चन्दन विष व्यापत नहीं / अमरेन्द्र

Gadya Kosh से
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नूरपुर इस्कूल छोड़ला के बाद ई ओकरा संें हमरोॅ पहलोॅ मुलाकात छेलै। ठीक फुलवड़िया मोड़ोॅ पर ऊ मिली गेलै--एक पान दुकानी पर खाड़ोॅ। केकरो इन्तजारे करी रहलोॅ छेलै? देखत्है वैनें आवाज देलकै--"विकास, अरे रुक" आरो वैनें आपनोॅ दोनों हाथ उठाय देनें छेलै, जेकरोॅ कारण भीड़ केॅ चीरतें हमरोॅ ध्यान सीधे ओकर्है पर गेलै। ओकरा वहाँ देखी हमरा कुछ अचरज नाँखी होलै, मजकि आपनोॅ सब भावोॅ केॅ छिपैतें ओकरे दिश बड़ी गेलियै आरो नगीच आवी कहलियै, "मन्टू, तोहें यहाँ?"

"पहिलें तोंही बताव कि तोहें यहाँ?"

"यही तगेपुर हाई इस्कूल में बदली होय गेलोॅ छै। आबेॅ साइकिले सें आना-जाना करै छियौ।" आरो ई कही हम्में आपनोॅ साइकिल वाहीं दुकानी के एक दिश खाड़ोॅ करी देलियै, "मजकि तोहें ई तेॅ बताव कि तोहें यहाँ पर की करी रहलोॅ छैं?" ई कही हम्में हिन्नें-हुन्नें नजरो दौड़लियै। काँही कुछ नै। कुछ होय के सवालो नै छेलै। आस-पास कोय बस्तियो तेॅ नै छै, छेवो करै तेॅ सौ-पचास बाँस के दूरी पर। हमरा यहू मालूम छेलै कि यै इलाका में मंटू के नै तेॅ कोय सम्बंधी रहै छै, नै तेॅ कोय दोस्त-मोहिन।

मन्टू नें हमरोॅ सवाल के कोय जवाब नै दै केॅ उल्टे हमर्है सें पुछलकै, "इस्कूल तेॅ दस, साढ़े दस सें लगै छै, आरो तोहें इखनियै...है नवे।"

"बाजार के कुछ सामान छै, सोचलियै, जल्दिये निकली जांव तेॅ इस्कूल सें लौटै वक्ती सामान खरीदै-उरीदै के झमेला नै रहतै।"

"खैर, तबेॅ तेॅ तोरा समय छौ, एक काम कर" वैनें आपने सें ऊ दुकानी के नीचें राखलोॅ बेंची केॅ खींचलकै आरो ओकरा रूमाल सें झाड़तें बोललै, "तोहें, बैठी केॅ दस मिनिट हमरोॅ इन्तजार कर। तोरोॅ साइकिल लै केॅ जाय छियौ। बस भेंट करलियौ कि लौटलियौ।" आरो वैनें हमरोॅ कोय उत्तर के बिना अपेक्षा करलैं हमरोॅ साइकिल केॅ लेलकै आरो साइकिल के पीछू सें आपनोॅ लम्बा दाँया टाँग केॅ पार करतें सीटोॅ पर जमी गेलै। यद्यपि वैठां नै तेॅ दूर-दूर तांय आरो नै तेॅ आगू ही कोय आदमी दिखाय छेलै, तैहियो वैनें तीन-चार बार घंटी बजैलकै आरो जल्दी-जल्दी पैडिल घुमैतेॅ आगू बढ़ी गेलै।

