गोला-बारूद / हिंद स्वराज / महात्मा गांधी

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पाठक : डर से दिया हुआ जब तक डर रहे तभी तक टिक सकता है, यह तो आपने विचित्र बात कही। जो दिया सो उसमें फिर क्‍या हेर फेर हो सकता है?

संपादक : ऐसा नहीं है। 1857 की घोषणा बलवे के अंत में लोगों में शांति कायम रखने के लिए की गई थी। जब शांति हो गई और लोग भोले दिलके बन गए तब उसका अर्थ बदल गया। अगर मैं सजा के डर से चोरी न करूँ, तो सजा का डर मिट जाने पर चोरी करने की मेरी फिर से अच्‍छा होगी और मैं चोरी करूँगा। यह तो बहुत ही साधारण अनुभव है; इससे इनकार नहीं किया जा सकता। हमने मान लिया है कि डाँट-डपटकर लोगों से काम लिया जा सकता है और इसलिए हम ऐसा करते आए हैं।

पाठक : आपकी यह बात आपके खिलाफ जाती है, ऐसा आपको नहीं लगता? आपकी स्‍वीकार करना होगा कि अँग्रेजों ने खुद जो कुछ हासिल किया है, वह मार-काट करके ही हासिल किया है। आप कह चुके हैं कि (मार-काट से) उन्‍होंने जो कुछ हासिल किया है वह बेकार है; यह मुझे याद है। इससे मेरी दलील को धक्‍का नहीं पहुँचता। उन्‍होंने बेकार (चीज) पाने का सोचा और उसे पाया। मतलब यह कि उन्‍होंने अपनी मुराद पूरी की। साधन क्‍या था, इसकी चिंता हम क्‍यों करे? अगर हमारी मुराद अच्‍छी हो तो क्‍या उसे हम चाहे जिस साधन से, मार-काट करके भी, पूरा नहीं करेंगे? चोर मेरे घर में घुसे तब क्‍या मैं साधन का विचार करूँगा? मेरा धर्म तो उसे किसी भी तरह बाहर निकालने का ही होगा।

ऐसा लगता है कि आप यह तो कबूल करते हैं कि हमें सरकार के पास अरजियाँ भेजने से कुछ नहीं मिला है और न आगे कभी मिलनेवाला है। तो फिर उन्हें मारकर हम क्‍यों न लें? जरूरत हो उतनी मार का डर हम हमेशा बनाए रखेंगे। बच्‍चा अगर आग में पैर रखे और उसे आग से बचाने के लिए हम उस रोक लगाएँ, तो आप भी इसे दोष नहीं मानेंगे। किसी भी तरह बाहर निकालने का ही होगा।

संपादक : आपने दलील तो अच्‍छी की। वह ऐसी है कि बहुतों ने उससे धोखा खाया है। मैं भी ऐसी ही दलील करता था। लेकिन अब मेरी आँखें खुल गई हैं और मैं अपनी गलती समझ सकता हूँ। आपको वह गलती बताने की कोशिश करूँगा।

पहले तो इस दलील पर विचार करें कि अँग्रेजों ने जो कुछ पाया वह मार-काट करके पाया, इसलिए हम भी वैसा ही करके मनचाही चीज पाएँ। अँग्रेजों ने मार-काट की और हम भी कर सकते हैं, यह बात तो ठीक है। लेकिन मार-काट से जैसी उन्हें मिली वैसी ही हम भी ले सकते हैं। आप कबूल करेंगे कि वैसी चीज हमें नहीं चाहिए।

आप मानते हैं कि साधन और साध्‍य - जरिया और मुराद - के बीच कोई संबंध नहीं है। यह बहुत बड़ी भूल है। इस भूल के कारण जो लोग धार्मिक कहलाते हैं, उन्‍होंने घोर कर्म किए हैं। यह तो धतूरे का पौधा लगाकर मोगरे के फूल की इच्‍छा करने जैसा हुआ। मेरे लिए समुद्र पार करने का साधन जहाज ही हो सकता है। अगर मैं पानी में बैलगाड़ी डाल दूँ तो वह गाड़ी और मैं दोनों समुद्र तले पहुँच जाएँगें। जैसे देव वैसी पूजा - यह वाक्‍य बहुत सोचने लायक है। उसका अर्थ करके लोग भुलावे में पड़ गए है। साधन बीज है और साध्‍य - हासिल करने की चीज - पेड़ है। इसलिए जितना संबंध चीज और पेड़ के बीच है, उतना ही साधन और साध्‍य के बीच है। शैतान को भजकर मैं ईश्‍वर-भजन का फल पाउँ, यह कमी हो ही नहीं सकता। इसलिए यह कहना कि हमें तो ईश्‍वर को ही भजना है, साधन भले शैतान हो, बिलकुल अज्ञान की बात है। जैसी करनी बैसी भरनी।

