गुलामगीरी / भाग-5 / जोतीराव गोविंदराव फुले

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[नरसिंह, हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद, विप्र, विरोचन आदि के संबंध में।]

धोंडीराव : वराह के मरने के बाद द्विज लोगों का मुखिया कौन हुआ?

जोतीराव : नरसिंह।

धोंडीराव : नरसिंह स्वभाव से कैसा था?

जोतीराव : नरसिंह, स्वभाव से लालची, धोखेबाज, विश्वासघात करनेवाला, विनाशकारी, क्रूर और भ्रष्ट था। वह शरीर से बहुत मजबूत और बलवान था।

धोंडीराव : उसने क्या-क्या किया था?

जोतीराव : सबसे पहले उसके मन में हिरण्यकश्यप की हत्या करने का विचार आया। उसने यह अच्छी तरह समझ लिया था कि उसकी हत्या किए बगैर उसका राज्य उसे मिलनेवाला नहीं था। उसका अपना दुष्ट उद्देश्य सफल हो, इसके लिए उसने गुप्त हरकतें करना शुरू कर दिया। उसने अपने एक द्विज शिक्षक के माध्यम से हिरण्यकश्यप के बेटे प्रह्लाद के अबोध मन पर अपने धर्म-सिद्धांत थोपना प्रारंभ किया। इसकी वजह से प्रह्लाद ने अपने हर-हर नाम के कुलस्वामी की पूजा करना त्याग दिया। बाद में हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद के भ्रष्ट हुए मन को पुन: अपने कुलस्वामी की पूजा करने के लिए अनुकूल करने की दृष्टि से हर तरह की कोशिश की, लेकिन नरसिंह की ओर से प्रह्लाद को भीतर से मदद होने के कारण हिरण्यकश्यप के सारे प्रयास बेकार गए। अंत में नरसिंह ने उस अबोध बालक को अपने बहकावे में ला कर उसका मन इस तरह से भ्रष्ट कर दिया कि वह अपने पिता की हत्या कर दे। लेकिन इस तरह का अमानवीय कृत्य करने के लिए उस लड़के की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए नरसिंह ने मौका देख कर ताजिया से बाघ के बनावटी स्वाँग की तरह अपने सारे बदन को रंगवाया, मुँह में बड़े-बड़े नकली दाँत लगवाए, और लंबे-लंबे वालों की दाढ़ी-मूँछे लगवाई और वह एक तरह से (नकली) भयंकर सिंह बन गया। यह सारा स्वाँग छुपाने के लिए नरसिंह ने जरी से बुनी हुई ऊँचे किस्म की साड़ी (पातल) पहन लिया और सती की तरह अपने मुँह पर लंबा-चौंड़ा घूँघट डाल कर बड़े ही नखरैल ढंग से झूमते-लहराते हुए बच्चे की मदद से एक दिन उसके पिता द्वारा बनवाए विशाल मंदिर में जहाँ खंबों का ताँता लगा हुआ था, वहाँ जा कर चुपके से खड़ा हो गया। उसी दरम्यान हिरण्यकश्यप सारे दिन के शासन-भार से थका अपने मंदिर में आ कर आराम करने के उद्देश्य से ज्यों ही पलंग पर लेटा, नरसिंह ने बड़ी तेजी के साथ सिर का घूँघट खोल कर, आँचल को कमर में लपेट कर, उन खंबों की ओट से निकल कर हिरण्यकशप के बदन पर कातिलाने ढंग से टूट पड़ा। उसने अपने हाथ की मुठ्ठी में छुपाए हुए बघनघा से उसके पेट को फाड़ दिया। इस तरह उसने हिरण्यकश्यप की हत्या कर दी। बाद में नरसिंह वहाँ से सभी द्विजों को ले कर रात और दिन एक कर के अपने मुल्क में भाग गया। इधर नरसिंह ने प्रह्लाद को तो भुलावे में रख दिया था; लेकिन जब क्षत्रियों को यह ध्यान में आया कि नरसिंह ने अमानवीय कर्म किया है तब उन्होंने आर्य लोगों को द्विज कहना बिलकुल त्याग दिया और नरसिंह को विप्रिय[8] कहने लगे। इसी विप्रिय शब्द से बाद में उसका नाम विप्र पड़ा होगा। बाद में क्षत्रियों ने नरसिंह यानी सिंह की औरत कह कर कोसना शुरू कर दिया। अंत में हिरण्यकश्यप के बच्चों में से कइयों ने नरसिंह को पकड़ कर उसको उचित दंड देने की कोशिश की, किंतु नरसिंह हिरण्यकश्यप की राजसत्ता हड़पने की इच्छा छोड़ कर केवल अपने मुल्क और अपनी जान को सँभालते हुए, किसी प्रकार का पुन:प्रयास न करते हुए मर गया।