पीछू सें हम्में ओकरा देखलियै तेॅ हमरा हँस्सियो आवी गेलै। छोॅ फुट के लम्बा-चौड़ा जवान। इखनियो देहोॅ पर वहेॅ लम्बा खलत्ता कुर्ता आरो चूड़ीदार पैजामा। हमरोॅ छोटोॅ रँ के साईकिल केॅ चलाय में ओकरा कत्तेॅ दिक्कत होय रहलोॅ छेलै, ऊ देखतें कोय्यो हँसी पड़ेॅ। प्रतिक्रिया देखै के खयाले सें ही हम्में पानवाला दिश देखलियै, जेकरोॅ ठोरोॅ पर पान के रंग नाँखी मुस्कान फैली रहलोॅ छेलै। हमरा आपनोॅ दिश देखतें देखलकै तेॅ हठाते गंभीर होय गेलै, शायत ई सोचियै कि हमरा ओकरोॅ मुस्कैवोॅ अच्छा नै लागतै। आरो ई बताय लेॅ कि ऊ हौ दिश देखिये नै रहलोॅ छेलै--वैनें एक बड़ोॅ रँ बाटी में राखलोॅ पानी केॅ पाने पत्ता सें पान के ढेरी पर छिड़कना शुरू करी देलकै, जरियो टा हमरोॅ दिश देखले बिना। आरो पानिये छिड़कतें पूछलकै, "पान-ऊन चलतै की बाबू जी?"

"नै, पान नै खाय छियै।"

"कसेलिये, मुँहोॅ में दबैइयै।" ई दाफी वैनें सामना में राखलोॅ एक छोटोॅ रँ बाटी सें कसैली के दू टुकड़ा उठैलकै आरो हमरोॅ दिश बढ़ाय देलकै।

हेना केॅ तेॅ हम्में कसेलियो नै खाय छियै, मतरकि हर बातोॅ में इनकार करवोॅ ठीक नै होतै, यहेॅ सोची केॅ कसेली लै लेलियै आरो दाँया हाथ के अंगुठा, तर्जनी आरो मध्यमा के बीच टुकड़ा सिनी घुमावेॅ लागलियै।

"आपने माट साहब के-के लागै छियै?" दुकानदारें पान के पिछुलका डंटी तोड़तें आरो फेनू बीचोॅ सें चीरतें, हमरोॅ दिश देखी केॅ बोललै।

"दोस्त छेकै।"

हम्में सोचलेॅ छेलियै, एकरोॅ बाद वैं आरो कुछ पुछतै, मजकि हेनोॅ बात नै होलै। पहिलके नाँखी दुसरोॅ पान के डंडी तोड़लकै; बीचोॅ सें चीरी वै पर चूना-कत्था लगैलकै आरो एक लाल रँ के कपड़ा सें हाथ पोछी लेलकै।

"से की, कुछ बात छै की?" हम्मी ओकरा सें पूछलियै। लागलै, ओकरोॅ प्रश्न करै के पीछू ज़रूर कोय रहस होतै।

"बस हेन्है केॅ जानै लेॅ चाहै छेलियै कि हिनी कौन पाटी के नेता छेकै?"

"अरे नेता-वेता नै छेकै। सुनलौ नै, बतैलकै कि यही मुखेरिया हाई इस्कूली में मास्टर छै।"

"आय बुझलियै। चेहरा-मोहरा सें आय तक हिनका हम्में कोय नेताहै बुझतेॅ रहियै।" ई कही वैनें आपनोॅ मूड़ी बाँया दिश झटकैनें छेलै, जेना ओकरा आपनोॅ समझ पर आचरज साथें ग्लानियो होलोॅ रहेॅ। आरो फेनू दोनो हथेली केॅ केहुनियाँ से जोड़ी ओकरा फलकलोॅ कमल नाँखी बनैलेॅ छेलै, जैमें ऊ आपनोॅ ठुड्डी डाली केॅ मौन होय गेलै।

