गुरुदेव टैगोर की मूर्ति पर पथराव क्यों? / जयप्रकाश चौकसे

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गुरुदेव टैगोर की मूर्ति पर पथराव क्यों?
प्रकाशन तिथि : 12 मार्च 2019


यह दुखदायी और हृदय विदारक खबर है कि कोलकाता में रवींद्रनाथ टैगोर की मूर्ति पर तीन युवा पत्थर फेंकते हुए देखे गए और उनमें से पकड़े गए एक युवक का नाम मंडल है। सांस्कृतिक मूल्यों के पतन के दौर में बात इतनी गिर सकती है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान व्यक्ति की मूर्ति पर पथराव होने लगे। अगर राजनीति से जुड़े व्यक्ति की मूर्ति पर पथराव हो तो इसे चुनावी दौर की दरिंदगी माना जा सकता है, पर इसे क्या कहें? भारत में साहित्य के लिए एकमात्र नोबेल पुरस्कार पाने वाले गुरुदेव ने कहानियां, उपन्यास और कविताएं लिखने के साथ चित्रकारी भी की है और संगीत के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। रवींद्र संगीत एक स्कूल भी है। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर का सृजन इतना अधिक है कि हजार चौरासी लोगों का जमा जोड़ काम भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता। इतना ही नहीं गुरुदेव कोलकाता में स्थापित थिएटर्स कॉर्पोरेट के भी प्रेरणा स्रोत रहे और जब संस्था की पहली सात फिल्में बड़े दर्शक वर्ग को सिनेमाघरों तक लाने में विफल रही, तब संस्था पर दबाव बढ़ गया। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने स्वयं अपनी रचना 'नटीर पूजा' पर एक फिल्म भी निर्देशित की परंतु वह भी विफल हो गई। गुरुदेव ने परामर्श दिया कि शिशिर भादुड़ी के नाटक 'सीता' से प्रेरित फिल्म बनाएं। एंडरसन नाटक कंपनी कोलकाता के दौरे पर आई हुई थी और गुरुदेव ने उसके नाटकों में पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे को अभिनय करते देखा था। उनके कहने पर ही पृथ्वीराज कपूर और दुर्गा खोटे अभिनीत फिल्म 'सीता' बनाई गई और खूब सफल रही। न्यू थिएटर्स फिल्म निर्माण संस्था आर्थिक रूप से सशक्त हो गई।

ज्ञातव्य है कि इसी कंपनी ने केएल सहगल अभिनीत 'देवदास' का निर्माण किया। शरद बाबू की 'देवदास' से प्रेरित यह दूसरा प्रयास था। 1925 में मूक सिनेमा के दौर में 'देवदास' प्रेरित फिल्म बनी थी। 'देवदास' सभी भारतीय भाषाओं में बार-बार फिल्माई गई। 'देवदास' प्रेरित फिल्में बनती रहेंगी, क्योंकि पारो और चंद्रमुखी भी जन्म लेती रहती हैं। समाज की संकीर्णता व कूपमंडूकता भी हिंसक होती रही है। आजकल ऑनर किलिंग के नाम पर जाति के सम्मान के लिए युवा प्रेमियों की हत्या कर देते हैं। कहा जाता है विमल राय द्वारा निर्देशित एवं दिलीप कुमार अभिनीत देवदास से बेहतर फिल्म बनाना संभव नहीं है। 'देवदास' ने समय रहते अपने रूढ़िवादी एवं मान सम्मान के छद्‌म स्वरूप से ग्रसित पिता का विरोध नहीं करते हुए पलायन कर दिया। शराबनोशी में अपने को गर्त करते हुए वह इस शराबनोशी को सविनय अवज्ञा आंदोलन समझता रहा। बंगाल का युवा वर्ग हमेशा सजग रहा है और अपने क्रोध को उसने नक्सली गलियों में भी मंडराने दिया और प्रेरक नेतृत्व मिलते ही नक्सली हिंसा का मार्ग तज दिया। हाल ही में कोलकाता के क्रिकेट संगठन दफ्तर पर संकीर्णता ग्रसित लोगों के हमले को आम बंगाली ने विफल कर दिया। पूरे देश में संकीर्णता व नफरत की लहरें हिलोरे ले रही हैं और संभव है कि इन लहरों के बहाव में आकर किसी दिशाहीन युवा ने गुरुदेव के मूर्ति पर पत्थर फेंके हों। यह अजीब मंजर है कि एक ओर भव्य मूर्तियां बनाई जा रही हैं और दूसरी ओर एक संपूर्ण सृजनधर्मी की मूर्ति पर पत्थर फेंके जा रहे हैं। अंधड़ का यह कैसा दौर है। शम्मी कपूर की फिल्म 'उजाला' का गीत याद आ रहा है। 'वहशत है फिजाओं में, यह कैसा जहर फैला दुनिया की हवाओं में'।

बंगाल के लोगों को अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व रहा है। 'इंग्लिश ऑगस्ट' नामक फिल्म में एक पात्र के कथन का सार यह है कि मन मसोसकर बंगाली यह मानते हैं कि महाभारत एक महान ग्रंथ है जिसे किसी बंगाली ने नहीं लिखा है। संभवत फिल्म का नाम 'इंग्लिश रिक्वीम' है। कुछ लोगों का कहना है कि बंगाल महज प्रांत नहीं वरन एक संपूर्ण राष्ट्र है। इसे अविभाज्य भारत से अलग नहीं मानना चाहिए, यह केवल अपनी धरोहर के प्रति आस्था है। शरत बाबू की तरह ही गुरुदेव टैगोर के साहित्य से प्रेरित फिल्में बनी हैं। फिल्म आस्वाद के जानकर यह मानते हैं कि सत्यजीत रॉय की सर्वश्रेष्ठ फिल्म 'चारु लता' है। मूल कथा का नाम 'नष्टनीड़'है। फिल्मकार तपन सिन्हा की 'क्षुधित पाषाण' भी गुरुदेव की रचना से प्रेरित फिल्म है। आज किन हाथों में पत्थर हैं और किसने उन्हें उकसाया कि गुरुदेव की मूर्ति पर पत्थर फेंके? क्या ये युवा किसी पारो को खोकर शराबनोशी करने वाले युवा हैं? क्या ये किसी नौका के डूबने की दुर्घटना से बचाने वाले लोग हैं।

ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी को गुरुदेव ने एक पत्र लिखा था। जिसका सार कुछ इस तरह है कि स्वतंत्रता संग्राम में देश प्रेम का शंखनाद किया जाना आवश्यक हो सकता है परंतु स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद देश प्रेम का उग्र एवं हिंसक स्वरूप का उदय हो सकता है। संभवत इसी स्वरूप में गुरुदेव की मूर्ति पर पत्थर फेंके हैं।