गुलामगीरी / भाग-16 / जोतीराव गोविंदराव फुले

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[ब्रह्माराक्षसों के उत्पीड़न की क्षय]

धोंडीराव : तात, आपके साथ जो संवाद हुआ, उससे यह सिद्ध होता है कि सभी ब्राह्मणों ने अपने नकली धर्म के नाम पर हमारी भोली−भाली सरकार की आँखों में धूल झोंकी है और हम सभी शूद्रादि−अछूतों का अमेरिका के (काले) गुलामों से ज्यादा शोषण किया। वे आज भी कर रहे हैं। इसलिए हम सभी लोगों को मिल कर इन ब्राह्मणों के बनावटी धर्म का निषेध करना चाहिए और अपने अनपढ़ भाइयों को भी इस संबंध में जागृत करना चाहिए। आप इस बारे में क्यों नहीं सोच रहे हैं? ओर इन लोगों में जाग़ृति लाने का कार्य क्यों नहीं कर रहे हैं?

जोतीराव : मैंने कल ही शाम को इसके लिए एक पर्चा तैयार किया है। मैंने उसे अपने एक साथी को सौंप कर उससे यह कहा है कि उस पर्चे में ह्र्स्व−दीर्घ की जो भी गलतियाँ हों, उनको ठीक कर के, उसकी एक-एक प्रति तैयार कर के सभी ब्राह्मण और ईसाई अखबारवालों के अभिप्राय के लिए भेज दीजिए। उस पर्चे का स्वरुप इस प्रकार है;

शूद्रों को ब्रह्मराक्षसों की गुलामी से

इस प्रकार मुक्त होना चाहिए

मूल ब्राह्मणों के (इराणी) पूर्वजों ने इस देश के मूल निवासियों पर हमला किया। उन्होंने यहाँ के हमारे मूल क्षेत्रवासी पूर्वजों को युद्ध में पराजित किया और उनको अपना गुलाम बना लिया। बाद मंह उनको जिस तरह का मौका प्राप्त होता रहा, उस तरह उन्होंने अपनी सत्ता की मस्ती में कई तरह के मतलबी−नकली धर्म ग्रंथ लिखवाए और उन सबकी एक मजबूत किला बना कर उसमें उन सभी पराजितों को वंश−परंपरा से बंदी बना कर के रखा दिया। वहाँ उन्होंने उनको कई तरह की यातनाएँ दे कर आज तक वे ब्राह्मण-पंडा-पुरोहितों बड़ी मौज−मस्ती में अपना जीवन गुजार रहे हैं। इसी दरम्यान जब अंग्रेज बहादुरों का राज इस देश में कायम हुआ तब से अधिकांश दयालु यूरोपियन और अमेरिकी भले लोगों को हमारा उत्पीड़न अपनी आँखों से देखा नहीं गया। तब उन्होंने हमारे इस जेलखाने में बार-बार आ कर हम लोगों को इस प्रकार का उपदेश दिया कि 'ऐ मेरे भाइयो, आप सभी लोग हमारी तरह ही इंसान है। आपका और हमारा जन्मदाता और पालनकर्ता एक ही है। इसलिए आप सभी लोग हमारी तरह ही तमाम मानवी हकों के हकदार होने के बावजूद, आप लोग इन ब्राह्मणों के नकली वर्चस्व को क्यों मान रहे हैं?' आदि इस तरह की कई महत्वपूर्ण सूचनाओं का अध्ययन करने पर मुझे मेरे स्वाभाविक और सही मानवी अधिकार समझ में आते ही मैंने उस जेलखाने के नकली मुख्य ब्रह्म दरवाजे के किवाड़ों को लात मारा और उस जेकखाने से बाहर निकल आया। इस ब्राह्मण कैदखान से निकलने के बाद मैंने अपने निर्माता के प्रति आभार व्यक्त किया।

अब मैं उन परोपकारी यूरोपियन उपदेशकों के आँगन में अपना डेरा डाल कर कुछ आराम करने से पहले यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि :

ब्राह्मणों के जिन प्रमुख धर्मग्रंथों के आधार पर हम (शूद्रादि−अतिशूद्र) लोग ब्राह्मणों के गुलाम है और उनके अन्य कई ग्रंथों−शास्त्रों में हमारी गुलामी का समर्थन में लेख लिखे हुए मिलते हैं, उन सभी ग्रंथों का, धर्मशास्त्रों का और उसका जिन−जिन धर्मशास्त्रों के संबंध में होगा, उन सभी धर्मग्रंथों का हम निषेध करते हैं। उसी तरह जिन धर्मग्रंथों के आधार पर (फिर वह किसी भी देश का या धर्म के विचारवान व्यक्ति द्वारा तैयार किया हुआ क्यों न हो) सभी लोगों को समान रूप से सभी वस्तुओं का, सभी मानवी अधिकारों का समान रूप से उपभोग लेने की इजाजत हो, उस तरह के ग्रंथकर्ता को मैं अपने निर्माता के संबंध में छोटा भाई समझ कर उस तरह अपना आचरण रखुँगा।