हमरा खयाल ऐलै, मंटू के बदली जबेॅ जमदाहा इस्कूली सें नूरपूर इस्कूल होय गेलोॅ छेलै, तेॅ एकरा नेताहै समझी केॅ साल भरी हेडमास्टरें कोय टोक-टाक नै करलकै। गोरोॅ दिप-दिप चेहरा तेॅ छेवे करै, हाथोॅ में ताँबा आरो चाँदी रंगोॅ के तारोॅ सें गुंथलोॅ मोटोॅ मठिया मंटू केॅ आकर्षक बनावै आरो दबंगो। हमरा याद छै, साल भरी में एक्को दिन ठीक टैम में ऊ इस्कूल नै ऐलोॅ होतै। कभी बारह बजेॅ, आरो कभी एक बजेॅ। एक दाफी हेडमास्टरें टोकी देलकै तेॅ आपनोॅ निचलका ठोर केॅ दाँतोॅ सें दबैलकै आरो फेनू छोड़तें कहलकै--माट साब, तोरोॅ बात हम्में समझेॅ पारौं, मोटर गाड़ी आरो ट्रेन नै...एक हमरोॅ लेली नै ट्रेन दू घंटा पहिलें पहुँचतै, नै मोटर। गाड़ी खाली हमर्है लेलेॅ-लेलेॅ तोरोॅ लुग पहुँचाय देतै की? की हमरोॅ बिना तोरोॅ इस्कूल बंदे होय जाय छौं। अरे गाड़ी-घोड़ा छेकै, बीचोॅ-बीचोॅ में पसैंजर उठैवे करतै, आबेॅ जों आवै में मोटर बीसे बार रुकै छै, आरो पच-पचे मिनट देर होय छै तेॅ सोचौ, एकर्है में डेढ़-दू घंटा पार। आबेॅ जबेॅ हम्में कुछ देर करी ऐवे करै छियै, तेॅ एकरा ध्यानोॅ में राखै के ज़रूरत नै छै। "आरो फेनू हमरोॅ दिश इशारा करी केॅ कहलेॅ छेलै," पूछी लौ, विकास सें, जमदाहा में कभियो हम्में लेट आवै छेलियै, हों, पंकचुअल कहावै वाला विकास भले लेट आवेॅ तेॅ आवेॅ। "

तखनी तेॅ हमरोॅ हालत एकदम विचित्र होय गेलोॅ छेलै। आबेॅ बोलौं तेॅ बोलौं की...हमरा विश्वासो नै छेलै कि मंटूओ के बदली वहेॅ इस्कूली में होय जेतै, जैमें हमरोॅ। एकरोॅ पहिलें दोनों जमदाहै इस्कूली में छेलियै। तबेॅ हमरोॅ यहेॅ कोशिश रहै कि इस्कूल लागै सें पाँच मिनिट पहिलें पहुँचौ, तभियो कुछ नै कुछ देर भइये जाय...केना नै होतियै--बौंसी सें जमदाहा तक जाय वाली गाड़ी बस एक्के आरो वहेॅ गाड़ी सें सबकेॅ आना-जाना। गाड़ी खुललोॅ नै कि पीछू सें हो-हो के आवाज हुऐ आरो गाड़ी रुकी जाय। नै रुकै के मतलब छेलै, दुसरे दिन गाड़ी केॅ दे ईंटोॅ-पत्थर सें शीशा तेॅ चूर करवे करतियै, ड्रायवरो माथोॅ-कपाड़ भंगवाय लेतियै। दुसरो बात यहू छेलै--सड़के पर हाथ, पाँच हाथोॅ पर बित्ता-बित्ता भर के गड्ढा। सुनाफड़ पावी केॅ तेज चलेॅ भी तेॅ केना। यैमें पाँच-दस मिनिट देर होय जैवोॅ कोय बड़का बात नै छेलै। आरो हेनोॅ कोय दिन नै होय छेलै कि कोय-न-कोय मास्टर केॅ देर होइये जाय। खुद हेडमास्टर साहब केॅ कै दाफी हेनोॅ हाल सें गुजरै लेॅ लागै। बात ई छेलै कि इस्कूली में जत्तेॅ मास्टर छेलै--काहीं-न-कांही सें आवै--हमरे नाँखी। केकरौ-केकरौ तेॅ रास्ता में एक-दू गाड़ियो बदलेॅ लेॅ लागै--आरो जों केन्हौं केॅ जमदाहा जाय वाली ई पहिलकोॅ गाड़ी छूटी जाय छेलै तेॅ समझोॅ घंटा भरी के लेट होनाहै होना छै--चाहै तोंय पैदले जा कि वहेॅ गाड़ी के फेनू संेे लौटै के इन्तजार करोॅ। मन्टू है सब बात नै जानै छेलै, से बात नै। तभियो वैं ई सब बातोॅ केॅ देर होय के कारणे नै मानै। वैं कहै--नौकरी के मतलबे होय छै--नौकर नाँखी बनी केॅ रहवोॅ। जों बाबू बनी केॅ आना-जाना छौं, तेॅ आपनोॅ कोय व्यवसाय करोॅ, है नौकरी करै के की ज़रूरत छै। आबेॅ सरकार जबेॅ ठीक टैम में आवै-जावै आरो पढ़ावै के पैसा दै छौं तेॅ बाबू नाँखी टहललोॅ-बुललोॅ, दस बजेॅ के बदला ग्यारह-बारह में ऐवौ, तेॅ नै नी होतौं। '

