गुरु-शिष्य परम्परा की फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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गुरु-शिष्य परम्परा की फिल्में
प्रकाशन तिथि :05 फरवरी 2018


भारत की संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा प्रतिष्ठित है। हमारे पहले राष्ट्रपति राधाकृष्णन का जन्म दिन पांच सितंबर शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। महाभारत का पात्र एकलव्य क्षत्रिय नहीं था, इसलिए उसे गुरु से ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। उसने अपने गुरु की प्रतिमा बनाकर उसके सामने अभ्यास किया और कालांतर में एकलव्य गुरु के प्रिय शिष्य अर्जुन को परास्त कर सकता है, इस भय से गुरु ने गुरु दक्षिणा में उसका अंगूठा मांग लिया ताकि वह बाण ही नहीं चला पाए। इस तरह इस परम्परा का दुरुपयोग भी हुआ है। कुरुक्षेत्र में दोनों ही पक्ष कुछ न कुछ कलंकित भी रहे हैं, जिसने एक गलत बात को लोकप्रिय सत्य बना लिया है कि प्रेम और युद्ध में सबकुछ जायज है। प्रेम एक अद्वितीय अनुभूति है और उसमें किसी भी अन्याय या अपवित्र धारणा को शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए। गांधीजी का कथन ही चिरंतन सत्य है कि साधन अपवित्र होने पर साध्य भी कलंकित हो जाता है।

राज कपूर की 'प्रेम रोग' के एक दृश्य में बड़े ठाकुर साहब गरीब पंडित के भांजे को बुलाकर यह कहते हैं कि वह उनकी विधवा भतीजी -जिससे वह प्रेम करता है- को लेकर भाग जाए और सारी व्यवस्था वे स्वयं कर देंगे तो नायक इनकार कर देता है। वह कहता है कि कुरीतियों के खिलाफ वह धर्मयुद्ध लड़ रहा है और कोई अनुचित कार्य नहीं करेगा। वह सरेआम शादी करना चाहता है और आपको अपनी बेटी को सरेआम बाकायदा विदा करना होगा। इस तरह साधन की अपवित्रता से साध्य के कलंकित हो जाने की बात को प्रतिपादित किया गया है। शाश्वत जीवन मूल्यों से प्रेरित फिल्में सामूहिक अवचेतन में अपना स्थान बना लेती है। आज यथार्थ यह है कि शिष्य गुरु को ठेंगा दिखाता है। कक्षा में मनोयोग से नहीं पढ़ाते हुए, चुटकुल सुनाने वाला शिक्षक जो प्राइवेट ट्यूशन के धंधे में डूबा हुआ है उसे शिष्य क्यों आदर देगा? अपने विषय के जानकार समर्पित शिक्षक के जीवन संघर्ष पर ऋषि कपूर एवं नीतू सिंह अभिनीत मनोरंजक फिल्म हबीब फैज़ल ने बनाई थी- 'दो दुनी चार।'

फिल्मकार नीरज पांडे की फिल्म 'अय्यारी' में गुरु-शिष्य परम्परा को फौजी जीवन की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया गया है। मनोज बाजपेयी अभिनीत पात्र वह शिक्षक है, जिसने युवा मल्होत्रा अभिनीत पात्र को को प्रशिक्षित किया है। सेना के प्रशिक्षण संस्थान में कड़ी मेहनत कराई जाती है। एक अमेरिकन फिल्म में गुरु गोरा अफसर है, जिसने अपने अश्वेत अमेरिकी छात्र पर प्रशिक्षण के दौरान बड़े जुल्म ढाए हैं परंतु छात्र की अास्था मजबूत है। वह गुरु का सम्मान करता है। इसी फिल्म का देशी चरबा टीनू आनंद ने अमिताभ बच्चन एवं अजय देवगन अभिनीत फिल्म 'मेजर साहब' के नाम से बनाया था परंतु इस तरह के प्रयास कथा के मूल भाव को जानते हुए या भारतीय सेन्सर के भय से अनेदखा कर दिए जाते हैं। अगर फिल्म के मेजर साहब ब्राह्मण होते और कैडर हरिजन होता तो फिल्म को धार मिल जाती।

इसी तरह अबरार अल्वी ने एक प्रसिद्ध नाटक का हिंदुस्तानी संस्करण लिखा था परंतु उन्हें कोई निर्माता नहीं मिला। मूल फिल्म में एक क्रिश्चियन धर्म के मानने वालों की बस्ती में एक घर यहूदी का है, जिसकी सुंदर कन्या से सभी प्रेम करते हैं। फिल्म का नाम था 'फिडलर ऑन द रूफ' जिसमें महान अभिनेता टोपोल ने अभिनय किया था। इस नाटक का सफल मंचन वर्षों तक लंदन में हुआ और एक शो देखने राज कपूर भी गए थे। नाटक समाप्त होने पर टोपोल ने दर्शक दीर्घा में बैठे राज कपूर को मंच पर आमंत्रित करके उन्हें सम्मानित किया था।

गुरु शिष्य रिश्ते पर बनी कुछ फिल्मों में यह भी प्रस्तुत किया गया है कि गुरु की कन्या को मेधावी शिष्य से प्रेम हो जाता है। समस्याओं पर बनाई गई फिल्मों में प्रेम-कथा की समानांतर बहती धारा फिल्म को सफलता दिलाती है। प्रेम ही केंद्रीय शक्ति है। 'किंगकॉन्ग' जैसे विराट जानवर पर अंग्रेजी भाषा में तीन बार फिल्म बनी हैं और सभी संस्करणों में किन्गकॉन्ग कन्या से प्रेम करता है।

बहरहाल विगत दशकों में सबसे बड़ी क्षति यह हुई है कि समर्पित एवं ज्ञानी शिक्षकों का अभाव हो गया है। यह प्रजाती लगभग समाप्त हो गई है।