क्षतिपूर्ति / राजेन्द्र वर्मा

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जंगल में लोकतंत्र लागू हो चुका था। बहुमत से प्रस्ताव पारित हुआ कि राजाधिराज, शेर के भोजन हेतु प्रतिदिन एक जानवर स्वेच्छा से उसके सम्मुख प्रस्तुत होगा, ताकि हिंसा पर नियंत्रण रखा जा सके.

एक दिन जब खरगोश की बारी आयी, तो वह देर से पहुँचा।

"क्यों बे खरगोश! इतनी देर कहाँ लगा दी?"

"देरी के लिए क्षमा महाराज! रास्ते में बिल्कुल आप जैसा राजा मिल गया था! ... किसी तरह बच कर आया हूँ!"

"अच्छा, मेरे रहते कोई और राजा! चल, दिखा तो!"

"चलिए महाराज!"

दोनों चल पड़े। कुँए पर पहुँचते ही खरगोश ने शेर से कुएँ में झाँकने को कहा।

कुएँ में झाँकने के बजाय शेर ने कहा, "पहले मैं तुझे खाऊँगा, फिर किसी से लडूँगा! ... अबे, तू समझता क्या है? मुझे भी कुएँ में गिराकर वैसे ही मार देगा, जैसे तेरे बाप ने मेरे भाई को मारा था!" यह कहते हुए उसने खरगोश को अपने पंजे में दबोच लिया।