धोंडीराव : फिर नरसिंह के इस तरह के अमानवीय कृत्यों की वजह से उसके नाम को ले कर बाद में कोई उसकी छी-थू न करे, इस डर से विप्र इतिहासकारों ने कुछ समय के बाद उचित समय को जान कर नरसिंह के बारे में यह सिद्ध करने की कोशिश की कि वह तो खंबे से पैदा हुआ। इस तरह उसके नाम के साथ कई झूठ-मूठ की कल्पनाएँ गढ़ कर इतिहास में घुसेड़ दी गई होंगी।

जोतीराव : हाँ, इसमें भी कोई संदेह नहीं, क्योंकि यदि वह खंबे से पैदा हुआ, यह कहा जाए, तब उसकी गर्भ की नाल दूसरे किस व्यक्ति ने काटी होगी और उसके मुँह में दूध का स्तन दिए बगैर यह कैसे जिया होगा? बाद में वह किसी न किसी दाई का या बाहर का दूध पिए, बगैर छोटे से बड़ा कैसे हुआ होगा? शायद यह भी हो सकता है, यदि यह कहा जाए, लेकिन सृष्टि में इस तरह से कुछ भी घटते हुए नहीं दिखाई देता। यह तो सृष्टिक्रम के विरुद्ध ही है। इन लापरवाह विप्र ग्रंथकारों ने नरसिंह को एकदम लकड़ियों के खंबों से पैदा करवाते ही बगैर किसी की सहायता के अपने-आप ही इतना शक्तिशाली दाढ़ी मूँछवाला, अक्ल का दुश्मन बना दिया कि उसने तुरंत ही हिरण्यकश्यप की हत्या कर डाली। हाय, जो पिता अपनी समझ के अनुसार, पितृधर्म की भावना को अपने मन में जगा कर, केवल शुद्ध ममता से अपने स्वयं के पुत्र का मन सच्चे धर्म में लगाने का प्रयास कर रहा था, उस पिता को आदिनारायण के अवतार द्वारा मार दिया जाना क्या सही में उचित था? इस तरह का अमानवीय कुकर्म अज्ञानी मनुष्य का अवतार भी शायद ही करेगा। आदिनारायण का अवतार होने की वजह से उसे चाहिए था कि वह हिरण्यकश्यप को दर्शन दे कर यह विश्वास दिलाता कि वह आदिनारायण का अवतार है, और वह पिता पुत्र में सुलह करवाने आया है; लेकिन ऐसा न कर उसने हिरण्यकश्यप को उपदेश दे कर उसको समझा नहीं पाया तो फिर वह उस सबकी बुद्धि का दाता कैसे? इससे यह सिद्ध होता है कि नरसिंह में किसी सामान्य स्त्री से भी कम अक्ल थी।

फिलहाल हिंदुस्थान में अमेरिकी और यूरोपियन मिशनरियों ने यहाँ के कई युवकों को ख्रिस्ती बना लिया; किंतु उनमें से किसी ने भी किसी (ख्रिस्ती) युवक के पिता की हत्या नहीं की, यह कितना बड़ा आश्चर्य है!

धोंडीराव : नरसिंह की इस तरह दुर्दशा होने पर विप्रों ने प्रह्लाद का राज्य लेने के लिए कुछ कोशिश भी की या नहीं?

जोतीराव : विप्रों ने प्रह्लाद का राज्य हड़पने के लिए कई तरह के लुके-छिपे प्रयास किए, किंतु उन लोगों को इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली। चूँकि, बाद में प्रह्लाद की आँखे खुल गई और उसको विप्रों की कुटिलता स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी। तब से प्रह्लाद ने विप्रों पर किसी भी तरह का भरोसा करना छोड़ दिया और सभी लोगों से केवल ऊपरी दिखावे का स्नेह रख कर अपने राज्य की उचित व्यवस्था, योग्य प्रतिबंध करके मर गया। उसके मरने के बाद उसी के बेटे विरोचन ने अपने राज्य को सँभालते हुए, उस राज्य को बलशाली बनाते हुए अंतिम साँस ली। विरोचन का बेटा 'बली' बहुत ही योद्धा निकला। उसने सबसे पहले अपने ही पड़ोस में रहनेवाले छोटे-बड़े क्षेत्रपतियों को धृष्ट दंगाखोरो की ज्यादतियों से मुक्त किया और उन पर अपना अधिकार कायम किया। बाद में उसने अपने राज्य को बढ़ाने की दिनोंदिन कोशिश की। उस समय विप्रों का मुखिया (बटू) वामन था। उसको यह सब बर्दाश्त नहीं हो रहा था। इसलिए उसने बली का राज्य लड़-झगड़ कर लेने के उद्देश्य से ही गुप्त रूप से बहुत फौज तैयार की ओर अचानक बली के राज्य की सीमा पर आ पहुँचा। वामन बहुत ही लोभी, साहसी और अड़ियल दिमागवाला था।