खुशी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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“क्या बात है,बहुत खुश हो आज|”उसने उससे कहा|

“बात ही ऐसी है,आज खुश नहीं होऊंगा तो कब होऊंगा|’

“अरे भाई पता भी तो लगे हमारे प्रिय मित्र की खुशी का रहस्य|”

“आज बहुत बड़ी साध पूरी हो हई मेरी|”

“क्या कोई लाटरी लग‌ गई या कारूं का खजाना मिल गया?”

“इससे भी बड़ी उपलब्धि”

“अरे भाई क्यों गोल मोल बातें कर रहे हो,साफ साफ कहो न|”

“बेटे को नौकरी लग गई|”

“सच,तब तो मिठाई खिलाओ मित्र |क्या काम मिला,प्रायवेट कंपनी में या सरकारी में?’

“वह नक्सलाइट हो गया है|कुछ नक्सलाइट आये थे,उसे ले गये,अपने केंप में भरती करेंगे ,ट्रेनिंग देंगे और हथियार‌ चलाना सिखायेंगे|”

“नक्सलाईट? मगर तुम्हें इससे क्या मिलेगा?’

”हर माह राशन, पूरे महिने का वादा कर गये हैं|”

“मगर क्या यह उचित है?”

”क्यों नहीं,हमारे घर, हमारे परिवार के किसी सदस्य पर हमले नहीं होंगे|सुरक्षा का वादा भी तो किया है उन्होंनें|”