ई बात मंटू खाली जुनियर मास्टरे केॅ कही देतेॅ रहेॅ, से बात नै छेलै, केकरौ नै कुछ बुझै--की सिनियर आरो की हेडमास्टर। कोय ओकरोॅ विरोधो नै करेॅ पारै--एक तेॅ सब आपनोॅ गलती पर भीतरे-भीतरे आपना केॅ हीन महसूस करै, दुसरोॅ ई कि मंटू कभियो इस्कूल में देर करी नै आवै। इस्कूल दस बजेॅ सें लागै आरो मंटू पौने दसे बजे आवी केॅ दम दाखिल। आवी केॅ इस्कूल के चारो दिश घूमै--अहाता के एक-एक गाछ केॅ देखै आरो कोय गाछी के कोइयो ठाहुर टुटलोॅ मिलै तेॅ ऊ दिन लड़का सें लैकेॅ मास्टर तक केॅ उपदेश दै में लीन रहै, "जबेॅ गाछे के हिफाजत यहाँ मुश्किल छै, तबेॅ इस्कूल के पढ़ाय-लिखाय के की हिफाजत होतै...ई इस्कूली के मास्टरे जबेॅॅॅ बारह बजे ऐतै, तेॅ लड़का सिनी के की, छुट्टी होला के बादे आवै छै तेॅ की।"

मंटू केॅ कोय बातोॅ के जरियो टा कन्हौ सुराग मिलेॅ तेॅ ऊ सीधे मास्टर के देर सें आवै के विषय पर उतरी जाय। एकरा सें एक फायदा होय जाय कि मंटू केॅ कोय क्लास-उलास लै लेॅ नै कहै। हेडमास्टरो तक नै। बस हमरा सें कही दै "जरा मंटू बाबू के किलास लै लियौ।"

एक तेॅ मंटू के, दुसरोॅ हेडमास्टर साहब के आदेश; आपनोॅ घंटी साथें ओकराहौ लेना हमरोॅ उत्तरदायित्व बनी गेलोॅ छेलै जेना। मजकि एकरा सें एतना होलै कि मंटू आरो जेकरा जे कहेॅ, हमरा कुछ नै कहै। एक तरह सें हम्में ओकरोॅ दोस्ते बनी गेलियै। यहाँ तक कि तुम-ताम पर हमरा सिनी उतरी ऐलियै। मतरकि जहाँ तक क्लास के बात छेलै, वैनें घंटी लै के भार तभियो वापिस नै लेलकै।

सब मास्टर ई मानी लेलेॅ छेलै कि ओकरा जब तांय ऊ इस्कूली में रहना छै, मंटू के यै विषय पर फुंफकार सुननै छै।

दसे-ग्यारह बाँसोॅ के दूरी पर छेलै मंटू के घोॅर, जहाँ सें ऊ पैदले चललोॅ आवै।

क्लास करै लेली तेॅ आवै पौने दस बजेॅ, मतरकि एकरोॅ पहिलो बिना नागा के भिहानै एक दाफी ज़रूरे इस्कूल दिश आवै टहलै के बहाना। गाछ-बिरिछ के भोररकोॅ हवा तन-मन केॅ मजगूती दै छै, यही सोची। आबेॅ जबेॅ दसे-ग्यारह बाँस के दूरी पर मंटू के घोॅर छै तेॅ टिफिन वक्ती ऊ टिकतियै केना; जलखै लेॅ घोॅर दिश बढ़ी जाय आरो तखनी सब टीचर इकट्ठा होय मंटुवे के बारे में कोय-न-कोय शिकायत निकाली लै। है बात नै छेलै कि हम्में वै मंडली सें अलग छेलियै।