अँग्रेजों ने मार-काट करके 1833 में वोट के (मत के) विशेष अधिकार पाए । क्‍या मार-काट करके वे अपना फर्ज समझ सके? उनकी अधिकार पाने की थी, इसलिए उन्‍होंने मार-काट मचाकर अधिकार पा लिए। सच्‍चे अधिकार तो फर्ज के फल हैं; वे अधिकार उन्‍होंने नहीं पाए। नतीजा यह हुआ कि सबने अधिकार पाने का प्रयत्‍न किया, लेकिन फर्ज से गया। जहाँ सभी अधिकार की बात करें, वहाँ कौन किसको दे? वे कोई भी फर्ज अदा नहीं करते, ऐसा कहने का मतलब यहाँ नहीं है। लेकिन जो अधिकार वे माँगते थे उन्हें योग्‍यता प्राप्‍त नहीं की, इसलिए उनके अधिकार उनकी गरदन पर जूए की तरह सवार हो बैठे हैं। इसलिए जो कुछ उन्‍होंने पाया है, वह उनके साधन का ही परिणाम है। जैसी चीज उन्हें चाहिए थी वैसे साधन उन्‍होंने काम में लिया।

मुझे अगर आपसे आपकी घड़ी छीन लेनी हो, तो बेशक आपके साथ मुझे मार-पीट करनी होगी। लेकिन अगर मुझे आपकी घड़ी खरीदनी हो, तो आपको दाम देने होंगे। अगर मुझे बख्शिश के तौर पर आपकी घड़ी लेनी होगी, तो मुझे आपसे विनति करनी होगी। घड़ी पाने के लिए मैं जो साधन काम में लूँगा, उसके अनुसार वह चोरी का माल, मेरा माल या बख्शिश की चीज होगी। तीन साधनों के तीन अलग परिणाम आएँगे। तब आप कैसे कह सकते हैं कि साधन की कोई चिंता नहीं?

अब चोर को घर में से निकालने की मिसाल लें। मैं इसमें सहमत नहीं हूँ कि चोर को निकालने के लिए चाहे जो साधन काम में लिया जा सकता है।

अगर मेरे घर में मेरा पिता चोरी करने आएगा, तो मैं एक साधन काम में लूँगा। अगर कोई मेरी पहचान का चोरी करने आएगा, तो मैं वहीं साधन काम में नहीं लूँगा। और कोई अनजान आदमी आएगा, तो मैं तीसरा साधन काम में लूँगा। अगर वह गोरा हो तो एक साधन और हिंदुस्‍तानी हो तो दूसरा साधन काम में लाना चाहिए, ऐसा भी शायद आप कहेंगे। अगर कोई मुर्दार लड़का चोरी करने आया होगा, तो मैं बिलकुल दूसरा ही साधन काम में लूँगा। अगर वह हथियार बंद तगड़ा आदमी तक अलग अलग साधन इस्‍तेमाल किए जाएँगे। पिता होगा तो भी मुझे लगता है कि मैं सो रहूँगा और हथियार से लैस कोई होगा तो भी मैं सो रहूँगा। पिता में भी बल हैं, हथियार बंद आदमी में भी बल है। दोनों बलों के बस होकर मैं अपनी चीज को जाने दूँगा। पिता का बल मुझे दया से रुलाएगा। हथियार बंद आदमी की बल मेरे मन में गुस्‍सा पैदा करेगा; हम कटृर दुश्‍मन हो जाएँगे। ऐसी मुश्किल हालत है। इन मिसालों से हम दोनों साधनों के निर्णय पर तो नहीं पहुँच सकेंगे। मुझे तो सब चोरों के बारे में क्‍या करना चाहिए यह सूझता है। लेकिन उस इलाज से आप इसे समझ लें; और अगर नहीं समझेंगे तो हर वक्‍त आपको अलग साधन काम में लेने होंगे। लेकिन आपने इतना तो देखा कि चोर को निकालने के लिए चाहे जो साधन काम नहीं देगा; और जैसा साधन आपका होगा उसके मुताबिक नतीजा आएगा। आपका धर्म किसी भी साधन से चोर को घर से निकालने का हरगिज नहीं है।

