घुटन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
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वर्मा जी अपने यहाँ न आने के लिए हमेशा उलाहने देते रहते हैं। आज इधर आया हूँ तो मिलता चलूँ। यह सोचकर दिनेश ने मेन गेट खटखटाया। अलसेशन भौंक-भौंककर बेहाल होने लगा। काफी देर के बाद तुर्श मिजाज़ नौकर पौधों में पानी देना छोड़कर आया और बेरुखी से बोला-'क्या बात है?'

'वर्मा जी घर पर नहीं है?'

'नहीं हैं'-उसने पत्थर-सा उत्तर दिया।

'कहाँ गए हैं?'

'क्या मुझे बताकर जाएँगे? गए होंगे कहीं'-वह पलटकर चल दिया।

'अरे भाई सुनो तो'-दिनेश ने स्वर मुलायम बनाकर कहा।

'जल्दी कहो। मेरे पास खड़े होकर बातें छौंकने का बखत नहीं है'-वह तनिक ठिठका।

'भाई मैं उनका दोस्त हूँ। घर पर तो कोई होगा ही। उसे ही बता दो कि दिनेश आया है।'

'ठीक है'-कहकर वह चला गया।

थोड़ी देर बाद श्रीमती वर्मा घर से बाहर आई। बिना किसी भूमिका के बोली-'वर्मा जी तो नहीं हैं। बस अभी-अभी कहीं गए हैं। शायद शाम तक लौटें। आपका जिक्र तो अक्सर करते रहते हैं। आइए, कुछ देर बैठिए।'

वह ड्राइंग रूम में इत्मीनान से बैठ गया। श्रीमती वर्मा ने नौकर के हाथ एक गिलास ठण्डा पानी भिजवा दिया। वह कुछ देर तक घूँट-घूँटकर पानी पीता रहा। पूरा कमरा विभिन्न पेण्टिंग्स से सजा था। रेशमी पर्दे खिड़कियों पर लहरा रहे थे। शो केस में देशी-विदेशी मूत्तियाँ सजी थीं। कमरे में बिछा कालीन ही हजारों का होगा। घण्टे भर तक एक-एक चीज़ का जायजा़ लेता रहा।

बैठे-बैठे उसे घुटन होने लगी। उसने कुछ ऊँचे स्वर में कहा-'अच्छा, भाभी जी चलता हूँ। फिर कभी आऊँगा।'

'कम से कम एक कप चाय तो पीते जाते'-श्रीमती वर्मा अन्दर से ही बोली।

'फिर कभी सही'-वह बाहर निकलते हुए बोला।

'अच्छा, फिर ज़रूर आइएगा'-कहकर श्रीमती वर्मा ने ड्राइंग रूम का दरवाजा मजबूती से बन्द कर लिया।

इस समय वह अपने आप को काफी हल्का महसूस कर रहा था।

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