बात की छिपलोॅ रहै। ई कानाफुसकी केन्हौ-न-केन्हौ मंटू के कानोॅ में चल्ले जाय आरो दुसरे दिन वैं कोय-न-कोय बहाना निकाली केॅ ऊ सब दोहराय दै, जे मास्टर सिनी के बीच बितलोॅ दिनोॅ में होलोॅ रहै आरो आखरी में उपसंहार नाँखी ज़रूरे कहै, "है नै सोचोॅ कि तोरोॅ सिनी के शिकायत-षड़यंत्र से हम्में यहाँ सें खिसकी जैवै, हों तोरा सिनी ज़रूरे खिसकी जैवा, जोन दिना हम्में चाही लेवौं।" ई उपसंहार सुनावै वक्ती मंटू दोनों हाथ ऊपर करी लै आरो फेनू फेरा-पाती सें एक-दुसरा हाथोॅ सें कुर्त्ता के हत्था बाँही तक ससारी दै।

जेना ई दिरिश नै देखै के मनोॅ सें ही सब मास्टर चौख-डस्टर लेलेॅ स्टाफ रूमोॅ सें निकली जाय--घंटी लै केॅ बहाना सें।

...कोॅन मास्टर नै होतै, जे तंग नै आवी गेलोॅ होतै। के मनों सें चाहै कि क्लास लेवे करौं। त्रिलोचन, भुवनेश्वर और त्रिवेणी तेॅ एकदम अक्कच आवी गेलोॅ छेलै। होना केॅ सब चाहै कि कोय दुसरोॅ इस्कूली में बदली होय जाय, मजकि त्रिलोचन, भुवनेश्वर आरनी तेॅ यै वास्तें शिक्षा-विभाग के पदाधिकारी आरो हेडक्लर्क केॅ भारी घूसो दै ऐलोॅ छेलै। दस-पन्द्रह रोज के छुट्टी लै केॅ भागलपुर दौड़ो-धूप करलकै, मतरकि सब बेरथ--टाकाहौ गेलै आरो परेशानियो। ई तेॅ भाग मनावौ कि कोॅन विन्डोवोॅ उठलै जे टीचर सिनी केॅ एक जिला सें दुसरोॅ जिला में बदली होना शुरू भेलै आरो त्रिवेणी आरनी हौ इस्कूली से हेनोॅ भागलोॅ छेलै जेना गोहाली सें खुललोॅ लेरू उड़लोॅ रहेॅ।

ऊ दिन के बात याद ऐत्हैं विकास मुनलोॅ ठोरोॅ सें हाँसी पड़लै, कुछ एतन्है जोरोॅ संे कि ओकरोॅ पूरा देह-हाथ डोली पड़लै।

"भला की सोचलेॅ होतै ई पानवाला, हमरा हेना केॅ मने-मन हाँसतें देखी" ई सोची हम्में पानवाला दिश देखलियै, जे अभियो तांय होन्है केॅ फलकलोॅ तरत्थी पर ठोढ़ी फँसैलेॅ सड़कोॅ दिश ताकी रहलोॅ छेलै।

हमरा आपना दिश देखतें देखलकै तेॅ सीधा होतें कहलकै, "नै कसेली, तेॅ लोंगे-इलाइची लिऐ. देखै छियै कसेली के दोनों टुकड़ा तेॅ आपने के अंगुरिये बीचोॅ में छै।" आरो झट सनां वैनें एक छोटोॅ रँ डिबिया केॅ खोली वैसें इलायची निकालकै, फेनू छिलका उतारी केॅ ओकरोॅ दाना हमरा दिश बढ़ैलकै--बड़ी निष्ठा साथें। हेनोॅ करै वक्ती ओकरोॅ बाँया हाथ के अंगुली सिनी दाँया हाथ के बाँही पर आवी केॅ जमी गेलोॅ छेलै आरो हमरोॅ दाना उठैला के बादे जे हटलोॅ छेलै।

"आचरज छै, दस मिनिट बोललकै आरो आभी तांय नै ऐलोॅ छै।" हम्में ई बात दुकानदार केॅ सुनइये केॅ बोललियै। से वैं उत्तरोॅ में कहलकै, "दस मिनिट कहलेॅ छौं तेॅ साठ मिनिट बूझोॅ। कहै के हिनी माट साहब रहौं, मतरकि हिनी छेकौं पकिया नेता आरो आयकल ऊ टीचरे की, जे नेता नै रहेॅ। तखिनकोॅ जमाना छेकै थोड़े, जखनी गुरु के मतलब गुरु होय छेलै, आय गुरु के माने होय छै--गुरू घंटाल।" ई बात केॅ वैंने थोड़ोॅ दबले-दबलोॅ आवाजोॅ में कहलकै, मतरकि एतना साफ कि कोइयो सुनेॅ पारेॅ।

