गर्म लंबा ठंडा रोज़ा / शमशाद इलाही अंसारी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘भाई जी वापसी की टिकट कब की बुक कराई है’ ?

सऊदी में काम कर रहे व्यक्ति ने कनैडा के मित्र को स्काईप पर हो रही वार्ता में जबाव दिया।

‘४ जौलाई’।

‘४ जौलाई क्यों? रोज़े चालू हो ही गए हैं तो ईद के बाद आओ, इस महीने की तनख्वाह तो फ्री की ही है, उसका नुकसान क्यों कर रहे हो, रमजान के दिनों में वहां काम होता कहाँ है? मालिक लोग या तो यूरोप निकल जाते हैं अगर नहीं गए तो अपने घरो में रहते है, नौकर लोग दस बजे से जोहर की नमाज़ तक दफतरों में अधमरे से हुए रहते है। जोहर के बाद घर जाकर इफ्तारी तक दबाकर सोते है। लोकल सऊदी बेचारे रात भर जाग-जाग कर सहरी का इंतज़ार करते फिर फजिर की नमाज़ के बाद बिस्तर पकड’। बात अभी पूरी ही नहीं हुई थी कि वह बीच में टोकते हुए बोला।

‘। नहीं भाई इधर गर्मी बहुत है’।

‘ओह, उधर गर्म है लेकिन इधर लंबा बहुत है। आप कौन सा ऊँट पर बैठ कर आफिस जाते हो हुज़ूर’? कनैडियन मित्र ने मझाईया लहज़े में जवाब दिया।

‘लंबा भले ही हो लेकिन ठंडा तो है’।

‘अच्छा आपको ठंडा रोज़ा चाहिए, भले ही लंबा हो सुबह ५:३९ से रात ९:०४ तक सूरज रहता है इधर, फीता डाल कर नाप लो हुजूर’ ।

‘तौबा तौबा, आप कैसी बाते करते है करामत भाई, नाऊज़बिल्लाह’।

‘भाई जी करामत का काम है ठोक पीट करना, भले ही रोज़ा क्यों न हो’।

सऊदी से बात कर रहे सलीम ने स्काईप आफ़ कर दिया।