गुलामगीरी / भाग-9 / जोतीराव गोविंदराव फुले

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[वेदमंत्र, जादू का प्रभाव, अनछर पढ़ कर मारना, भक्ति का दिखावा करना, जप, चार वेद, ब्रह्मजाल, नारदशाही, नया ग्रंथ, शूद्रों को पढ़ने-पढ़ाने पर पाबंदी, भागवत और मनुसंहिता में असमानता आदि के संबंध में।]

धोंडीराव : सचमुच में आपने उनके मूल पर ही प्रहार किया है। आपके कहने के अनुसार परशुराम मर गया और क्षेत्रपतियों के मन पर ब्राह्मणों के मंत्रों का प्रभाव कैसे पड़ा, कृपया आप इस बात को हमें जरा समझाइए।

जोतीराव : क्योंकि उस समय ब्राह्मण लोग युद्ध में हर एक शस्त्र पर मंत्रविधि करके उन शस्त्रों में प्रहार की क्षमता लाए बगैर उनका प्रयोग शत्रु पर करते नहीं थे। उन्होंने इस तरह से जब कई दाव-पेंच लड़ा कर बाणासुर की प्रजा और उसके राजकुल को धुल में मिला दिया, उस समय बड़ी आसानी से शेष सभी भोले-भाले क्षेत्रपतियों के दिलो-दिमाग पर ब्राह्मणों की विद्या का डर फैल गया था। इसका प्रमाण इस तरह से दिया जा सकता है कि 'भृगु नाम के ऋषि ने जब विष्णु की छाती पर लात मारी, तब विष्णु ने (उनके मतानुसार आदिनारायण) ऋषि के पाँव को तकलीफ हो गई होगी, यह समझ कर उसने ऋषि के पाँव की मालिश करना शुरु किया। अब इसका सीधा-सा अर्थ स्वार्थ से जुड़ा हुआ है। वह यह है कि, जब साक्षात आदिनारायण ही, जो स्वयं विष्णु है, ब्राह्मण की लात को बर्दाश्त करके उसके पाँव की मालिश की अर्थात सेवा की, तब हम जो शूद्र लोग हैं, (उनके कहने के अनुसार शूद्र प्राणी) यदि ब्राह्मण अपने हाथों से या लातों से मार-पीट कर हमारी जान भी ले ले, तब भी हमें विरोध नहीं करना चाहिए।

धोंडीराव : फिर आज जिन नीची जाति के लोगों के पास जो कुछ जादूमंत्र विद्या है, उसको उन्होंने कहाँ से सीख लिया होगा?

जोतीराव : आजकल के लोगों के पास जो कुछ अनछर पढ़ने की, मोहिनी देने की बंगाली जादूमंत्र विद्या है, उसको उन्होंने केवल वेदों के जादूमंत्र विद्या से नहीं लिया होगा, ऐसा कोई भी नहीं कह सकता है: क्योंकि अब जब उसमें बहुत हेर-फेर हुई है, बहुत शब्दों के उच्चारणों का अपभ्रंश हुआ है, फिर भी उसके अधिकांश मंत्रो और तंत्रों में 'ओम् नमो, ओम् नम: ओम् ह्रीं ह्रीं नम:' आदि वेदमंत्रों के वाक्यों की भरमार है। इससे यह प्रमाणित होता है कि ब्राह्मणों के मूल पूर्वजों ने इस देश में आने के बाद बंगाल में सबसे पहले अपनी बस्ती बसाई होगी। उसके बाद उनकी जादू मंत्र-विद्या वहाँ से चारों ओर फैली होगी। इसलिए इस विद्या का नाम बंगाली विद्या पड़ा होगा। इतना ही नहीं, बल्कि आर्यों के पूर्वज आज के अनपढ़ लोगों की तरह अलौकिक (चमत्कार) शक्ति का (देव्हारा घुमविणारे) प्रदर्शन करनेवाले लोगों को ब्राह्मण कहा जाता था। ब्राह्मण-पुरोहित लोग सोमरस नाम की शराब पीते थे और उस शराब के नशे में बड़बड़ाते थे और कहते थे कि 'हम लोगों के साथ ईश्वर (परमात्मा, देव) बात करता है।' उनके इस तरह के कहने पर अनाड़ी लोगों का विश्वास जम जाता था, उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती थी, थोड़ा डर भी उत्पन्न होता था। इस तरह वे इन अनाड़ी लोगों को डरा-धमका कर उनको लूटते थे। इस तरह की बातें उनके ही वेद-शास्त्रों से सिद्ध होती है। [22] उसी अपराधी विद्या के आधार पर इस प्रगतिशील, आधुनिक युग में आज के ब्राह्मण पंडित पुरोहित अपना और अपने परिवार का पेट पालने कि लिए जप, अनुष्ठान, जादू−मंत्र विद्या के द्वारा अनाड़ी माली, कुनबियों को जादू का धागा बाँध कर उनको लूटते हैं, फिर भी उन अनाड़ी अभागे लोगों को उन पाखंडी, धूर्त मदारियों की (ब्राह्मण-पंडित-पुरोहितों की) जालसाजी पहचानने के लिए समय भी कहाँ मिल रहा है। क्योंकि ये अनाड़ी लोग दिन-भर अपने खेत में काम में जुते रहते हैं और अपने बाल-बच्चों का पेट पालते हुए सरकार को लगान देते-देते उनकी नाक में दम चढ़ जाता है।

धोंडीराव : मतलब, जो ब्राह्मण यह शेखी बघारते हैं कि मुँह से चार वेद निकले हैं, वेद स्वयंभू है, उनके कहने में और आपके कहने में कोई तालमेल नहीं है?

