घर बसाने की तमन्ना - भाग ३ / गुरदीप सिंह सोहल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:GKCatNatak

<< पिछला पृष्ठ पृष्ठ सारणी अगला पृष्ठ

आनन्दी - नम्बर एक तुम खूबसूरत हो, नम्बर दो जवान हो, नम्बर तीन काबिल हो और नम्बर चार तो पांचों अंगुलिया घी में है।

सगाईराम - तो सिर कढ़ाई में होगा उस्ताद। रोज रोज ही हलवा बना करेगा।

बबली - ये पांचों अंगुलियां घी में? मैं कुछ समझी नहीं।

सगाईराम - जल्दी बताओ उस्ताद। घी और अंगुलियों का चक्कर?

आनन्दी - इसका मतलब है मुझे कोई भी मांग रखने की जरूरत ही नहीं है। आपके घर में तीन के सिवा और कोई नहीं है। मतलब बिल्कुल साफ साफ है दरपन की तरह।

सगाईराम - वो कैसे उस्ताद।

आनन्दी - यहां सब कुछ है जैसे खूबसूरती, धनदौलत, गुणों की खान, इकलौतापन आदि आदि।

बबली - एक गुण और भी है जो तुमने अभी तक देखा ही नहीं है।

सगाईराम - वो गुण तो बाद की बात है। जब जब जी में आये दिखाती रहना।

आनन्दी - बाद में न जाने कब मौका मिलेगा। आज ही देखने की इच्छा करते है। वो कौन सा गुण है बबली जी।

बबली - सीख देने का गुण। यहां बिन मांगे मोती नहीं सीख ही मिलती है।

आनन्दी - ये सीख कहां से आई भाई?

बबली - ये सीख भी तो तुम्हारे तजुरबे का ही कमाल है। अभी अभी तुमसे ही ली है।

आनन्दी - मुझसे? हैं, तुमने कब ले ली भई? बड़ा तेज दिमाग है तुम्हारा।

बबली - मुझे पसन्द करने का फैसला सुनाकर आपने कितना महान काम किया है। क्या मेरा फैसला नहीं सुनना चाहोगे?

आनन्दी - मुझे तुम्हारे फैसले की क्या जरूरत है भला?

बबली - मेरे बारे में फैसला करने का हम तुम्हे किसने दिया।

आनन्दी - तुम्हारी खूबसूरती और काबलियत ने।

बबली - तो सुनो। मुझे भी यही हक दिया है तुम्हारी घटिया मानसिकता ने।

आनन्दी - चलो भई ठीक है तुम भी सुना दो अपना फैसला ताकि चाय का फाईनल करें अभी और इसी वक्त।

बबली - कुड़ी क्या मोम की गुड़िया है जिससे जब चाहा मन बहलाया और जब चाहा पिघला कर दूसरा रूप दे दिया। मुझे पसन्द करने का जितना हक तुम्हे है उतना ही हक मुझे भी है।

आनन्दी - अब ये कौन सा और किसका हक बीच में आ टपका?

बबली - तुमने मुझे पसन्द किया लेकिन

सगाईराम - लेकिन क्या बबली जी?

बबली - इन्हे नापसन्द करने का हक। इन्होने मुझे पसन्द किया है लेकिन ये मुझे पसन्द नहीं है। मैं इन्हें पसन्दी नहीं करती हूं।

सगाईराम - यहीं पे मात खा गये न उस्ताद। हमने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कभी एैसा भी हो सकता है। ये दो नम्बर के नागरिक हमें कभी हीरो से जीरो भी बना सकते है।

बबली - रोज रोज नापसन्द करके न जाने तुमने मेरे जैसी कितनी ही बबलियों का दिल तोड़ा होगा और पता नहीं जमाने ने उनके साथ कैसा कैसा सुलूक किया होगा।

आनन्दी - मैं माफी चाहता हूं मिस बबली।

बबली - अगर तुम्हारे दिल में उनके लिये जरा सी भी हमदर्दी है तो जाओ उनमें से केवल एक से एक बार ही रिजैक्ट होकर आने का फैसला सुनाती हूं ताकि तुम्हे अपने किये हुए जुर्म का एहसास हो सके।

सगाईराम - चल बाबू आनन्दी। उठ खड़ा होकर इनके पैरों में गिर कर माफी मांग और इससे पहले पी गई चाय को याद करते हैं जिसमें चीनी नहीं थी।