दूसरी बात यह है कि लोग अपनी एकतरफी सोच के अहंकार में जबर्दस्ती किसी को भी नीच समझने लायक आचरण करने लगते हैं, उन लोगों को उस तरह का आचरण करने का मौका दे कर मैं अपने निर्माता द्वारा निर्मित पवित्र अधिकारों के नियमों को धब्बा नहीं लगाऊँगा।

तीसरी बात यह है कि जो गुलाम (शूद्र, दास, दस्यु) केवल अपने निर्माता को मान कर नीति के अनुसार साफ-सुथरा उद्योग कर ने का निश्चय कर के उसके अनुसार आचरण कर रहे हैं, इस बात का मुझे पूरा यकीन होने पर, मैं उनको केवल परिवार के भाई की तरह मान कर उनके साथ प्यार से खाना−पीना करुँगा, फिर वह आदमी, वे लोग किसी भी देश के रहनेवाले क्यों न हों।

आगे किसी समय अज्ञान के अंधकार में सताए हुए मेरे शूद्र भाइयों में से किसी को भी ब्राह्मणों की गुलामी (दासता) से मुक्त होने की इच्छा होने पर, एक बार भी क्यों न हो, कृपया अपना नाम−पता पत्र के द्वारा लिख कर मुझे भेज दें। मुझे इस काम में बड़ी ताकत मिलेगी और मैं उनका बहुत ही शुक्रगुजार रहूँगा।

- जोतीराव गोविंदराव फुले

तारीख[32]: 5 दिसबर, 1872

पून, जूनागंज नं0 527

जनकल्याण की कामना से

हमारे अपने प्रसिद्ध महाज्ञानी, महाचिंतक और महान संशोधक, दार्शनिक जोतीराव गोविंदराव फुले ने एक बड़े गृहस्थ की सिफारिश पर एक अप्रयोजक, आत्मस्तुतियुक्त और ब्राह्मणों की बदनामी करनेवाला एक पत्र हमारी ओर भेजा है। उनके उस पत्र को हमारे अखबार में स्थान मिलने की कोई संभावना नहीं है। इसलिए हम प्रस्तुत पत्र के लेखक फुले से क्षमा चाहते हैं।

कोल्हापुर, ता0 1 फरवरी, 1873

शुभ वर्तमान दर्शक और चर्च के संबंध में विभिन्न संग्रह

पूना के अखबारवाले उक्त परिच्छेद को अपने अखबार में प्रकाशित नहीं कर रहे हैं, इसलिए इस पत्र को हमारी ओर भेजा गया है। यह परिच्छेद चारों ओर प्रसिद्ध करना चाहिए, इस तरह की जोतीराव गोविंदराव फुले की इच्छा होनी की वजह से उनके इस परिच्छेद को हम अपने अंक में प्रकाशित कर रहे हैं। हमारे हिंदू मित्रों को यह परिच्छेद कुछ मात्रा में बदनामी करनेवाला लगेगा, फिर भी इसमें जो अभिप्राय व्यक्त हुआ है, वह बहुत ही प्रशंसनीय है, ऐसा मुझे लगता है। क्योंकि वास्वव में देखा जाए तो ब्राह्मणों की मान्यता के अनुसार जाति−भेद नहीं है, इस बात को 'जो भी व्यक्ति हमारे ध्यान में ला कर देगा, उस व्यक्ति से मैं तुरंत पत्र के द्वारा संपर्क स्थापित करूँगा,' 'इस बात को उन्होंने बड़ी हिम्मत के साथ कही है और इस तरह की हिम्मत रखनेवाले लोग इस देश में बहुत बड़ी संख्या में होने चाहिए।'

धोंडीराव : तात, आपने ऊपर जो सुचनापत्र दिया है, उसकी सभी धाराएँ बहुत ही पसंद आई हैं और मैं उसी के अनुसार अपना आचरण रखुँगा। मैं आज हजारों साल के ब्राह्मणों के बनावटी और दर्दनाक धर्म के जेलखाने से पूरी तरह मुक्त हुआ हूँ। इसीलिए आज मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैं सचमुच में आपका कृतज्ञ हूँ। संक्षेप में, आपके हर तरह के विश्लेषण को सुनने के बाद हिंदु धर्म (ब्राह्मण धर्म) के पाखंडी, बनावटी स्वरुप के बारे में मेरा यह स्पष्ट मत बन चुका है। लेकिन हम लोग जिस एक परमेश्वर को, जो सबको देखनेवाला और सर्वज्ञ होने पर भी, हम शूद्रादि−अतिशूद्रों की यातनाएँ, हमारा शोषण−उत्पीड़न उसको आज तक क्या सचमुच में नहीं दिखाई दिया होगा?

जोतीराव : इसके संबंध में बाद में किसी ऐसे ही मौके पर तुमको सारा खुलासा करके बता दूँगा, जिससे तुमको पूरा विश्वास हो जाएगा और मन का समाधान भी।