जोतीराव : तात, इन ब्राह्मणों का यह मत पूरी तरह से मिथ्या है; क्योंकि यदि उनका कहना सही मान लिया जाए, तब ब्रह्मा के मरने के बाद ब्राह्मणों के कई ब्रह्मार्षियों या देवार्षियों द्वारा रचे गए सूक्त ब्रह्मा के मुँह से स्वयंभू निकले हुए वेदों में क्यों मिलते हैं? उसी प्रकार चार वेदों की रचना एक ही कर्ता द्वारा एक ही समय में हुई है, यह बात भी सिद्ध नहीं होती। इस बात का मत कई यूरोपियन परोपकारी ग्रंथकारों ने सिद्ध करके दिखाया है।

धोंडीराव : तात, फिर ब्राह्मण पंडितों ने यह ब्रह्मघोटाला कब किया है?

जोतीराव : ब्रह्मा के मरने के बाद कई ब्रह्मर्षियों ने ब्रह्मा के लेख को तीन हिस्सों में विभाजित किया। मतलब, उन्होंने उसके तीन वेद बनाए। फिर उन्होंने उन तीन वेदों में भी कई प्रकार की हेराफेरी की। उनको पहले की जो कुछ गलग-सलत व्यर्थ की बातें मालूम थीं, उन पर उन्होंने उसी रंग-ढंग की कविताएँ रच कर उनका एक नया चौथा वेद बनाया। इसी काल में परशुराम ने बाणासुर की प्रजा को बेरहमी से धूल खिलाई थी। इसीलिए स्वाभाविक रूप से ब्राह्मण-पुरोहितों के वेदमंत्रादि जादू का प्रभाव अन्य सभी क्षेत्रपतियों के दिलो-दिमाग पर पड़ा। यही मौका देख कर नारद जो हिजड़ों की तरह औरतों में ही अक्सर बैठता उठता था, उसने रामचंद्र और रावण, कृष्ण और कंस तथा कौरव और पांडव आदि सभी भोले-भाले क्षेत्रपतियों के घर-घर में रात और दिन चक्कर लगाना शुरू कर दिया था। उसने उनके बीवी बच्चों को कभी अपने इकतारे (वीणा) से आकर्षित किया तो सभी इकतारे के तार को तुनतुन बजा कर और उनके सामने थइ थइ नाचते हुए तालियाँ बजाई और उनको आकर्षित किया। इस तरह का स्वाँग रच कर और इन क्षेत्रपतियों को, उनके परिवारों को ज्ञान का उपदेश देने का दिखावा करके अंदर ही अंदर उनमें आपस में एक दूसरे की चुगलियाँ लगा कर झगड़े लगवा दिया और सभी ब्राह्मण पुरोहितों को उसने आबाद-आजाद करा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि ब्राह्मण ग्रंथकारों ने उस काल में सभी लोगों की नजरों में धूल झोंक कर वेदमंत्रों के जादू और उससे संबंधित सारी व्यर्थ बातों का मिलाप करवा कर कई स्मृतियाँ, संहिताएँ, धर्मशास्त्र, पुराण आदि बड़े-बड़े ग्रंथों में उन्होंने अपने घरों की चारदीवारों के अंदर बैठ कर के ही लिख डाला और उन ग्रंथों में उन्होंने शूद्रों पर ब्राह्मण लोगों के स्वामित्व का समर्थन किया है। उन्होंने उन ग्रंथों में हमारे खानदानी सिपाहगरी के रास्ते में कटीला खंबा गाड़ दिया और अपनी नकली धार्मिकता का लेप लगा दिया। फिर उन्होंने यह सारा ब्रह्मच्छल बाद में फिर कभी शूद्रों के ध्यान में भी न आने पाए, इस डर से उन ग्रंथों में मनचाहे परिवर्तन करने की सुविधा हो, इसलिए शूद्रों को ज्ञान-ध्यान से पूरी तरह दूर रखा। पाताल में दफनाए गए शूद्रादि लोगों में से किसी को भी पढ़ना-लिखना नहीं सिखाना चाहिए, इस तरह का विधान मनुसंहिता जैसे ग्रंथों में बहुत ही सूझ-बूझ और प्रभावी ढंग से लिख कर रखा है।

धोंडीराव : तात, क्या भागवत भी उसी समय में लिखा गया होगा?

जोतीराव : यदि भागवत उसी समय लिखा गया होता तो सबके पीछे हुए अर्जुन के जन्मेजय नाम के पड़पोते की हकीकत उसमें कभी न आई होती।

धोंडीराव : तात, आपका कहना सही है। क्योंकि उसी भागवत में कई पुरातन कल्पित व्यर्थ की पुराणकथाएँ ऐसी मिलती हैं कि उससे इसप-नीति हजारों गुणा अच्छी है, यह मानना पड़ेगा। इसप नीति में बच्चों के दिलो-दिमाग को भ्रष्ट करनेवाली एक भी बात नहीं मिलेगी।

जोतीराव : उसी तरह मनुसंहिता भी भागवत के बाद लिखी गई होगी, यह सिद्ध किया जा सकता है।

धोंडीराव : तात, इसका मतलब यह कैसे होगा कि मनुसंहिता भागवत के बाद में लिखी गई होगी?

जोतीराव : क्योंकि भागवत के वशिष्ठ ने, इस तरह की शपथ ली कि मैंने हत्या नहीं की है। सुदामन राजा के सामने लेने की शपथ मनु ने अपने ग्रंथ के 8वें अध्याय के 110 वें श्लोक में कैसे ली है? उसी प्रकार विश्वमित्र ने आपातकाल में कुत्ते का मांस खाने के संबंध में जो कहा है, उसी ग्रंथ के 10वें अध्याय के 108वें श्लोक में क्यों लिखा है? इसके अलावा भी मनुसंहिता में कई असंगत बातें मिलती हैं।