"तेॅ की, है बात यैं मंटुवे केॅ सामना में राखी केॅ बोललकै?" हम्में पानवाला के बातोॅ के बिना कोय उत्तर देल्हैं सोचलियै--झूठ भी तेॅ नै बोली रहलोॅ छै ई. नया जगह में ऐत्हैं मंटू जे चाल चलना शुरू करी देलेॅ छेलै, वै सें बंधलोॅ व्यवस्था मेंजेना उबाल आना शुरू होय गेलोॅ छेलै...छुट्टी होला के बाद, रोजे कोय न कोय टीचर साथेॅ लय्ये केॅ ऊ निकलै आरो ओकरा ई विश्वास दिलावै कि हेडमास्टर के एत्तेॅ सवेरे आवै के की मानी छै...वैं कहै, "हमरौ मालूम छै कि इस्कूली के पैसा कोॅन-कोॅन फण्डोॅ के नीचेॅ दबलोॅ रहै छै, आरो जेकरोॅ नीचें हेड के परानो। ई तेॅ भाग मनावौ कि हमरोॅ गाड़िये देर पहुँचै छै, नै तेॅ धोॅन सहित प्राण उखाड़ी केॅ राखी दियै।"

है की खाली मंटुवे के विश्वास छेलै, दुसरो मास्टर सिनी केॅ यहेॅ विश्वास छेलै सालोॅ सें। मंटूं खाली ओकरा बोॅल देलेॅ छेलै--विरोध करै के. आरो फेनू शुरू होलै बातोॅ सें गाली तक के उठा-पटक। पढ़ाय-लिखाय तेॅ हेन्हौ केॅ नहिये हुऐ. पहिलें मास्टर सिनी स्टाफ रूमोॅ में देेश सें लैकेॅ दुनिया तक के राजनीति बतियावै; एकरा सें फुर्सत मिलत्है, वेतन, पेंशन, हड़ताल आरनी पर...

आबेॅ मंटू के ऐला पर शिक्षक सिनी आपन्हैं में उलझी ऐलोॅ छेलै। लड़का तेॅ तभियो मैदान में दिन भर फुटबॉल खेलतेॅ रहै आरो अभियो...मतरकि हेडो तेॅ कम बड़ोॅ खेलाड़ी नै छेलै...एक दिन मंटू नै ऐलोॅ छेलै, हेडें सब टीचर केॅ बोललकै आरो कहलकै--"हमरोॅ कखनू ट्रान्सफर हुएॅ पारेॅ। जेकरा जे सीआर हमरा सें लिखवाना छौं, लिखवाय लियोॅ।"

धनवन्तरी महाराज के जड़ी रँ काम करलकै हेड मास्टर साहब के कथन आरो वही दिनोॅ सें सब टीचरें मंटू के साथ छोड़ी देलेॅ छेलै। हमरा सें कै दाफी ऊ ई रँ कन्नी कटाय के कारण जानै लेॅ चाहलकै, मजकि हमरो गोबध नै टूटै। एकदम गुम्मी साधी लियै।

आरो फेनू एक दिन हठाते विन्डोवोॅ। ई तेॅ महीना भरी बादे हमरा सिनी केॅ मालूम होलै कि है विन्डोवोॅ हेड सर के उठैलोॅ छेलै। लड़का सिनी केॅ है कही सनकाय देलकै कि हुनी तेॅ यहेॅ चाहै छै कि ओकरोॅ सिनी के परीक्षा-केन्द्र यहेॅ इस्कूल रहेॅ, पटना तक पैरवी होय चुकलोॅ छै, मतरकि नया सर मंटू एकरोॅ विरोध करी रहलोॅ छै। चाहै छै कि सेन्टर दुसरोॅ जिला, दुसरोॅ इस्कूल पड़ेॅ।

हेडमास्टर के एतना कहना छेलै कि उठवे नी करलै विन्डोवोॅ। लड़का सिनी दिन भरी सड़क जामे रखलकै। आस-पास के छोटोॅ-मोटोॅ दुकानी के लूट-पाट होय गेलै। नारा, अलगे ताबड़ताड़--सब्भे टीचर सच्चा छै, मंटू टीचर लुच्चा छै।

