खर्राटे लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है / जयप्रकाश चौकसे

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खर्राटे लेना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
प्रकाशन तिथि :19 फरवरी 2018


विशेषज्ञ का मत है कि भारत में चालीस पार 40 प्रतिशत लोग खर्राटे लेते हैं। प्राय: रात में रेल का सफर करने वाले मुसाफिर जानते हैं कि पूरे डिब्बे में एक व्यक्ति के खर्राटे शेष सारे मुसाफिरों को रातभर जगाए रख सकते हैं। अाभास होता है मानो रेलवे इंजन डिब्बे के भीतर ही लगा है। यह रोग प्राय: मोटे लोगों को होता है। आवश्यकता से अधिक भोजन करने वाले भी खर्राटे लेते हैं। हमारे देश में खर्राटे लेने वालों की संख्या देखकर यह भ्रम होता है कि यहां कोई भूखा नहीं सोता। यह भ्रम सरकार को कितना भाता होगा कि उसने ही भूख की समस्या समाप्त कर दी है। नाक से सांस नहीं ले पाने के कारण यह कष्ट होता है। खर्राटे लेने को प्राय: गंभीरता से नहीं लिया जाता और बात हंसी में उड़ा दी जाती है। एक दौर में 'लव स्टोरी,' 'बेताब' और 'अर्जुन' जैसी रोचक फिल्में निर्देशित करने वाले फिल्मकार राहुल रवैल रात में सोते समय ऑक्सीजन का मास्क लगाकर सोते थे परंतु अपना वजन घटाकर उन्होंने इस रोग से मुक्ति पा ली थी। फिल्म बनाने के तकनीकी पक्ष पर उनकी पकड़ गहरी रही है। राहुल रवैल 'जोकर' और 'बॉबी' के निर्माण के समय राज कपूर के सहायक निर्देशक रहे। उनके पिता एचएस रवैल 'मेरे मेहबूब,' 'लैला मजनू' और 'संघर्ष' जैसी फिल्मों के निर्देशक रहे हैं।

पश्चिमी देशों की अदालतें खर्राटे लेने के कारण तलाक की अर्जी मंजूर कर लेती हैं। फ्रांस में विवाहित लोगों के अलग-अलग शयन कक्ष होते हैं, जिनके बीच दरवाजा हमेशा खुला रहता है। विवाहित लोगों के लिए एक शयन-कक्ष इंग्लैंड में होता है, क्योंकि चारों ओर समुद्र से घिरा यह छोटा द्वीप है। जिन देशों में इंग्लैंड की हुकूमत रही उन सभी देशों पर उनके रहन-सहन और विचार शैली का प्रभाव रहा है। अंग्रेजी भाषा भी उनके साथ ही आई और उनके जाने के बाद भी कायम है। लॉर्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में अंग्रेजी भाषा की शिक्षा का बिल रखते समय ही यह कहा था कि यह भाषा उनके अधीन देशों में हमेशा जीवित रहेगी। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी की किताबें अंग्रेजी में लिखी होने के कारण इस भाषा का वर्चस्व बना रहा है। मनुष्य शरीर विज्ञान की पाठ्यक्रम की किताब को तो चीन ने भी अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है। इसके लेखक ग्रे मात्र तीस की उम्र में चले गए। राजकुमार हिरानी की फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' में संवाद है, 'भाई हडि्डयां तोड़ते समय हमने कभी सोचा ही नहीं था कि मनुष्य शरीर में 208 हडि्डयां ही होती हैं।' यह बताना कठिन है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए डॉ. ग्रे को इतने शव कहां से उपलब्ध हुए होंगे। संभवत: कब्रिस्तान से चुराए होंगे। ज्ञान की खातिर किए गए चोरी के इस काम को अपराध नहीं माना गया होगा। बंगाल के लेखक मनोज बसु ने सेंध मारकर चोरी करने पर रोचक उपन्यास भी लिखा है। प्रशिक्षण के समय छात्र को सिखाया जाता था कि अंधेरे बंद कमरे में सांस की आवाज से यह कैसे मालूम किया जाए कि कितने लोग सोए हैं और उनमें से कितने गहरी नींद में हैं। इस उपन्यास में एक गुरु अपनी दक्षिणा में यह मांगते हैं कि उनकी बहू के कंगन चुराकर लाओ। बहू भी चौर्य कर्म में माहिर थी, इसलिए काम अत्यंत कठिन था। कहते हैं कि पुराने जमाने में राजपुत्र के पाठ्यक्रम में चौर्य कर्म भी शामिल था। राजकुमार चोरी की विद्या प्राप्त करता था ताकि वह चोरों को पकड़ सके और दंडित कर सके। मौजूदा व्यवस्था में अनुभवी लोग भी शामिल हैं।

बहरहाल, खर्राटे की ध्वनि चोरों के लिए आमंत्रण-पत्र की तरह है। इसी से वे नींद के गहरी होने का आकलन करते हैं। हाल ही में यह मांग भी उठी है कि रेलयात्रा में खर्राटे लेने वालों के लिए अलग कक्ष हो। मुसाफिरों की संख्या अधिक होती जा रही है। इसलिए खर्राटे के आधार पर अलग कक्ष संभव नहीं हो पाएगा। भारतीय रेलों में ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड की संयुक्त जनसंख्या के बराबर संख्या में मुसाफिर हर समय यात्रा कर रहे होते हैं। एक बार सलमान खान ने यह विचार व्यक्त किया था कि रेलगाड़ी में एक कक्ष ऐसा हो, जिसमें लगातार फिल्में दिखाई जा सकें। ऐसा करने पर फिल्म उद्योग को आय का एक नया स्रोत मिल सकता है। जिन प्रांतों से रेलगाड़ी गुजरेगी उन प्रांतों का मनोरंजन कर भी लागू होगा। अब तो नगर पालिकाओं, निगम व पंचायतों ने भी शो टैक्स में इजाफा कर लिया है। टिकट दर पर जीएसटी के साथ ही शो टैक्स भी लग सकता है। मनोरंजन उद्योग को बचाए रखना किसी भी सरकार को महत्वपूर्ण नहीं लगता। कुछ प्रांतों में पच्चीस रुपए तक सर्विस टैक्स सिनेमा मालिक को लेने का अधिकार है परंतु मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अभी तक इस तरह का आदेश जारी नहीं हुआ है।

बहरहाल, खर्राटे लेना अभी तक कर मुक्त है। संसद और विधानसभाओं में भी कुछ सदस्य खर्राटे लेते हुए पाए गए हैं। इस पावन सदनों में कुछ लोग अपने मोबाइल पर फिल्में देखते हुए पाए गए हैं। जाने क्यों फिल्मों से प्रेम होते हुए भी फिल्म उद्योग को बनाए रखने के जतन नहीं किए जा रहे हैं। इन महान संस्थाओं में खुर्राटे लेते हुए लोग 'कितने मुनासिब हैं जम्हूरियत के सफर के लिए!' दुष्यंत कुमार को धन्यवाद।