आनन्दी - अपने किये पर मुझे आज नफरत हो रही है कि क्यों मैंने एैसा किया और क्यों पहले तुम नहीं मिली मुझे यह एहसास करवाने के लिये, मुझे ज्ञान देने के लिये।

सगाईराम - अब आंसुओं की गंगा में हाथ धो ले बेटा तेरे सारे पाप धुल जायेंगे।

आनन्दी - माता-पिता ने मुझे इतनी छूट दी और इस सगाईराम के बच्चे ने तरह तरह के फोटो दिखा दिखा कर मुझे इतना ज्यादा मिसगाइड किया मैं फोटो के चक्कर में इस कदर उलझ गया कि कोई फैसला नहीं कर पाया।

सगाईराम - उस्ताद हमारा काम केवल फोटो दिखाना ही है और फैसला करना तुम्हारा काम। तुम ही जरा सा सोचो कि क्या तुम राजकुमार हो जो हर किसी से शादी कर लोगे?

आनन्दी - उन्होने छूट देने की बजाय अगर पहले से ही सुनियोजित शादी कर दी होती तो वे कब के दादा-दादी बन चुके होते और मुझे ये दिन न देखना पड़ता।

खन्ना - और हम भी नाना-नानी। अगर हमारे साथ भी रोज रोज एैसा ही न हुआ होता तो।

सीमा - यही बात अगर तुम पहले सोच लेते तो अभी तक यू कुंवारे न घूमते फिरते चांद की तमन्ना करने से पहले अपने गिरेबां में भी झांकना चाहिये।

आनन्दी - कुड़ी देखना बुरा नहीं है लेकिन देखकर ठुकराना जुर्म है। अब मैं इस रस्म के गलत उपयोग पर पाबन्दी लगाने की मांग करता हूं।

सगाईराम - सीख अगर अच्छी तरह से ले ली हो तो अब चलें भईया जी। फिर कभी काम आयेगी जिंदगी में।

आनन्दी - बबली जी आपने हमें जो सीख दी उसका मैं शुक्रिया अदा करता हूं। आपने हमें आईना दिखाने का साहस जुटा ही लिया, बहुत अच्छा किया आपने वरना हम पता नहीं कब तक यूं ही चाय पीते रहते।

सगाईराम - यही आईना जेब में हमेशा के लिये रख लेना बेटा। कभी भी काम आ सकता है।

आनन्दी - ताउम्र कुंवारे रहकर हम इस सीख का पालना करेंगे। आईना भी बराबर देखते रहेंगे और रिजैक्टिड आईटम होकर लोगों को सीख देने के साथ साथ आईना भी दिखाते रहेंगे। चलो भाई सगाई। घर के कोने में पड़े रहेंगे।

बबली - मुफ्त में सीख लेकर तुम कहीं नहीं जा सकते। अभी तुम्हे जाने का हक नहीं है।

आनन्दी - कमाल है भई। अब कुछ और कहना बाकी है! कौन सा आईना दिखाना अभी बाकी है?

सगाईराम - चन्द्रमुखी अब चन्द्रमुखी नहीं है सूरजमुखी हो रही है।

सीमा - लगता है थोड़ी देर में ज्वालामुखी होकर लावा उगलेगी जो तुम्हारे विचारों की फसल के लिये खाद का काम देगी।

सगाईराम - इस लावे में तो मेरा काम चौपट होता हुआ दिखाई दे रहा है।

आनन्दी - अब हमने और चाय पीने से तौबा करली है। कूच करने का हुक्म फरमावें।

बबली - मुझे यह देख कर बहुत खुशी हुई है कि तुम दोनों ने पक्की सीख ले ली है। अब मैंने भी फैसला कर लिया है।

आनन्दी - फैसला तो मुझे करना चाहिये था लेकिन तुमने क्यों और किसके लिये किया। मैं अब रिजैक्ट होना चाहता हूं क्योंकि मैं इसी के लायक हूं।

बबली - अब तुम्हे रिजैक्ट होने की जरूरत नहीं है और अब न ही होना है। तुमने मुझे पसन्द करने का फैसला सुनाया था और अब यही फैसला मैं भी करती हूं।

सगाईराम - यानि तुमने आनन्दी को पसन्द कर लिया है?

बबली - (डांटते हुए) तमीज से नाम लो इनका? श्रीमान् आनन्द प्रकाश कहिये।

खन्ना - (प्रविष्ट होते हुए) ये सब क्या हो रहा है बबली बेटा?

