खतों के पुल / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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मुझे लगता है दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। एक वे, जो जीवनभर खत लिखते हैं। अपनी हर छोटी-बड़ी बात को उन्हें खत में पिरोना होता है। हर भाव अहसास को समोना होता है। उनके लिए खत, खत नहीं एक कैनवास होता है या कोई कलश जिसमें वह अपने भाव भरकर बहुत ही प्रेम से सामने वाले को देने को अधीर होते हैं। ऐसे लोगों के पास हमेशा वक्त होता है, खत लिखने का या वे हमेशा वक्त निकाल ही लेते हैं खून से खत लिखने का। इनके पास वक्त की कभी कोई कमी नहीं होती, क्योंकि उन्हें वाकई खत लिखना होता है। अगर ये खत न लिखें तो मर जाएँ। गोया लिखते हैं तो जिन्दा हैं, न लिखते तो मर जाते।

दूजे वे लोग जो जीवनभर खत पढ़ते हैं और उन खतों को खूब संभाल कर रखते हैं। ये कभी खत नहीं लिखते लेकिन जीवनभर सोचते हैं, एक खत लिखना है मुझे...पर वह दिन कभी नहीं आता। इनके पास एक खत लिखने का कभी भी समय नहीं होता। पूरी ज़िन्दगी में कभी ये खत का जवाब नहीं लिखते।

ये खत पढ़ते हैं तो जिन्दा हैं, न पढ़ते तो मर जाते। दोनों ही तरह के लोग एक-दूजे को जीवन देते हैं। जीने की वजह बनते हैं एक-दूजे को मरने से बचाते हैं और माध्यम खत बनते हैं...इन्हें ये बेजान खत आपस में जोड़े रखते हैं। इन खतों के पुल पर चल कर ये दोनों एक-दूजे के मन तक पहुचते हैं। ये खत शब्दों के पुल हैं इनके नीचे गहरी अहसासों की नदी बहती है।