खाइके पान बनारस वाला… / जयप्रकाश चौकसे

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खाइके पान बनारस वाला…
प्रकाशन तिथि :31 अक्तूबर 2015


फिल्म 'डॉन' के लिए कल्याणजी आनंदजी ने यह गीत रिकॉर्ड किया था। जिन दिनों यह फिल्म बन रही थी, उन दिनों सलीम-जावेद मनोज कुमार के लिए 'क्रांति' लिख रहे थे। फिल्म के एक प्रदर्शन में सलीम साहब मनोज कुमार को साथ ले गए और फिल्म देखकर मनोज कुमार ने कहा कि इसमें भाग-दौड़ के लंबे दृश्यों के बीच गाना डाला जाना चाहिए। अगले दिन सलीम साहब कल्याणजी आनंदजी के घर गए और सारी बात समझाई। आनंदजी ने कहा कि देव आनंद की 'बनारसी बाबू' के लिए एक गीत बनाया था परंतु फिल्मकार को पसंद नहीं आया। आनंदजी ने वह गीत सुनाया 'खाइके पान बनारस वाला' सलीम साहब को गाना पसंद आया परंतु कल्याणजी ने कहा कि कुछ और धुनें सुनकर तय कीजिए। कुछ धुनें सुनाकर कल्याणजी किसी काम से अंदर गए तो सलीम साहब ने कहा पहला गाना कमाल का है। आनंदजी ने कहा कि बड़े भैया हर काम में परफेक्शन चाहते हैं, अत: आप धीरज से सुनते रहिए, वे थककर कहेंगे, 'खाइके' ही अच्छा है। उस घटना के बाद सलीम साहब ने अपने मित्रों की बातचीत में कहा कि हर आदमी को सुनकर थका दो, अत: उस दिन से 'थका दो' यह एक कोडवर्ड बन गया है। शायद मौजूदा सरकार को यह बात मालूम है, इसीलिए वे पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकार, वैज्ञानिक और फिल्मकारों को 'थका' रहे हैं कि वे ल ौटाते-लौटाते थक जाएंगे परंतु सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगेगी।

बहरहाल, मुंबई के कई इलाकों में कुछ मशहूर पान वालों की दुकानें हैं, जहां दो रुपए से दो सौ रुपए तक के पान मिलते हैं। विशुद्ध किमाम और पान भी कपूरी, कलकत्ता, मद्रास इत्यादि कई प्रकार के होते हैं और पान के बीड़े भी कई तरह के बनाए जाते। कुछ पान वाले गुजिया के आकार में पान देते हैं। ज्ञातव्य है कि दिवाली पर घरों में बनाई जाने वाली पारंपरिक मिठाई को गुजिया कहते हैं और धन्य है इरशाद कामिल कि उसने 'राम रतन धन पायो' के एक गीत में गुजिया के साथ कुछ पारंपरिक पकवानों के नामों का भी इस्तेमाल किया है। मुंबई के उपनगर बोरीवली में विनोद कुमार तिवारी की पान की दुकान घंटे वाला का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल हैं, क्योंकि यह शिवभक्त पान वाला हर गिलोरी अपनी दुकान में लगी शिव मूर्ति के सामने भगवान की प्रार्थना करके पान देता है और उसके पुराने ग्राहकों ने उसे 169 देशों से विभिन्न प्रकार की घंटियां भेंट दी हैं। मुंबई में कुछ पान की दुकानों की अपनी विशेषताएं हैं। अधिकांश पान की दुकानों के पूर्वज उत्तरप्रदेश और बिहार से आए हैं। सच तो यह है कि मुंबई में सारे प्रांतों के छोटे स्वरूप बसे हैं और वह 'लघु भारत' बन गया है। किसी भी शहर में केवल वहां जन्मे लोग ही नहीं रहते वरन् सारे प्रांतों के लोग आकर बसते हैं। किसी जगह के 'मूल निवासी' एक 'राजनीतिक झूठ' रचा गया है ताकि वोट बैंक बना सके। एक जगह से दूसरी जगह की यात्राएं अनंत काल से लोग कर रहे हैं और सब शहरों, गांवों और कस्बों में गंगा-जमुनी संस्कृति विद्यमान है। इस गहरी बुनावट को तोड़ना असंभव है। फिल्म उद्योग के कई कलाकार पान के शौकीन रहे हैं। एक जमाने में शशि कपूर के लिए पान जुहू की एक दुकान से लाए जाते थे। राखी स्वयं अपने बंगाली पान बनाती थीं। जैकी श्राफ बरसों से एक ही दुकान से पान खरीदते हैं और बाकायदा कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। प्रिया गुप्ता ने पान वालों पर शोध करके टाइम्स में एक लेख लिखा है, कुछ जानकारी वहीं से मिली है।

एक दौर में तवायफों के कोठों पर जाने वाले कहते थे कि पान खाने जा रहे हैं। यह अपनी लंपटता को छिपाने का तरीका था। आज भी कस्बों में मेले के अवसर पर नाच-गाने का कार्यक्रम होता है और गाने वालियां श्रोताओं को पान देने जाती हैं तब छेड़छाड़ चलती है। भारतीय समाज के तंदूर में राख के नीचे प्रच्छन्न सेक्स की चिंगारियां भड़कती रहती है। यह इत्तफाक है कि पान के पत्ते का रस पाचक क्रिया को तीव्र करता है परंतु वह किन्हीं और चीजों का भी प्रतीक बन गया है। यहां तक कि वह भारत की विराट आर्थिक खाई का भी प्रतीक बन गया है- गरीब का पान अमीर के पाने से अलग होता है। 'डॉन' फिल्म का पचास प्रतिशत अधिक व्यवसाय इस गीत के कारण हुआ है, 'खाइके पान बनारस वाला……..'