खोने का सुख / एक्वेरियम / ममता व्यास

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह बादशाह था। शिकार करते हुए उसे एक दिन घने जंगल में युवती दिखाई पड़ी जिसकी देह से सुगंध आती थी। उसका मन उस युवती को पाने के लिए मचल उठा और वह युवती को रानी बनाकर ले आया। उस सुगंध के साये में वह रात-दिन बैठा रहता उसे बड़ा चैन मिलता था, बड़ी ही मीठी नींद आती थी, लेकिन जल्दी ही राजा का चैन उड़ गया और नींद जगरातों में बदल गयी। जब उसे अहसास हुआ कि रानी की देह से उठने वाली सुगंध महल के बाहर भी जाती है। मंत्री, दरबारी, अंगरक्षक और सैनिक सब दीवाने हुए जाते हैं उस सुगंध के. राजा घबरा गया। कैसे रोके उस खुशबू को, कैसे चुप कराये उस बोलती सुगंध को, कैसे छिपाए उस महकते चन्दन को।

राजा अपनी रानी से बेइन्तहा मोहब्बत करता था इसलिए उसे वापस जंगल में छोडऩे का विचार उसके मन में नहीं आया। लेकिन रानी की खुशबू अब मुसीबत बन चुकी थी। राजा पागल हो गया। महल के चारों तरफ एक ऊंची दीवार बनवाई गयी और रानी को सौ तालों की कैद में रख दिया लेकिन उसकी सुगंध थी कि छिपती नहीं, रुकती नहीं, टिकती नहीं थी। आखिरकार, परेशान राजा ने एक निर्णय लिया, उसने एक लोहे का बहुत बड़ा संदूक बनवाया और उसमें अपनी सबसे प्रिय रानी को बंद कर दिया और अपने शयन कक्ष की जमीन में हजारों फीट गहरा गड्ढा खुदवाया और उस संदूक को गड्ढे में छिपा दिया। गड्ढे को भरकर उस पर खूबसूरत संगमरमर का फर्श बनवा दिया। राजा अब उस खूबसूरत फर्श पर सोता था। उसे अब चैन की नींद आती थी और डरावने सपने भी नहीं आते थे। अब महल की दीवारें उस पर नहीं हंसती थीं। राजा अपनी प्रिय रानी को खोकर बहुत खुश था। वह खुश था उसने अपने कमरे में उस मादक खुशबू को हमेशा के लिए कैद कर लिया था। अब वह सुकून में था कि उसकी खूबसूरत रानी की देह से उठती सुगंध बाहर नहीं जा सकेगी और कोई अन्य उसे महसूस नहीं कर सकेगा उसके सिवा। ...खोने का सुख भी बड़ा अजीब होता है न?