गति और ठहराव / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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घर ने मुझसे कहा - "मुझे छोड़ना मत, तुम्हारा सुनहरा अतीत मुझमें बसा है।"

और रास्ते ने मुझसे कहा - "आओ, मेरा अनुसरण करो। भविष्य मुझमें निहित है।"

घर और रास्ता, दोनों से मैंने कहा - "न मेरा कोई अतीत है, न भविष्य। अगर मैं रुकता हूँ तो मेरे रुकने में भी गति है; और अगर मैं जाता हूँ तो मेरे चलने में भी एक ठहराव है। तमाम चीजों को केवल दो ही चीजें बदल सकती हैं - प्रेम और मृत्यु।"