खगोल विज्ञान और पंचांग / कविता भट्ट

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खगोल विज्ञान खगोल के क्षेत्र में भारत ने काफी प्रगति की है। यहाँ की खगोल परंपरा, व्यापक बौद्धिक परंपरा की तरह ही मौखिक थी। खगोल ग्रंथों की रचना श्लोकों में की जाती थी। बहुधा ये संक्षिप्त और जटिल छंदों में लिखे जाते थे। ऐसा इसलिए किया जाता था जिससे इन्हें याद करने में सुविधा हो और दूसरा यह कि ऋग्वेद का अनुसरण करने की लालसा थी, जो अब तक सामान्य पहुँच का ग्रंथ हो गया था। काव्य के प्रतिबंधों के कारण अंकों को अक्षरों में लिखने के लिए विभिन्न परंपराओं का प्रयोग किया गया।

ज़्यादा गंभीर बात यह हुई कि बहुधा महत्त्वपूर्ण गणितीय सूत्रों में कुछ हिस्से छोड़ दिए गए और छंद बैठाने के लिए सटीक पारिभाषिक शब्दों की जगह अप्रचलित व अस्पष्ट शब्दावली का प्रयोग किया गया। छंदीय रचना रचनाकारों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई। छंद, रचनाकार के दस्तख़्त के समान थे। अतः जब बाद के खगोलविद् किसी पूर्व रचना को उद्धृत करते, तो रचना का श्रेय तत्काल मूल लेखक पाता था।

खगोलविदों के बारे में भी सामान्यतः बहुत कम जानकारी उपलब्ध हैं। वे अपने जन्मस्थान का अभिलेख रखने के बजाय गोत्र बताने में ज़्यादा रुचि रखते थे। उनकी जन्मतिथि या मूलग्रंथ के रचना-वर्ष का उल्लेख कहीं-कहीं ही मिलता है। कुछ रचनाओं में कवि या रचनाकार की मृत्यु के समय का उल्लेख है।

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पंचांग

भारत में हड़प्पा काल के पश्चात प्राचीनतम शिलालेख अशोक के स्तंभ हैं, जिनका निर्माण मौर्य वंश के शासक अशोक महान के शासनकाल में किया गया था। ये शिलालेख प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं और वेदांग पंचांग का उपयोग करते हैं। वर्ष की गणना राजा के राज्याभिषेक से हुई है। किसी भी निश्चित बिंदु से प्रारंभ होने वाले सतत् काल या घटना का कोई प्रयोग नहीं किया गया है। एक वर्ष के दौरान तीन मौसमों के आधार पर चार माह के प्रत्येक मौसम की गणना की गई है। प्रत्येक माह को दो भागों (पक्षों) में बाँटा गया है। महीना चंद्रमास और पूर्णिमांत होता था, अर्थात् पूर्णिमा के दिन माह समाप्त हो जाता था। महीनों में तिथियों के द्वारा दिनों की गणना होती थी अर्थात् चंद्रास्त से चंद्रास्त का समय शुक्ल पक्ष में और चन्द्रोदय से चन्द्रोदय का कृष्ण पक्ष में। दिनों के नाम नक्षत्रों के नाम पर दिए गए थे। वेदांग पंचांग का उपयोग मौर्यों के उत्तराधिकारी शुंग और कण्व तथा सातवाहनों द्वारा भी किया गया।

भारतीय हर बार नए राजा के सिंहासनारूढ़ होने के साथ प्रारंभ होने वाले शासन वर्षों की गणना मात्र ही करते थे, जबकि काल गणना का उपयोग बेबीलोन में ईसा के 747 वर्ष पूर्व से चला आ रहा था। ईसा के 312 वर्ष पूर्व सेल्यूकस युग का प्रारंभ हुआ। सिकंदर के उत्तराधिकारी सेल्यूकस ने जब सत्ता सँभाली ,तब इस युग की शुरुआत मानी गई है। यह तर्कसंगत लगता है कि खगोल ज्ञान पर आधारित सही गणितीय चंद्र और पंचांग का निर्माण सेल्यूसिडन बेबीलोन में शेल्डियन खगोलशास्त्रियों द्वारा किया गया था। शेल्डियन संस्कृति मेसोपोटामिया जो इस समय ईराक के नाम से जाना जाता है, में ईसा के 700 वर्ष पूर्व से 300 ई. तक फली-फूली थी। इस प्रणाली में वर्षों को लगातार गिना गया था। वर्ष का प्रारंभ ‘निसान’ के चंद्रमास से होता था। यह वसंतीय विषुव माह की किसी तारीख़ (वैशाख) के समकक्ष था। विकल्प के रूप में यूनानी माह ‘डायोस’ को भी लिया जा सकता था, जिसका प्रारंभ पतझड़ विषुव से होता था। वर्ष को मौसम के अनुकूल रखने हेतु 19 वर्ष के काल में सात चंद्रमासों को जोड़ा जाता था।

इस पंचांगीय प्रणाली का प्रचलन धीरे-धीरे भारत में हुआ। भारत में प्रारंभ होने वाला प्रथम युग शक युग था, जो मध्य एशिया से आए शकों द्वारा लाया गया था (जिन्हें यूनानी लोग सीथियनों के नाम से जानते थे)। ऐसा विश्वास किया जाता है कि शक युग मूल रूप से ईसा के 123 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ होगा। इस संवत् के 201 वर्ष में से, अर्थात् ईसा की मृत्यु के 78 वर्ष पश्चात् कनिष्क ने 200 वर्ष घटा दिए। इस प्रकार, शक संवत् के वर्तमान पंचांग का पहला वर्ष प्रारंभ हुआ।

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