गिले शिकवों की पोटली / अंजू खरबंदा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रिन्नी काफी दिनों से बीमार चल रही थी । न आफिस जा पा रही थी और न ही ठीक से घर संभाल पा रही थी । कई डाक्टरों को दिखाया पर कहीं संतोषजनक जवाब नहीं मिला । सुकेश जैसे तैसे मैनेज कर रहा था ।

बचपन की सहेली रीता को पता चला तो वह मिलने के लिए उसके घर पहुँच गई । पूरा घर अस्त-व्यस्त पङा था । महरी आकर झाडू-पोंछा बर्तन तो कर जाती पर बाकी.... ।

रीता कुछ देर रिन्नी के पास बैठी । उसका सिर सहलाती रही । हल्की फुल्की बातचीत करती रही फिर उसके लिए अदरक वाली चाय बनाकर लाई । उसे तकिये के सहारे बिठा जैसे ही खिड़की के परदे हटाए वैसे ही छनछनाती रोशनी कमरे में भर गई । कमरा समेटते हुए रीता को अखबारों के बीच एक डायरी मिली ।

"रिन्नी ! ये डायरी तेरे काम की है या कबाड़ में फेंक दूँ !"

"दिखा तो जरा ! अरे ये कहाँ मिली । मुझे रोज डायरी लिखने की आदत थी । रोज रात को सोने से पहले जरूर लिखा करती । अब तो बहुत दिनों से नहीं लिख पाई ।"

"अच्छा जी ! क्या लिखा है डायरी में, देखूँ तो जरा !"

कहकर रीता ने डायरी खोली और पढ़ने लगी । पन्ना दर पन्ना पढ़ती ही चली गई...

"आज छोटी ननद ऊषा ने नमक कम होने पर कैसी जली- कटी सुना दी । मौका आने पर बदला न लिया तो मेरा नाम भी रिन्नी नहीं ।"

"आज सुबह-सुबह सुकेश ने चार बातें सुना दी। पता नहीं ये पति अपने आप को समझते क्या हैं!"

"आज आफिस में फाइल न मिलने पर अर्चना से फालतू की बहस हो गई । छोटी पोस्ट पर होकर भी जुबान चलाती है मुझसे ।"

"आज बच्चों का रिजल्ट लेने स्कूल गई । क्लास टीचर ने खरी खोटी सुनाकर सारे मूड का सत्यानाश कर दिया ।"

"कल सासू माँ आ रही है गाँव से । अब जाने कितने दिन उनकी चाकरी करनी होगी ।"

"रिन्नी...अब समझ आया तेरी बीमारी का कारण! ये जो गिले शिकवों की पोटली तूने अपने दिल पर रखी है ना... यही भार ही तेरी सारी परेशानियों का कारण है ।"

"मतलब !" रिन्नी ने चौंक कर पूछा ।

"पहले तूने इन बातों को सुना, फिर सोचा, फिर रात होने तक दिल में रखा ताकि डायरी में लिख सके । परत दर परत जमा लिया इन नकारात्मक बातों को अपने अंदर ।"

"तो क्या करूँ! भूल जाऊँ सब !"

"हाँ ! भूल जा सब गिले शिकवे...दिल से निकाल फ़ेंक इन्हें और बिंदास जिंदगी जी । इस तरह घुल घुलकर जियेगी तो बीमार तो पड़ेगी ही ना !"

इतना कहकर रीता ने डायरी को आग के हवाले कर दिया ।

-0-