गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का पावन स्मरण / जयप्रकाश चौकसे

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गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का पावन स्मरण
प्रकाशन तिथि :11 मई 2016


रवींद्रनाथ टैगोर 7 मई 1861 में जन्मे। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। टैगोर परिवार में प्रतिभा का जन्म पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा बन चुका था। साहित्य, कला और संस्कृति संसार में टैगोर एक शपथ है, संस्कृति का संविधान है और कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार रवींद्रनाथ टैगोर को मिला। उनकी गीतांजलि दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुदित हुई। अदालत में गीता या बाइबिल की शपथ खाई जाती है, अदब और तहजीब के जहां में टैगोर की शपथ खाई जा सकती है। बंगाली भाषी शरतचंद्र की रचनाओं पर सबसे अधिक फिल्में बनी हैं। टैगोर से प्रेरित फिल्मों की संख्या नंबर दो पर है। शरत की छद‌्म नाम से प्रकाशित प्रारंभिक रचनाओं को उस दौर के अनगिनत पाठक टैगोर का ही छद‌्म नाम समझते रहे और टैगोर ने इसका खंडन किया। शरत प्रेरित फिल्में महिला हृदय में शूट की गई लगती हैं तो टैगोर की रचनाओं का लोकेशन मानव अवचेतन रहा है और शायद उसे बुरी नज़र से बचाने के लिए ही तपन सिन्हा की 'क्षुधित पाषाण' के प्रारंभिक दृश्य के ध्वनि पट्‌ट पर गूंजता है, 'यह झूठ है।'

रवींद्रनाथ ने परिवार की पाठशाला में ही उन्होंने जीवन मूल्यों से आच्छादित शिक्षा पाई। आज शिक्षा को सफलता और परीक्षा में प्रवीणता के साथ बांधकर जीवन मूल्यों से दूर कर दिया गया है। भ्रष्टाचार की जड़ इसी मूल्यरहित शिक्षा में हैं। कितने सुखद आश्चर्य की बात है कि कभी पाठशाला नहीं जाने वाले व्यक्ति ने श्रेष्ठ शिक्षा संस्था शांति निकेतन की स्थापना की जहां से प्रशिक्षित अनगिनत लोगों ने सार्थक जीवन जिया है। इंदिरा गांधी और सिनेमा में मनुष्य करुणा के गायक सत्यजीत राय। ज्ञातव्य है कि सत्यजीत राय ने ही नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' का कवर डिज़ाइन किया था। महान लोग कैसे एक-दूसरे का स्पर्श करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। राय की अपु त्रिवेणी नेहरू की भारत एक खोज के अध्याय लगते हैं। जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तो उनके एक आला अफसर ने सत्यजीत राय द्वारा मांगी विदेशी मुद्रा का आवेदन रद्‌द कर दिया था। खबर प्रकाशित होने पर इंदिराजी ने अफसर को फटकारा और विदेशी मुद्रा प्रदान की। दरअसल, उस अफसर को यह जानकारी थी कि इंदिराजी द्वारा सत्यजीत राय से प्रार्थना की गई थी कि वे नेहरू पर वृत्तचित्र बनाएं और राय महोदय इनकार कर चुके थे। कई नेताओं का कद उनके अफसरों ने घटाया है।

कोलकाता में गठित न्यू थिएटर्स नामक फिल्म कंपनी से अनौपचारिक रूप से गुरु रवींद्रनाथ जुड़े थे और अपनी रचना 'नष्ट नीड' पर उन्होंने फिल्म निर्देशित भी की थी। सात फिल्मों की असफलता से कंपनी की नींव हिल गई थी। उस समय गुरुदेव टैगोर के परामर्श पर ही शिशिर भादुड़ी के नाटक पर 'सीता' फिल्म बनाई गई, जिसमें पृथ्वीराज कपूर ने राम की भूमिका तथा दुर्गा खोटे ने सीता की भूमिका का निर्वाह किया और 'सीता' की अपार सफलता के कारण ही न्यू थिएटर्स बचा, जिसके लिए बरुआ ने सहगल अभिनीत 'देवदास' की रचना की। 'नष्ट नीड' पर सत्यजीत राय ने 'चारुलता' बनाई, जिसे उनकी श्रेष्ठतम फिल्म भी माना जाता है। इसी 'चारुलता' को अनुराग बसु ने एंड टीवी के लिए भी बनाया है। टैगोर की 'काबुलीवाला' बंगाली और हिंदुस्तानी भाषाओं में भी बनी है और रंगमंच से जुड़े रमेश तलवार ने काबुलीवाला के दो पात्र लेकर विलक्षण नाटक भी प्रस्तुत किया था। इस नाटक में काबुलीवाला में जिस अबोध बच्ची के प्रति काबुलीवाला के मन में पुत्री प्रेम जागृत होता है, उसी अबोध कन्या की डॉक्टर पोती यह साहसी निर्णय लेती है कि वह कोलकाता की सुरक्षित नौकरी छोड़कर अमेरिका द्वारा सताए जा रहे काबुल के रहवासियों की सेवा के लिए अफगानिस्तान जाएगी। संभव है कि काबुल प्रवास में उसे उसी काबुलीवाले का कोई पौत्र मिल जाए।

दरअसल, काल्पनिक पात्रों की प्रेरणा देने वाले यथार्थ के व्यक्तियों से मिलना या उनकी खोज रोचक अनुभव हो सकता है। भोपाल के डॉक्टर शिवदत्त शुक्ला ने मुझे 'शेडो ऑफ विंड' उपन्यास दिया था, जिसका नायक अपने प्रिय लेखक की खोज में निकल पड़ता है, जिसे दुनिया मृत समझती है। नायक उसे खोज लेता है। यह संव है कि वह भी फिल्म 'प्यासा' के नायक की तरह सोचता हो कि 'ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।'