहीं होता। कुछ भी नहीं होता अरबों खर्च करके। राज्य सरकार केन्द्र से विभिन्न मदों में हजारों करोड़ की रकम बिना खर्च किये लौटा देती हैं क्योंकि तंत्र के लिए पर्याप्त गुंजाइशें नहीं होतीं। योजनाएं तंत्र को ध्यान में रखकर ही बनायी जायें तो सफल होती हैं। हम उम्मीद करते हैं आप हमारे तंत्र का हिस्सा बनें। तंत्र में बेहतर लोगों की आवश्यकता है ताकि दसवां हिस्सा ही सही काम हो। आप जिसे भ्रष्टाचार कहते हैं हम उसे तंत्राचार कहते हैं। तंत्र का हिस्सा बनकर कुछ कर लेना बड़ी कामयाबी है।तंत्र से जुड़कर ही उसमें सुधार किया जा सकता है। उससे अलग होकर किया गया कोई भी प्रयास टिकाऊ नहीं हो सकता। कुछ देर का गतिरोध ज़रूर पैदा किया जा सकता है किन्तु तंत्र उस गतिरोध को दूर कर ही लेता है। हम और आप जैसे लोगों को तंत्र का हिस्सा भी बनना चाहिए और अपने लक्ष्य को नहीं भूलना चाहिए। हम लोग तंत्र से लड़ने नहीं तंत्र गढ़ने वालों में से हैं। एक बड़ी व्यवस्था में ये सब छोटी मोटी चीजें हैं जिससे लड़ें तो हम कुछ नहीं कर सकते। मुझे एक अरब वाले देश को चलाना है मैं एकल व्यवस्था नहीं लाद सकता। आप भी नहीं। मैं जानता हूं पुरस्कार व सम्मान आपको प्रभावित नहीं कर सकते किन्तु वह लोगों को प्रभावित करते हैं। आप पुरस्कार लें या दान कर दें या ठुकरा दें हर हाल में लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण बन जायेंगे पुरस्कार के लिए चयनित होते हैं इससे आपका मान बढ़ेगा। आपके कहे को लोग गौर से सुनेंगे तंत्र में आपकी स्थिति मज़बूत होगी तो आपको अपने उद्देश्य में अधिक सफलता मिलेगी। चुनाव करीब हैं। इस क्रेज़ी वायरस से तंत्र में नहीं जान आयेगी ऐसी मुझे आशा है।'