गाय पर निबंध / कुबेर

Gadya Kosh से
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एक मित्र महानगर के संभ्रात कालोनी में सपरिवार निवास करते हैं। परिवार में एक अदद् पत्नी के अलावा एक पुत्री भी है। मित्र सरकारी प्रशासनिक अधिकारी हैं। पत्नी भी किसी मल्टीनेशनल कंपनी में अधिकारी हैं। वयःसंधि पार कर रही पुत्री पब्लिक स्कूल में पढ़ती हैं। सबकी अपनी-अपनी व्यस्तता है। उस दिन शाम के समय मैं उनके यहाँ एक घंटे के लिए मेहमान था।

मित्र इस बात के लिये मेरा बार-बार आभार मान रहे थे कि आज की शाम, चाहे एक घंटे के लिये ही सही; सिर्फ मेरी वजह से, अर्से बाद परिवार के सभी लोग एक साथ बैठ पा रहे हैं और इसलिये भी कि अपनी भाषा में बचपन से लेकर स्कूल तक की मस्तियों की चर्चा होगी, पुरानी यादें ताजा होंगी, अपनापन लौट आएगा।

चाय पर उन्होंने अपनी पत्नी और पुत्री से मेरा परिचय कराया। पता चला कि उनके घर की भाषा अंग्रेजी है। वे एक दूसरे से अंग्रेजी में ही बातें कर रहे थे। मैंने उनकी पत्नी और पुत्री से औपचारिकता के कुछ वाक्य कहने की कोशिश की। मेरी भाषा देशी थी। उन लोगों ने जवाब अंग्रेजी में दिया। इस दौरान यद्यपि उन लोगों के चेहरों पर औपचारिक मुस्कानें तैर रही थी परन्तु उनकी शारीरिक भाषा से साफ जाहिर हो रहा था कि उन्हें मुझमें और मेरी भाषा में कोई रूचि नहीं है।

मित्र महोदय और मैं अपनी देशी भाषा में लगातार गप्पें लड़ा रहे थे। बीच-बीच में ठहाके भी लग जाते थे। उन लोगों को शायद हम लोगों का इतना अनौपचारिक हो जाना और इस तरीके से ठहाके लगाना भी पसंद नहीं आ रहा था। अपनी झुंझलाहट और नापसंदगी जाहिर करने के लिये वे लगातार मौन धारण किये हुए थे; यद्यपि यदाकदा नौकर को आदेश-निर्देश देते समय उनकी यह मनोदशा जाहिर भी हो जाया करती।

मेहमान की वजह से मेजबान को किसी तरह की कोई तकलीफ हो, यह उचित नहीं था। और यह भी कि उन लोगों के मन में मेरी जितनी भी ऋणात्मक छबियाँ बनी होंगी, उन्हें मिटाना भी जरूरी था, अतः अब उन लोगों के साथ मैं अंग्रेजी में बातें करने लगा।

उनके चेहरों पर रौनक लौट आई।

मिसेज विनोद, अर्थात मित्र की पत्नी जिन्हें भाभी संबोधन शायद पसंद नहीं था, और बातों ही बातों में उन्होंने इस बात का संकेत भी दे दिया था; लगातार अपनी बेटी की इंटेलीजेंसी का बखान कर रही थी कि किस प्रकार वह न सिर्फ पढ़ाई में, बल्कि डिबेट्स, कल्चरल एक्टिविटीज और अदर एक्टिविटीज में भी अपने क्लास और स्कूल में हमेशा अव्वल रहती है, सबसे अधिक मार्क्स लेती है। अंग्रेजी में तो उनका कोई मुकाबला ही नहीं है। पर उन्होंने यह भी बताया कि उनके घर में और इस कालोनी में सबसे अच्छी हिन्दी उन्हीं की है। इस वजह से कॉलोनी में भी लोग उन्हें मानते हैं। स्वयं को सिद्ध करने के लिये उन्होंने उनकी पिछले सप्ताह के टेस्ट की कापी मेरे सामने रख दी।

कापी दस में दस अंकों के साथ जंची हुई थी और शिक्षक के साथ पालकों के द्वारा भी हस्ताक्षरित थी। उसमें गाय पर हिन्दी में निबंध लिखा हुआ था जिसका मजमून इस प्रकार था।

’गाय एक ग्लोबल एनिमल है। हमारे देश में यह सड़कों के किनारे अथवा मैदानों में इधर-उधर लावारिश हालत में घूमती हुई देखी जा सकती है। यह सड़कों पर पड़े हुए रद्दी पेपर, पॉलीथिन और कचरों को खाती है। इनकी वजह से ट्रैफिक बुरी तरह से इफेक्टेड होती है। मोस्टली एक्सीडेंट इन्हीं की वजह से हुआ करती है। इनके बदबूदार डंग से इन्वायरनमेंट पाल्यूट और इन्फेक्टेड होता है। यद्यपि ये सीधी होती हैं पर इनके पाइन्टेड हॉर्न्स टेरिबल होते हैं और इससे पब्लिक की जान को हमेंशा रिस्क रहता है।

गवर्नमेंट को चाहिये कि वह इनके रिहैबिलिटेशन के लिये काम करे।

इनकी कई व्हैरायटीज होती हैं। अच्छे किस्म की गायें विदेशों में पाई जाती है। वहाँ मांस और चमड़े के लिये इनकी फार्मिंग होती हैं। इनका मांस काफी न्यूट्रिसियश और डेलीसियस होती है। हमारे देश के स्लम एरियाज के अंडर पावर्टी लाईन के लोगों के माल न्यूट्रिशन प्रॉब्लम को इससे कन्ट्रोल किया जा सकता है। पर इसके लिये हमारे देश के गायों की नस्लों को सुधारने और इसकी वेल प्लान्ड फॉर्मिंग की जरूरत है।

हमारे मदर्स-फादर्स मोस्टली हमारे घरों में हमारे साथ ही रहते हैं पर पता नहीं क्यों, हिंदू कम्यूनिटीज के लोग इन्हें गो माता कहते और इनकी वरशिप करते हैं। इनकी वजह से कभी-कभी हिन्दू और मुस्लिम कम्युनिटी में कम्यूनल रॉयट्स भी हो जाया करते हैं जिसमें सैकड़ों लोग मारे जाते हैं और हजारों इन्जर्ड होते हैं। गाय जैसे मोस्ट कॉमन और आवारा एनिमल के लिये कम्यूनल रॉयट्स न सिर्फ हमारे कंट्री के इकानोमी प्रोग्रेस के लिये एक बड़ा हर्डल है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि हमारे देश के लोगों में कल्चरल अवेयरनेस की कमी है।’

मेरा मन हो रहा था कि इस निबंध को बार-बार पढ़ूँ पर मैंने देखा कि मित्र दंपति बार-बार अपनी कलाई घड़ी की ओर देख रही है। संभवतः मेरे लिये आबंटित एक घंटे का निर्धारित अवधि समाप्त हो चुका था और मेरा विदा न लेना उनके लिये कष्टकर हो रहा था।