जरा आगे बढ़ें। वह हथियारबंद आदमी आपकी चीज ले गया है। आपने उसे याद रखा है। आपके मन में उस पर गुस्‍सा भरा है। आप उस लुच्‍चे को अपने लिए नहीं, लेकिन लोगों के कल्‍याण के लिए सजा देना चाहते हैं। अपने कुछ आदमी जमा किए। उसके घर पर आपने धावा बोलने का निश्‍चय किया। उसे मालूम हुआ। वह भागा। उसने दूसरे लूटेरे जमा किए। वह भी खीजा हुआ हैं। अब तो उसने आपका घर दिन-दहाड़े लूटने का संदेश आपको भेजा है। आप उसके मुकाबले के लिए तैयार बैठे हैं। इस बीच लुटेरा आपके आसपास के लोगों को हैरान करता है। वे आपसे शिकायत करते हैं। आप कहते हैं : यह सब मैं आप ही के लिए तो करता हूँ। मेरा माल गया उसकी तो कोई बिसात ही नहीं लोग कहते हैं : 'पहले तो वह हमें लूटेता नहीं था। आपने जब से उसके साथ लड़ाई शुरू की है तभी से उसने यह काम शुरू किया है।' आप दुविधा में फँस जाते हैं। गरीबों के ऊपर आपको रहम है। उनकी बात सही है। अब क्‍या किया जाए? क्या लुटेरे को छोड़ दिया जाए? इससे तो आपकी इज्‍जत चली जाएगी। इज्‍जत सब‍को प्‍यारी होती है। आप गरीबों से कहते हैं : 'कोई फ्रिक नहीं। आइए, मेरा धन आपका ही है। मैं आपको हथियार देता हूँ। मैं आपको उनका उपयोग सिखाऊँगा। आप उस बदमाश को मारिए, छोड़िए नहीं', यों लड़ाई बढ़ी। लुटेरे बढ़े। लोगों ने खुद होकर जागरण मोल ली। चोर से बदला लेने का परिणाम यह आया कि नींद बेचकर जागरण मोल लिया। जहाँ शांति थी वहाँ अशांति पैदा आए। पहले तो जब मौत आती तभी मरते थे। अब तो सदा ही मरने के दिन आए। लोग हिम्‍मत हारकर पस्‍तहिम्‍मत बने। इसमें मैंने बढ़ा-चढ़ाकर कुछ नहीं कहा है, यह आप धीरज से सोचेंगे तो देख सकेंगे। यह एक साधन हुआ।

अब दूसरे साधन की जाँच करे। चोर को आप अज्ञान मान लेते हैं कभी मौका मिलने पर उसे समझाने का आपने सोचा है। आप यह भी सोचते है कि वह भी हमारे जैसा आदमी है। उसने किस इरादे से चोरी की, यह आपको क्‍या मालूम? आपके लिए अच्‍छा रास्‍ता तो यही है कि जब मौका मिले तब आप उस आदमी के भीतर से चोरी का बीज ही निकाल दें। ऐसा आप सोच रहे हैं, इतने में वे भाई साहब फिर से चोरी करने आते हैं। आप नाराज नहीं होते। आपको उस पर दया आती है। आप सोचते हैं कि यह आदमी रोगी है। आप खिड़की-दरवाजे खुले कर देते हैं। आप अपनी सोने की जगह बदल देते हैं। आप अपनी चीजें झट ले जाई जा सकें इस तरह रख देते हैं। चोर आता है। वह घबराता है। यह सब उसे नया ही मालूम होता है। माल तो वह ले जाता है, लेकिन उसका मन चक्‍कर में पड़ जाता है। वह गाँव में जाँच-पड़ताल करता है। आपकी दया के बारे में उसको मालूम होता है। वह पछताता है और आपसे माफी माँगता है। आपकी चीजें वापस ले आता है। वह चोरी का धंधा छोड़ देता है। आपका सेवक बन जाता है। आप उसे काम-धंधे से लगा देते हैं यह दूसरा साधन है।

आप देखते हैं कि अलग-अलग साधनों के अलग-अलग नतीजे आते हैं। सब चोर ऐसा ही बरताव करेंगे या सबमें आपका-सा दयाभाव होगा, ऐसा मैं इससे साबित नहीं करना चाहता। लेकिन यही दिखाना चाहता हूँ कि अच्‍छे नतीजे लाने के लिए अच्‍छे ही साधन चाहिए। और अगर सब नहीं तो ज्‍यादातर मामलों मे हथियार-बल से दयाबल ज्‍यादा ताकतवर साबित होता है हथियार में हानि है, दया में कभी नहीं।

