गुलामगीरी / भाग-3 / जोतीराव गोविंदराव फुले

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[कच्छ, भूदेव,भूपति, क्षत्रिय, द्विज और कश्यप राजा के संबंध में]

धोंडीराव : मछली और कछुवा, इन सभी बातों में तुलना करने पर कुछ बातों में निश्चित रूप से फर्क दिखाई पड़ता है। लेकिन कुछ बातों में जैसे पानी में रहना, अंडे देना, उन्हें फोड़ना आदि में उनमें समानता भी दिखाई देती है। इसलिए भागवत आदि पुराणकर्ताओं ने यह लिख रखी है कि कच्छ कछुए से पैदा हुआ है। इसके बारे में भी सोचने पर परिणाम मत्स्य जैसा ही होगा और अपना सारा समय व्यर्थ में खर्च होगा, ऐसा मुझे लगता है। इसलिए मैं आपसे आगे की बात पूछना चाहता हूँ कि कच्छ ने बंदरगाह पर उतरने के बाद क्या किया?

जोतीराव : सबसे पहले उस बंदरगाह की जिस पहाड़ी पर मस्यों का कबीला मुसीबत में पड़ गया था, वहाँ के मूल क्षेत्रवासी लोगों को भगा कर उसने अपने लोगों को मुक्त किया और वह स्वयं उस क्षेत्र का भूदेव यानी भूपति बन गया।

धोंडीराव : फिर जिनको कच्छ ने खदेड़ा था, वे क्षत्रिय लोग किस ओर चले गए?

जोतीराव : विदेशी इराणी या आर्य लोगों का कबीला समुद्र के रास्ते से आया देख कर, घबरा कर 'द्विज आए' चिल्लाते हुए पहाड़ी के उस पार कश्यप नाम के क्षेत्रपति के पीछे-पीछे निकल पड़े। कच्छ ने उनको इस तरह पीछे-पीछे जाते हुए देख कर अपने साथ कुछ फौज ले कर उस पहाड़ी के एक छोर से नीचे उतरा। उसने उस पहाड़ी को पीठ पर ले कर, मतलब पीछे छोड़ कर कश्यप के राज्य के क्षत्रियों को इराण की मदद से कष्ट देने लगा। बाद में कश्यप ने उस पहाड़ी को कच्छ से वापस लेने के इरादे से जंग की तैयारी की, लेकिन कच्छे ने अपनी मृत्यु तक उस पहाड़ी को उस क्षेत्रपति के हाथ नहीं लगने दिया और अपनी युद्धभूमि छोड़ कर एक कदम पीछे भी नहीं हटा।