क्वालिटी टाइम / अर्चना राय

Gadya Kosh से
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अरसे बाद दोनों घर में अकेले थे। मौसम भी सुहाना हो रहा था। घने बादल, ठंडी हवा के साथ रिमझिम बारिश की फुहारें कुछ अलग ही समां बाँध रही थी। पति हमेशा की तरह कमरे में आफिस की फाइलों में व्यस्त थे।

"यह लीजिए, चाय के साथ आपके पसंद के प्याज के पकोड़े।"-पत्नी ने पकौडा उनके मुँह में डाल कर, मुस्कुराते हुए कहा।

कितने समय बाद आज वह पत्नी को भर नज़र देख रहा था। अचानक उनके मशीनी शरीर में इंसानी स्पंदन महसूस होने लगा। आज पत्नी कुछ ज़्यादा ही सुंदर लग रही थी या वे हीं थोड़ा रूमानी हो रहे थे, कहना मुश्किल था।

"तुम भी तो मेरे पास आकर बैठो।"-पत्नी का हाथ प्यार से पकड़ते हुए कहा।

"अरे! आप खाइए, मुझे रसोई में काम है।"-पत्नी ने बनावटी आवाज़ में कहा।

"बैठो न! आज हम कितने दिनों बाद, घर में अकेले हैं, वर्ना सारा दिन घर और बच्चों में व्यस्त होती हो।"

"आपके पास भी कहाँ टाइम रहता है। दिन भर आफिस और घर पर भी फाइलों में ही डूबे रहते हैं।"

"क्या करूँ? इस बार मुझे प्रमोशन चाहिए ही है। तीन साल हो गए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाते, अब तो मेरे जूनियर भी मुझ से आगे निकल गए हैं।"

"चिंता न कीजिए, इस बार आपको ज़रूर तरक्क़ी मिलेगी। मैंने भगवान से प्रार्थना की है।"

"अच्छा यह सब छोड़ो, आओ कुछ अपनी बातें करते हैं।"-पति ने शरारत से आंखें चमकाते हुए कहा।

ठंडी हवा के झोंके के साथ सौधी ख़ुशबू ने आकर कमरे को भर दिया।

"हटिए न आप भी।"-पत्नी के गाल शर्म से लाल हो गए।

"सुनो न मुझे तुमसे कुछ कहना है।"-पति ने प्यार से कहा।

"अरे हाॅं! याद आया मुझे भी आपसे कुछ बताना है।"-अचानक से पत्नी के चेहरे का गुलाबी रंग उड़ गया।

"कहो?"

"बिट्टू के स्कूल से फीस भरने का नोटिस आया है। पूरे पांच हज़ार भरने हैं।"-पत्नी ने चिंतित होते हुए कहा।

कमरे में फैली ख़ुशबू कुछ कम-सी होने लगी। पति के चेहरे पर भी चिंता की लहर दौड गई।

"सब इंतज़ाम हो जाएगा।"-अपने आप को संभाल कर पुनः पत्नी को बैठाते हुए बोला।

"और हाँ...गाँव से भी माँ जी का फ़ोन आया है, इस बार फ़सल खराब हो गई है। तो साल भर का अनाज नहीं भेज पाएंगी, उसका इंतज़ार हमें ही करना पड़ेगा।"

"अच्छा!" पति का चेहरा अब तनाव ग्रस्त हो गया।

"कल मकान मालिक भी धमका रहा था। पिछले महीने, चाचा की बेटी की शादी ने घर का सारा बजट ही बिगाड़ दिया है।"-पत्नि अपनी धुन में कहे जा रही थी।

"हाँ...हाँ देखता हूंँ।"-अचानक से पति ने पत्नी का हाथ छोडकर, फाइल उठा कर पन्ने पलटने लगा।

"अरे! आप भी तो कुछ कह रहे थे न?"-पत्नी ने कुछ सोचते हुए कहा।

ऊँ... हाॅं कल से ऑफिस के डब्बे में दो रोटियाँ और ज़्यादा रख देना। सोचता हूंँ ओवरटाइम कर लूँ। "

अब कमरे से ख़ुशबू पूरी तरह उड़ चुकी थी। और धीरे-धीरे उसका इंसानी शरीर मशीन में तब्दील होने लगा।