गोडसे@गांधी.कॉम / सीन 4 / असगर वज़ाहत

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(मंच पर अँधेरा है। उद् घोषणा शुरू होती है।)

उद् घोषणा : भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ था कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने महात्‍मा गांधी के प्रस्‍ताव को खारिज कर दिया था। प्रस्‍ताव के पक्ष में एक सदस्‍य भी नहीं था। प्रस्‍ताव के गिरते ही गांधी ने कांग्रेस के अध्‍यक्ष को चिट्ठी लिखी थी कि अब कांग्रेस से उनका कोई संबंध नहीं है। उनकी इस चिट्ठी से कांग्रेस में थोड़ी खलबली मची थी। नेहरू, पटेल और मौलाना आजाद ने गांधी से कई मुलाकातें की थीं और उन्‍हें इस बात पर राजी करने की कोशिश की थी कि वे कांग्रेस से अपना रिश्‍ता नहीं तोड़ें। घनश्‍याम दास विड़ला, जमुनालाल बजाज, पंडित सुंदर लाल, आचार्य नरेंद्र देव ने भी गांधी जी से कांग्रेस में बने रहने की अपील की थी। पर गांधीहठ के आगे सब फेल हो गए थे। गांधी के कांग्रेस से अलग होते ही स्थितियाँ बदल गई थीं। गांधी अकेले पड़ गए थे। अब उनके साथ कोई न था। एक प्‍यारेलाल थे जो अब तक गांधी के साथ बने हुए थे।

(मंच पर धीरे-धीरे प्रकाश आता है। गांधी बैठे चरखा चला रहे हैं। पास में ही प्‍यारेलाल बैठे कागज उलट-पुलट रहे हैं।)

गांधी : प्‍यारेलाल... तुम भी विचार कर लो।

प्‍यारेलाल : क्‍या विचार करूँ बापू?

गांधी : मेरे साथ... अब भी रहना चाहते हो?

प्‍यारेलाल : बापू, आपने इतना अपमान तो मेरा कभी नहीं किया था।

गांधी : हो सकता है, तुम्‍हें बहुत दु:ख हुआ हो... उसके लिए क्षमा चाहता हूँ... मैं कह रहा था, आजाद भारत में तुम्‍हारा भविष्‍य उन लोगों के साथ है जो मुझे छोड़ चुके हैं, क्‍या तुम उनके पास जाना नही पसंद करोगे?

प्‍यारेलाल : बापू, इस बात को यही बंद कर दिया जाए तो अच्‍छा है...।

(मंच पर बावनदास आता है। उसने भूदानी झोला कंधे से लटका रखा है। चेहरे पर बेतरतीब दाढ़ी है, सिर पर अँगोछा बाँध रखा है। वह आते ही गांधी के पैर छूता है। गांधी उसे इस तरह देखते हैं जैसे पहचान नहीं पाए हों।)

बावनदास : आप हमें चीन्‍हे नहीं न?

गांधी : तुम्‍हारा नाम क्‍या है?

बावनदास : अब देखिए, हम कुल बात बताते हैं... थोड़ा दम लेने दीजिए... हम बड़ी दूर से... चला आ रहा हूँ।

प्‍यारेलाल : अपना नाम बताइए न?

बावनदास : हम आपको नहीं चीन्‍हते... आपको अपना नाम न बताएँगे। गान्‍ही बाबा को चीन्‍हते हैं... बाबा हमारा नाम बावनदास है। कुछ चेत में आया?

गांधी : हाँ, कुछ याद तो आता है।

बावनदास : ध्‍यान करें बाबा, आप पूर्णिया गए थे न? पटना के सिरी बाबू के साथ। उधर भाखन हुआ था आपका... उधर मैं था... ध्‍यान आया होगा?

गांधी : हाँ-हाँ ठीक है... कैसे आए हो?

