गरीबी पर एक गंभीर चर्चा / अर्चना चतुर्वेदी

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विश्वास मानिए जितना हमारा देश बड़ा है, हमारे देशवाशियों का दिल उससे भी बहुत बड़ा है। उस बड़े दिल में गरीबों की चिंता भरी पड़ी है। हर वक्त सिर्फ गरीब चिंता। करें भी क्यों नहीं?

एक गरीब ही तो है जो हमारे देश में फ्री में उपलब्ध है।

उसकी चिंता करना मजबूरी है इसलिए इस देश की संसद से सड़क तक सभी गरीब की चर्चा में मशगूल हैं।

हमारे यहाँ गरीब इतना इजिली अवेलेवल है, इसलिए हमारे देश में गरीबों की कद्र भी बहुत है। हमारे यहाँ का तो सबसे होट टोपिक भी यही है चूँकि वो बेचारा रस्ते पर है इसलिए सबसे सस्ता वही है 'रस्ते का माल सस्ते में'। औरतें किट्टी में जाएँगी तो अपने पति से ज्यादा अपनी कामवाली और ड्राइवर की बातें करेंगी। लोग दो-दो रुपये के लिए रिक्शेवाले से लड़ेंगे, पचास पैसे के लिए धोबी से बहसेंगे और तो और हमारे देश की सरकार का चलना और गिरना भी गरीब पर निर्भर है।

गरीब तो हमारे देश का मोस्ट डिजायरेबल पर्सन है यानी अतिवांछित अरे भई गरीब नहीं होगा तो हिकारत से किसे देखेंगे।

रईसों को गाड़ी के नीचे कुचलने के लिए गरीब चाहिए, गरीब नहीं होगा तो हमारे नेता किसकी झुग्गी में रात बिताएँगे? चुनावों के वक्त फ्री की शराब किसे पिलाएँगे, फ्री लैपटॉप और टीवी किसे देंगे? उसके हिस्से का खाना चट करना उनका दायित्व होगा, गरीब भूखा ना रहे तो गरीब कैसा?

गरीबी हटाओ का नारा लगाते लगाते गरीबों को ही हटा डालेंगे। और तो और गरीब बेचारे के तो खाने पर भी बहस कि वो कितने रुपये में खाएगा, कितने रुपये रोज खर्च करने वाला गरीब है?

दूसरी तरफ बेचारा गरीब इन सब बहसों और राजनीति से अनजान हाड़ तोड़ मेहनत करके अपने लिए दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में लगा है और ये लोग वातानुकूलित कमरे में छप्पन भोग खाते हुए और पंद्रह रुपये की पानी की बोतल डकारते हुए गरीब के लिए पाँच रुपये और बारह रुपये में थाली का सपना दिखा रहे हैं।

अजी ये तो कुछ भी नहीं हमारे देश में तो लक्ष्मी जी को भी चैलेंज किया जा रहा है यानी इस देश में सिर्फ खास जाति वाले ही गरीब हो सकते हैं और किसी को गरीब होने का कोई अधिकार नहीं।

गरीब ऐसा प्राणी है जिस पर जब मर्जी आप अपनी भड़ास निकालें, जब मर्जी उस पर बहस करें। कभी उसे भूखा मारें कभी उसके बच्चों को खिलाकर मार दें, वो बेचारा कुछ नहीं कहेगा क्योंकि वो तो गरीब है।

कभी आप खुद कोई बड़ा कारनामा करें और बदले में अपने गरीब नौकर को फँसा दें, कभी उसकी गरीबी पर संसद में या टीवी पर बहस करें, आप आजाद हैं।

हम आम आदमी और खास आदमी की बात करते हैं पर गरीब सिर्फ गरीब होता है और उसे पता होता है कि गरीबी के साथ कैसे जिया जाता है और वो बेचारा अपना पूरा जीवन ये सीखने में लगा देता है कि गरीबी के वावजूद मरने से कैसे बचा जा सकता है। इधर नेता पाँच रुपये में उसका पेट भरने की बात कर रहे हैं उधर वो पट्ठा तो आधी रोटी में पेट कैसे भरा जाए या बिना खाए दो तीन दिन कैसे जिंदा रहा जाए ये सीख रहा है।

वो बीमार पड़ता है तो सरकारी अस्पताल वाले भी दुत्कार देते हैं। जब आप और हम हीटर चला कर गर्म रजाई लेकर भी ठंड ठंड चिल्ला रहे होते हैं तब वो पट्ठा आधे कपड़ों में काँप काँप कर ही अपना बदन गर्म कर रहा होता है।

गर्मी की चिलचिलाती धूप में भी लाल बत्ती पर भीख माँग रहा होता है या कुछ बेचता है पर कभी शिकायत नहीं करता। कभी अमीरों के रास्ते में नहीं आता फिर भी हम क्यों उसके पीछे पड़े रहते हैं। गरीब के लिए कुछ नहीं कर सकते पर बहस तो कर ही सकते हैं, लोगों को दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं कि भई देखो हम गरीब के कितने बड़े शुभचिंतक हैं। हमारी सोच और गंदी राजनीति की वजह से गरीबों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। आज हम बहस इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि गरीब चुप है। यदि प्याज महँगी हो जाए तो हम शोर मचा डालते हैं फेसबुक और ट्विटर पर आ जाते है, सड़कों पर आ जाते हैं, वाह! हम प्याज के बिना नहीं रह सकते वो बेचारा रोटी के बिना रहता है और चुप है। उसकी भूख की हमें भी चिंता नहीं इसलिए हम भी चुप हैं।

किसी ने सोचा है कि सारे गरीब एक हो गए या गरीब ने चुप्पी तोड़ दी तो क्या होगा? आपका तो पता नहीं पर मुझे उस दिन का बेसब्री से इंतजार है।