शिक्षा पदाधिकारी ऐलै, पुलिस ऐलै। हेडमास्टर साहबें दोनों केॅ आपनोॅ रूम लै गेलै। आध घंटा बात-चीत चललै आरो जबेॅ बाहर निकललै तेॅ एकदम चेहरा खिललोॅ-खिललोॅ लै केॅ। जेकरा देखत्हैं लड़का सिनी के विद्रोहो अलोपित होय गेलै आरो ठीक दुसरे दिन सबनें जानलकै कि मंटू के तबादला होय गेलै। इस्कूल छोड़ै के नोटिसो तुरत मिली गेलोॅ छेलै। है सब एत्तेॅ जल्दी-जल्दी होलै जेकरोॅ कल्पना मंटुओ तक केॅ नै रहै।

"एक बात कहियाैं माट साहब?" दुकानदार के प्रश्न सुनी केॅ हम्में चौंकी उठलियै, "हों कहोॅ।" आरो गड़लोॅ नजरी सें ओकरोॅ दिश देखलियै।

"बुरा नै मानियो माट साहब" फेनू आपनोॅ दाँया हाथ पूरब दिश दिखैतें कहलकै, "हौ जे इस्कूल छेकै--मिसनरी वाला, वहौं ओत्तो टीचर नै होतै, जत्तेॅ आपने के इस्कूली में। एकाध टा कम्मे होतै, आरो हमरा तेॅ मालूम होलोॅ छै कि तोरा सिनी के जत्तेॅ तनखा मिलै छौं, ओकरोॅ अधियो नै मिलै छै--मिशनरी इस्कूल के टीचरोॅ केॅ--एक चौथाइये कहोॅ। आरो देखोॅ, की समय पर आवै छै, की समय पर जाय छै। जेहनोॅ लड़का सिनी अनुशासित, होन्हे टीचर...बुरा नै मानियोॅ माट साहब, आय तांय ई स्कूली के टीचर सिनी केॅ हड़ताल करतें नै देखलियै, तोरा सिनी हेनोॅ आरो तोरा सिनी केॅ हड़ताल-आन्दोलन के नामोॅ पर सालो भर ठीक सें विद्यालय करतें नै देखलियौं। ई दुकानी पर रं-रं के टीचर सिनी आवै छै, है तेॅ कहना मुश्किल कि कोन-कोन इस्कूली के हुनका सिनी टीचर छेकै, मजकि हुनका सिनी के खुल्लमखुल्ला के बातोॅ सें सबटा बात तेॅ समझै में ऐवे नी करै छै। हमरा अभियो याद छै कि खाली शनिचराहै पैसा केॅ आपनोॅ वेतन समझी, हमरा सिनी केॅ गुरु नें ओतन्है ज्ञान देलकै, जत्तेॅ तोरा सिनी महिनवारी पन्द्रहो हजार टाका लै केॅ नै दिएॅ पारै छौ। वहेॅ गुरु के हमरोॅ रं चेला के सामना तोरोॅ एम. ए., बी. ए. वाला चेलाहौ नै टिकेॅ पारेॅ। झूठ नै कहै छियाैं...माट साहब बुरा नै मानियोॅ, सरकारी इस्कूल के टीचर सें लैकेॅ लड़का सिनी के मोॅन-मिजाज एकदम सरकारिये आदमी रँ। आदमी हताशा में आपनोॅ बच्चा मिशनरी इस्कूली में दै-दै छै--आरो जबेॅ अंग्रेजी, अंगरेजियत फैलै छै, तेॅ ओकरो लेॅ चीखै-चिल्लावै छौ कि अंग्रेज़ी शिक्षा बन्द करौक। आपना पास त्याग के तेॅ भावे नै रही गेलोॅ छै। माट साहब, है तेॅ जानलेॅ बात छेकै कि जहाँ पैसा पावै के हाही बढ़ी जाय, वहाँ आदमी के ज्ञान पहिले बनरयावै छै। आरो हेनोॅ आदमी सें देश-दुनिया के हित सोचवोॅ गूहोॅ में घी ढारबोॅ।"