अब अरजी की बात लें। जिसके पीछे बल नहीं है वह अरजी निकम्‍मी है, इसमें कोई शक नहीं। फिर भी स्‍व. न्‍यायमूर्ति रानडे कहते थे कि अरजी लोगों को तालीम देने का एक साधन है। उससे लोगों को अपनी स्थिति का भाव कराया जा सकता है और राजकर्ता को चेतावनी दी जा सकती है। यों सोचें तो अरजी निकम्‍मी चीज है। बराबरी का आदमी अरजी करेगा तो वह उसकी गुलामी की निशानी होगी। जिस अरजी के पीछे बल है वह बराबरी के आदमी अरजी है; और वह अपनी माँग अरजी के रूप में रखता है, यह उसकी खानदानियत को बताता है।

अरजी के पीछे दो तरह के बल होते है; 'अगर आप नहीं देंगे तो हम आपको मारेंगे।' यह गोला-बारुद का बल है। इसका बुरा नतीजा हम देख चुके। दूसरा बल यह है : 'अगर आप नहीं देंगे तो हम आपके अरजदार नहीं रहेंगे। हम अरजदार होंगे तो आप बादशाह बने रहेंगे। हम आपके साथ कोई व्‍यवहार नहीं रखेंगे।' इस बल को चाहे दयाबल कहें, चाहे आत्मबल कहें या सत्‍याग्रह कहें। यह अविनाशी है और इस बल का उपयोग क‍रने वाला अपनी हालत को बराबर समझता है। इसका समावेश हमारे बुजुर्गों ने 'एक नाहीं सब रोगों की दवा' में किया है। यह बल जिसमें है उसका हथियार - बल कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

बच्‍चा अगर आग में पैर रखे, तो उसको दबाने की मिसाल की छानबीन करने में तो आप हार जाएँगे। बच्‍चे के साथ आप क्‍या करेंगे? मान लीजिए कि बच्‍चा ऐसा जोर करे कि आपको मारकर वह आग में जा पड़े। तब तो आग में पड़े बिना वह रहेगा ही नहीं। इसका उपाय आपके पास यह है : या तो आग में पड़ने से रोकने के लिए आप उसके प्राण ले लें, या उसका आग में पड़ना आपसे देखा नहीं जाता इसलिए आप स्‍वयं आग में पड़कर अपनी जान दे दें। आप बच्‍चे के प्राण तो नहीं ही लेंगे। आपमें अगर संपूर्ण दयाभाव न हो, तो मुमकिन है कि आप अपने प्राण नहीं देंगे। तो फिर लाचारी से आप बच्‍चे को आग में कूदने देंगे। इस तरह आप बच्‍चे पर हथियार-बल का उपयोग नहीं करते हैं। बच्‍चे को आप और किसी तरह रोक सकें तो रोकेंगे; और वह बल कम दर्जे का लेकिन हथियार-बल ही होगा ऐसा भी आप न समझ लें। वह बल और ही प्रकार का है। उसी को समझ लेना है।

बच्‍चे को रोकने में आप सिर्फ बच्‍चे का स्‍वार्थ देखते हैं। जिसके ऊपर आप अंकुश रखना चाहते हैं, उस पर उसके स्‍वार्थ के लिए ही अंकुश रखेगें। यह मिसाल अँग्रेजों पर जरा भी लागू नहीं होता। आप अँग्रेजों पर जो हथियार-बल का उपयोग करना चाहते है, उसमें आप अपना ही यानी प्रजा का स्‍वार्थ देखते हैं। उसमें दया जरा भी नहीं है। अगर आप यों कहें कि अँग्रेज जो अधम-नीच काम करते हैं वह आग है, वे आग में अज्ञान के कारण जाते हैं और आप दया से अज्ञान को यानी बच्‍चे को उससे बचाना चाहते हैं, तो इस प्रयोग को आजमाने के लिए आपको जहाँ-जहाँ जो भी आदमी नीचे काम करता होगा वहाँ पहुँचना होगा और सामने वाले के - बच्‍चे के - प्राण लेने के बजाए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ेगी। इतना पुरुषार्थ आप करना चाहें तो कर सकते हैं, आप स्‍वतंत्र हैं। पर यह बात बिलकुल असंभव है।