बावनदास : बाबा हम आपके ऊपर हमला की खबर सुना तो नहीं आए... पर जब सुना, बाबा गान्‍ही कांग्रेस छोड़ दिए हैं तो हम आ गया... हम भी कांग्रेस छोड़ दिया है... आपसे पहले छोड़ दिया है।

गांधी : क्‍यों?

बावनदास : रोज सपने में आता था कि भारत माता रो रहा है... रोज सपने में आता था। उधर पूर्णिया में बिरंचीलाल है न? वही जो पिकेटिंग वाले भोल्टियरों को पुलिस बुलाता था। हमें उसका लठैत और पुलिस डंडा, जूता से मारता था, वही विरंचीलाल कांग्रेस का जिला अध्‍यक्ष बना है। भोई पटवारी है... भोई जेल है... भारतमाता रोता है। तो हम कांग्रेस छोड़ दिया।

गांधी : अब क्‍या करोगे?

बावनदास : वही जो बाबा आप करोगे।

गांधी : बावनदास... मैं वहाँ जा रहा हूँ जहाँ से तुम आ रहे हो।

बावनदास : हम तो कह दिए हैं... जहाँ बाबा आप जाओगे, उधर ही मैं।

(मंच पर सुषमा, निर्मला देवी और नवीन आते हैं। वे अपना-अपना सामान भी उठाए हुए हैं। सामान रख कर सुषमा गांधी के पैर छूती है। नवीन भी छूता है। निर्मला देवी नमस्‍ते करती है।)

गांधी : (निर्मला देवी से) आप कौन हैं बहन जी?

निर्मला देवी : मैं जी, इसकी माँ हूँ... ये लड़की जो मेरी है... इसे छोड़ कर मेरा कोई और ना है, ये बोली तुम्‍हारे साथ जा रही है। अब सोचो, मैं अकेले घर में क्‍या करती? मैंने कहा, चल मैं भी चलती हूँ। बाबा के साथ मैं भी आश्रम में रहूँगी। अब देखो जी, मैं पढ़ी-लिखी तो ना हूँ। पर घरबार का काम जानती हूँ। सुषमा ने बताया था कि तेरे पास एक बकरी है तो मैं तेरी बकरी का पूरा ध्‍यान रख सकती हूँ वैसे रोटी-वोटी भी डाल लेती हूँ - बैठ के ना खाऊँगी... सो।

गांधी : (कुछ घबरा कर) ठीक है... और तुम (नवीन से) क्‍या नाम है तुम्‍हारा...

नवीन : नवीन जोशी।

गांधी : हाँ तुम तो दिल्‍ली कॉलेज में पढ़ाते हो।

नवीन : जी... जी... लेकिन... बापू।

गांधी : मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ नवीन कि तुम जो काम कर रहे हो, वही करते रहो।

नवीन : बापू... मैं तो आपके साथ...।

गांधी : (बात काट कर ) पूरा देश मेरे साथ काम नहीं कर सकता। तुम अभी यहीं रहो। अगर तुम्‍हारी जरूरत महसूस होगी तो मैं तुम्‍हें आश्रम में बुला लूँगा।

(प्रकाश कम हो जाता है)

(मंच के एक कोने में नवीन और सुषमा खड़े हैं। उन पर ही प्रकाश पड़ रहा है।)

नवीन : देखा तुमने, वही हुआ जिसका डर था।

सुषमा : अब मैं क्‍या बताऊँ? आप आते रहिएगा।

नवीन : पर ये जा कहाँ रहे हैं।

सुषमा : अभी तक तो बताया नहीं।

नवीन : सुनो सुषमा... तुम न जाओ।

सुषमा : ये आप क्‍या कह रहे हैं? मेरे जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा होने जा रहा है। मैं बापू की महानता के किस्‍से सुन-सुन कर बड़ी हुई हूँ। वे देवता हैं, भगवान का अवतार हैं।

नवीन : तो तुम मुझे छोड़ रही हो?

सुषमा : ये किसने कहा... आपको मैंने अपना सब कुछ दे दिया है... आपके अलावा है कौन?