ई सब बात ऊ कोय सिद्ध साधू नाँखी बोली गेलै, जे हमरा तीर नाँखी लागलोॅ छेलै। विरोध करतें कहलियै, "तोरा सिनी के है ओछोॅ सोच के पीछू दरअसल मास्टर सिनी के बढ़लोॅ वेतन छेकै। तोरा सिनी चाहै छौ कि मास्टर सिनी भिखमंगा नाँखी जिएॅ तेॅ बड़ी बढ़ियाँ, नेता-मंत्री पर अँगुली तेॅ उठावेॅ नै पारवोॅ।"

कि तभिये मंटू हुप सना सामना आवी केॅ साइकिल रोकी देलकै। ऊ जोॅन दिश सें गेलोॅ छेलै, हुन्हैं सें नै आवी केॅ दुकानी के ठीक पीछू वाला एकपैरिया रास्ता सें साइकिल हाँकलेॅ ऐलोॅ छेलै। साइकिल रोकतें कहलकै, "बुरा नै मानियें विकास, हेडमास्टर साहब सें बात करै में कुछ देर होय गेलै, सब्भे बात सलटाना ज़रूरी छेलै।" कहत्हैं-कहत्हैं वैनें साइकिल केॅ स्टैण्ड पर खाड़ोॅ करलकै आरो नगीचे वही बंेची पर बैठी गेलै। पानवाला केॅ दू ओंगुली दिखाय केॅ दू खिल्ली पान दै के संकेत करलकै आरो फेनू हमरा सें कहेॅ लागलै, "हमरोॅ खिलाफ लड़का सिनी केॅ भड़काय केॅ वैं हेडमास्टर की समझलेॅ छेलै, वैं वाजी मारी लेलकै। चहैतियै तेॅ बीच रस्ता में छेकी केॅ...तबेॅ चलें, जे होलै, अच्छे होलै। ई इस्कूल छेवौ करै एकदम अबहट्ट में--सड़क सें चार मील दूर। कोॅन पदाधिकारी के मोॅन करतै कि धुरदा-गरदा फाँकतें आरो गड्ढा-गुड्ढी पार करी इस्कूली के इन्सपेक्शन करौं। सड़के सें पूछ-ताछ करी केॅ चल्लोॅ गेलोॅ आकि हेडमास्टर साहब के घरोॅ पर ऐलोॅ आरो गेलोॅ। लड़का तेॅ पाँच सौ के करीब छै, मजकि खाली रजिस्ट्रे पर। पचासो टा नै आवै छै। हेडमास्टर लगाय केॅ दस मास्टर छियौ। सब के पारी बान्हलोॅ छौ। बस हफ्ता में तीन दिन आना छै, तीन दिन के हाजरी जोॅन दिन ऐलां, बनाय लेलां। कोय हरहर-कचकच नै। खाली जोॅन दिन वेतन उठाना रहै छौ, वहेॅ दिन इस्कूल के सब मास्टर के मेला लागलौ।" आरो ई कहतें-कहतें वैं ठहाका लगाय देलेॅ छेलै।

हम्में चोर निगाह सें पानवाला दिश देखलेॅ छेलियै, जेकरोॅ हाथ तेॅ कत्था-चूना पर चली रहलोॅ छेलै, मतरकि ओकरोॅ कान हमर्है दोनों पर गड़लोॅ छेलै। हमरा लागलै, जेना वैं हमरा सें पूंछतेॅ रहेॅ, "आबेॅ तोरा की कहना छौं, माटसाब?"

जेना एक कड़ा सवाल गुरु जीं चटिया सें पूछी देलेॅ रहै आरो हम्में बक्खोॅ। की जवाब देतियै! बस उठलियै आरो मंटू सें दोनों हाथ मिलैतें साइकिल पर सवार होय गेलियै। हेन्हौ केॅ बहुत बेर होय गेलोॅ छेलै। पौने ग्यारह तेॅ अभिये बजी रहलोॅ छै। जैतंे-जैतें पन्द्रह मिनट आरो। तेज-तेज चलतें इस्कूल पहुँचलियै। खैर आभी कोय टीचर नै ऐलोॅ छेलै। लड़का सिनी उछल-कूद करी रहलोॅ छेलै आरो इस्कूल के चपरासी बायां हाथ में घंटी केॅ ऊपर उठैनें दायां हाथ के छड़ी सें टनटनाय रहलोॅ छेलै--टन, टन, टन, टन, टन।