गाइड : सूक्ष्म अध्यात्म की ठोस छवियां / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
गाइड : सूक्ष्म अध्यात्म की ठोस छवियां
प्रकाशन तिथि :10 फरवरी 2015


सुनील आनंद विजय आनंद द्वारा निर्देशित, अपने पिता देव आनंद द्वारा अभिनीत "गाइड' का ध्वनि-पट्ट डॉल्बी ध्वनि में कराते हुए मूल प्रिंट में आई कमियों को हटाकर उसका रूपांतरण डिजिटल में कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि आरके लक्ष्मण के भाई केए नारायण के अंग्रेजी भाषा में लिखे उपन्यास पर नोबल पुरस्कार विजेता पर्ल एस बक ने देव आनंद के साथ मिलकर इसका अंग्रेजी संस्करण बनाया था और हिन्दुस्तानी संस्करण विजय आनंद ने स्वयं उसे नए सिरे से लिखकर अपनी मौलिक शैली में फिल्माया था। फिल्म के गीत शैलेन्द्र के और संगीत सचिन देव बर्मन का था। ज्ञातव्य है कि एक गीत के फिल्मांकन के लिए तीन भव्य सेट लगाए गए थे परन्तु शैलेन्द्र के बीमार होने के कारण एक माह तक शूटिंग नहीं हुई और सारे कलाकारों के आग्रह के बाद भी विजय आनंद ने किसी और गीतकार से गीत नहीं लिखाया। सारे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं और "तोड़ के बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है' नायिका के पूरे व्यक्तित्व के संघर्ष और नए निर्णय का प्रतीक है। यह फिल्म वहीदा रहमान के श्रेष्ठतम अभिनय के लिए भी याद की जाती है।

ज्ञातव्य है कि विजय आनंद की "गाइड' के पहले की फिल्मों पर हॉलीवुड के युद्ध काल में बने नोए सिनेमा का जबर्दस्त प्रभाव रहा है। परन्तु "गाइड' में हम नया विजय आनंद देखते हैं। वह सभी विदेशी प्रभावों से मुक्त खांटी हिन्दुस्तानी फिल्मकार के रूप में उभरते हैं और उनके साथी गुरुदत्त भी प्रभावों से मुक्त होकर "प्यासा' बना चुके थे।

ज्ञातव्य है कि विजय आनंद ने आचार्य रजनीश से अध्यात्म के पाठ सन् 75 के बाद पढ़े परन्तु अपनी फिल्म "काला बाजार' में उनका नायक सिनेमा टिकटों की काला बाजारी छाेड़कर काले धंधे के अपने साथियों सहित "सफेद बाजार' का निर्माण करता है और उसकी यह काया पलट नायिका से प्रेम के कारण होती है। "काला बाजार' की आखिरी रीलों में नायक अपराधी के कटघरे में खड़ा है परन्तु वह झूठ बोलकर बचना नहीं चाहता। काला बाजार का क्लाइमैक्स अपने दिव्य और विराट स्वरूप में गाइड का क्लाइमैक्स बनकर उभरता है। इसी दृश्य से नायक की अपने मन के भीतर की सत्य-पथ की यात्रा आरंभ होती है। यह भी संभव है कि उन्हीं दिनों उस पात्र के रचनाकार विजय आनंद भी भीतर की यात्रा पर निकल पड़े थे। इसी मन:स्थिति में उन्होंने "गाइड' बनाई जिसमें जालसाजी की सजा भुगतकर नायक अनजान राह पर चल पड़ता है और अनचाहे ही उस अपराधी रहे व्यक्ति को अंचल के भोले लोग महात्मा समझने लगते हैं और भारी भीतरी संघर्ष के बाद वह हजारों की आस्था के खातिर वर्षा के लिए लंबा उपवास करता है।

"गाइड' के यह अंतिम चालीस मिनट मनुष्य के भीतर द्वंद्व और आस्था के मार्ग पर एक अपराधी रहे आदमी के सत्य तक पहुंचने काे भावना की तीव्रता के साथ प्रस्तुत करते हैं। सारी उम्र देव आनंद की छवि एक महानगरीय अलमस्त युवा की रही और "गाइड' की भूमिका में उसका विश्वसनीय अभिनय उसके भीतर के लोहे का सबूत है। उसने स्वयं कभी गंभीर भूमिकाओं का आग्रह कभी नहीं किया था। "गाइड' के पहले और "गाइड' के बाद का देव आनंद सतही रहा है। इस कथा के पारस ने देव आनंद और विजय आनंद दोनों को अपना श्रेष्ठतम देने के लिए प्रेरित किया। सचिन देव बर्मन ने "मेघ दे पानी दे, अल्लाह गुड़ धानी दे' इत्यादि में अपनी गहराई को प्रस्तुत किया। शैलेन्द्र तो हर फिल्म में अपने पूरे ताप के साथ ही प्रस्तुत होते थे। "गाइड' के नवीनीकरण का स्वागत है।