बबली - कुछ नहीं डैड। बस यूं ही मैं तो।

खन्ना - डरो मत बेटा। मैंने सब कुछ सुन लिया है। फभ है मुझे इस पर जिसने तुम्हे और तुम जैसे लोगों को आईना दिखाने की हिम्मत की है। काशः हर घर में बबली होती।

सगाईराम - आनन्दी बाबू यानि आनन्द प्रकाश ने आज बहुत कुछ सीख लिया है और स्वादिष्ट चाय का फाईनल कर दिया है। आपको बधाई हो जनाब।

आनन्दी - मैंने अब तक रिजैक्ट होने का दुख नहीं देखा था।

सीमा - लेकिन हमने अब यही दुख देखा है।

खन्ना - दरअसल बात यह है बेटा कि हम भी सबकी मांग पूरी करने की हालत में नहीं थे और अबकी बार हमने भी कुछ नया करने की ठान ली थी। हम भी परेशान हो गये थे रोज रोज चाय पिला कर।

सगाईराम - (आनन्दी से) गुरू अब तू शादी का परवाना बन जा। सफारी सूट पहन जवानी दांव पर लगा दे। दूल्हा बन जा और वचन दे दे किसी को।

आनन्दी - अब मैं शहीदे आजम बनने की तैयारी करता हूं। पहले पति बनूंगा बाद में पिता।

खन्ना - भई पहले भरता फिर बैंगन का भुर्ता।

सीमा - नहीं। पहले पहाड़ फिर ऊंट और अब सवारी।

सगाईराम - तुम्हे अब शादी की आजादी मिल गई है।

आनन्दी - हम आजादी से शादी करेंगे। खाना आबादी करेंगे।

खन्ना - ये आजादी है या सजादी यानि सजा। ये सब तो बाद में जानोगे बेटा।

बबली - शादी की आजादी जिंदाबाद।

आनन्दी - आजादी की शादी जिंदाबाद।

सीमा (सुबकते हुए) पंडित बुलाओ। मुहूरत निकलवाओ, हाथ पीले करो और डाल दो इसे ससुराल की जेल मे।

खन्ना - तमाम हाजिरे हालात का जायजा लेने के बाद यह अदालत इस नतीजे पर पंहुची है कि फर्म शादी लाल सगाईराम ने दुनियांभर के फोटो दिखा दिखा कर आनन्दी और उस जैसे कितने ही नौजवानों को गुमराह किया है जो अब न घर के रहे न घाट के। लिहाजा ये अदालत इस फर्म को बन्द करने का हुक्म सुनाती है।

सीमा - आनन्द प्रकाश ने भी इस जुर्म को आगे आगे बढ़ाने में इस फर्म का साथ दिया। लिहाजा ये अदालत आनन्द प्रकाश को उन सब कुड़ियों से माफी मांगने और माफीनामा इस अदालत में पेश करने का हुक्म देती है जिन जिन के यहां भी इसने चाय पी और बेस्वाद होने का ढोंग रचाया।

खन्ना - बबली ने आनन्द प्रकाश को पहले ठुकराया और बाद में पसन्द करने का संगीन जुर्म किया है लिहाजा ये अदालत इन दोनो को गृहस्थी की कैद में डालने और परिवार की गाड़ी खींचने का हुक्म सुनाती है।

बबली - अदालत से दरख्वास्त है कि सवारी उपलब्ध करवाई जावे ताकि इस सजा को बहाल रखा जा सके।

सीमा - आनन्द प्रकाश को अदालत और सब कुड़ियों से माफी मांगनी होगी।

आनन्दी - योअर ऑनर। मैं माननीय अदालत का हुक्म मानने के लिये तैयार हूं। प्रार्थना है कि गाड़ी का लाइसैंस दिलाकर आर्शीवाद दिया जाय ताकि मैं गृहस्थी और परिवार की गाड़ी को आसानी से खींच सकूं।

खन्ना - तथास्तु। आयुष्मान भव।

सगाईराम (गिडगिड़ाता है हाय मेरे राम। काम कर दिया तमाम। मैं हो गया बदनाम। अब मैं क्या करूं? अदालत ने पाबन्दी लगाकर मेरा काम धन्धा बन्द कर दिया। इधर बरबादी उधर खाना आबादी। इधर तनहाई। उधर शहनाई (शहनाई बजने लगती है)

<< पिछला पृष्ठ पृष्ठ सारणी अगला पृष्ठ
गुरदीप सिंह सोहल का लिखा नाटक "घर बसाने की तमन्ना" समाप्त