गुल्लक की करामात / सुधा भार्गव

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टीटू और कोयलिया की माँ को अपने भाई के घर राखी बाँधने जाना था| जाने से पहले मेज पर उनके लिए लड्डू रख दिये पर जल्दी -जल्दी में वह कुछ कहना भूल गई।

लड्डुओं को देखते ही टीटू की आँखें चमक उठीं और शुरू कर दिया भोग लगाना। खाते -खाते उसका मुंह भी लड्डू की तरह गोल हो गया। कोयलिया तिरछी नजर से देखने लगी कि वह अब रुके,अब रुके ---। जब दो ही लड्डू रह गये तो चिल्लाई--

-सब खा जायेगा या मेरे लिए भी छोड़ेगा?

टीटू सोते से जागा--हैं --माँ तो ऐसा कुछ कह कर नहीं गई --!

--तो यह भी तो कहकर नहीं गई कि तुम सब खा लेना। मुझे भी तो भूख -- लगी है। उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे।

--ठीक है --ठीक है, टपकन बाजी छोड़। ये दो लड्डू बचे हैं इसी से पेट भर ले।

कुछ देर में ही उनकी माँ आगई। साथ में बहुत से उपहार भी लाई जो उनके मामा ने दिये थे।

टीटू,अब तुम भी राखी बंधवा लो और इन्हीं में से जो उपहार कोयलिया को अच्छा लगे दे दो।

राखी तो उसने खुशी -खुशी बाँध दी मगर उपहारों के नाम अड़ गई ---

-मुझे नहीं लेना इसमें से,ये तो आपके भाई ने दिये हैं। मैं तब लूंगी जब मेरा भाई लायेगा।

--ठीक है --टीटू ये ले ५० रूपये और ले आ बाजार से।

--नहीं ! इन रुपयों का भी नहीं लूंगी

-तो मैं कहाँ से लाऊँ रूपये --?टीटू झुँझला कर बोला।

--मैं नहीं जानती !

कोयलिया पैर पटकती हुई कमरे से बाहर हो गई।

--माँ की भी त्यौरियां चढ़ गईं -ओह !क्या जिद लगा रखी है। आज का दिन क्या मुँह फूलाने का है। मुझे तो हजार काम !मैं तो चली ---|

टीटू समझ नहीं पा रहा था -कोयलिया क्या चाहती है उसका अपना तो कुछ है ही नहीं, सब माँ -बाप का है।

अचानक दिमाग में कौंधा ---अरे है-- मेरा है --मेरी गुल्लक! वह खुशी से उछाल पड़ा। जो गुल्लक उसे जान से भी प्यारी थी उसे टीटू ने एक झटके में तोड़ दिया। सारे पैसों को जेब के हवाले कर बुदबुदाया -- ऐसा सुन्दर उपहार खरीदूंगा जैसा किसी भाई ने अपनी बहन को न दिया होगा।

बाजार में बड़े -बड़े फूलों वाली फ्रोक उसे बहुत पसंद आई। जेब के सारे पैसे पलटते हुए दूकानदार से बोला -इनके बदले वह फ्रोक दे दो।

-पहले इन्हें गिनने तो दो। एक --दो --तीन ----। अरे, ये तो केवल पाँच रूपये हैं। फ्रोक तो पचास रुपयों की है। दुकानदार ने कहा।

--पचास रूपये !टीटू उदास हो गया। पैसों को बटोर कर आगे चल दिया।

चप्पल की दुकान पर रूककर उसने उसके भी दाम पूछे। उसके बीस रूपये सुनकर पूरी तरह निराश तो नहीं हुआ। हां,उसे अपने पर गुस्सा जरूर आया -यदि मैं कल दो रूपये की टाफी न खाता,परसों पेन्सिल न खरीदता तो और पैसा बचा सकता था और वह पैसा आज काम आता।

बाजार की खाक छानते -छानते उसने देखा -छोटे से डिब्बे में दो हेयर पिन (hair pin )पड़े हैं मानो कह रहे हों --हमें इस कोठरी से निकालो --हम किसी के बालों की शोभा बनना चाहते हैं।

-कोयलिया के बाल तो काले और चमकीले हैं यदि ये पिन उसके बालों में लगा दिए जाएँ तो बाल और भी सुन्दर लगने लगेंगे -यह सोचकर उसने दुकानदार से कहा -मेरे पास पाँच रूपये हैं,उनके बदले दोनों गुलाबी हेयर पिन(hair pin) दे दो।

-इनकी कीमत तो छ ;रूपये है।

-मेरे पास और नहीं हैं। पाँच रुपयों में ही दे दो वरना मैं अपनी बहन को राखी का उपहार नहीं दे पाऊँगा।

--तुमने तो बहुत अच्छे कपड़े पहन रखे हैं लगता नहीं कि तुम्हारे पास केवल पाँच रूपये हैं।

-मैं अपनी गुल्लक के पैसों से बहन को कुछ देना चाहता हूँ।

--यह तो तुम्हारी बचत की कमाई है। सब बहन पर खर्च कर दोगे !

--हां !उसे मैं बहुत प्यार करता हूँ।

--तब तो ये पिन तुमको देने ही पड़ेंगे और हां --अपनी बहन को मेरी ओर से भी राखी की मुबारकबाद देना।

-जरूर --जरूर--- कहता हुआ टीटू पिन लेकर घर की ओर उड़ चला। |

उस ने सोती हुई कोयलिया के बालों में धीरे से क्लिप लगा दिये । कागज पर कुछ लिखा और उसे भी मोड़कर उसके सिरहाने रख दिया। दूर बैठकर वह उसके उठने का इंतजार करने लगा।

अंगडाई लेते ही कोयलिया का हाथ कागज पर पड़ा। वह फड़ -फड़ करने लगा। दोनों हेयर पिन की बहना पर नजर गई। वे मटक -मटक कर गाने लगे --

-मेरी बहन फुलझड़ी

रोये तो बिजली गिरी

हंसे तो जुगनू की लड़ी

लड़े तो झांसी की रानी

प्यार करे तो महक उठे

बेला,चमेली चंपा सी

मेरे दिल की क्यारी।

कोयलिया की नींद भाग गई। लगा सिर पर कोई रेंग रहा है। उसने दोनों हाथ ऊपर मारे ,खट से हेयर पिन उसके हाथ में आ गए ।

-तुम कहाँ से आये? वह हैरान थी।

हम आये हैं बाजार से

टीटू भैया हमको लाया है

जगह -जगह वह भटका है

राखी का तोफा लाया है

जाकर उसको प्यार करो

झगड़ा अब से बंद करो।

कोयलिया, भैया -भैया कहती टीटू की ओर दौड़ी। एक दूसरे के गले लगकर दोनों भाई -बहन स्नेह के धागों में न जाने कितने देर तक गुंथे रहे।