चमचा साधै सब सधै / ललित शर्मा

Gadya Kosh से
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हिन्दी फ़िल्मों में हीरो के साथ एक चमचा अवश्य ही रहता है जो उसकी हाँ में हाँ मिलाता है। बिना चमचे के तो कोई फ़िल्म ही नहीं बनती। चमचा पहले कास्टिंग किया जाता है, हीरो बाद में। हीरो तो बहुत मिल जाएगें पर उपयुक्त चमचा मिलना बहुत ही कठिन होता है। चमचा ऐसा होना चाहिए कि जिसे हीरोईन भी पसंद करे। क्योंकि हीरो और हीरोईन के बीच चमचे को सेतु का काम करना पड़ता है। इसलिए हीरो-हीरोईन दोनो की रजामंदी होना जरुरी है।

डायरेक्टर, प्रोड्युसर से लेकर पूरी युनिट में सभी के पास एक-एक चमचा होता है। क्योंकि बिना चमचा के किसी का काम नहीं चलता। चमचा छोटा हो या बड़ा लेकिन चमचागिरी के गुणों से ओत-प्रोत होना चाहिए। कमर तक झुककर कोर्निश करने वाले एवं दंडवत लेटने वाले चमचे ज्यादा पसंद किए जाते हैं। इस विशेष योग्यता का होना निहायत ही जरुरी है। तभी चमचा अपने मालिक के हृदय में स्थान पाता है।

कभी कभी सोचना पड़ता है कि दिनचर्या में यह चमचा कहां से घुस गया? जिसके बिना काम चलता ही नहीं है। भारतीय संस्कृति में भोजन बिना चमचे के ही किया जाता है, हाथ से खाने में थाली से भोजन सीधा मुंह में जाता है। अगर अंधेरा भी हो जाए तो आंख मुंद कर भी खाएं तो हाथ सीधा मुंह में ही जाता है। जो कि चमचे से संभव नहीं है।

चमचा इतनी सहजता से हमारे जीवन में प्रवेश कर गया कि पता ही नहीं चला और पूरा राज काज अपने हाथों में ले लिया। बिना चमचे के तो अब दिनचर्या चलाना क्या कुछ भी सोचना मुस्किल है। अत्र-तत्र-सर्वत्र चमचा ही चमचा, रसोई से लेकर सत्ता के मठ-मंदिरों तक चमचे का ही राज चलता है। यथेष्ट तक पहुंचने के लिए पहले चमचे को साधना पड़ता है। तभी कार्य संभव हो पाता है। अंग्रेज जब भारत में आए तो अपने साथ चमचा लेकर आए। उन्हें हाथ से खाना नहीं आता था। अंग्रेजो ने चमचे के दम पर 200 साल राज किया। जम कर चमचों का इस्तेमाल किया उन्होने। बड़े बड़े खिताबों से नवाजा गया चमचों को, लोहे से लेकर सोने-चांदी के हीरे जड़े चमचे तैयार किए गए। साम-दाम-दंड-भेद प्रक्रिया को अपनाया।

अंग्रेजों ने चमचों के साथ छूरी कांटे का भी जमकर इस्तेमाल किया और सोने की चिड़िया को खोखला कर दिया। इस दुष्कृत्य में चमचों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेज चले गए लेकिन चमचा छोड़ गए। चमचा संस्कृति आजाद भारत की उर्वरा भूमि में बड़ी तीव्रता से पुष्पित पल्लवित हूई। चमचों ने मालिक बदल दिए, अंग्रेजों के द्वारा इस्तेमाल किए गए चमचों की मांग ज्यादा थी क्योंकि उन्हे राज-काज के सारे गुर मालूम थे। आजादी के बाद भी चमचों ने अपनी उपयोगिता को बनाए रखा।

चमचे सर्वव्यापक हैं और सर्वव्याप्त हैं। आप सत्ता के गलियारों में कहीं भी जाएं, हर जगह चमचे तैनात मिलेंगे। अगर आपको कोई सही काम भी करवाना है तो चमचों से ही सम्पर्क साधना पड़ेगा। कभी भी आपने बिना चमचे की स्वीकृति से काम कराने की कोशिश की तो वे आपका बना बनाया रायता फ़ैला देंगे। कोई काम नहीं हो पाएगा। इसलिए पहले चमचे को साधना जरुरी है। बुद्धिमान व्यक्ति वही है, जो चमचों को साधने का कार्य सबसे पहले करता है। सीधा चमचे को ही साधता है। चमचा साधै सब सधै--यह मंत्र याद रखना जरुरी है। जो इस मंत्र का नित्य जाप करता है वह संसार में कभी कष्ट नहीं पाता। तीनो भुवनों के आनंद को प्राप्त करता है, तीनों लोकों में कीर्ति पताका फ़हराता है।

किसी दिलजले ने कह दिया कि-"चमचों की तीन दवाई-जूता-चप्पल और पिटाई।" चमचों की पिटाई होना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि ये घर से ही पूरे शरीर में तेल मलकर निकलते हैं, जहां भी आपने पकड़ने की कोशिश की, तो आपका हाथ फ़िसल जाता है और ये पकड़ में नहीं आते। साथ में तेल की शीशी भी रखते हैं। आवश्यकता पड़ने पर तेल भी लगा देते हैं- "सर जो तेरा चकराए, दिल डूबा जाए, आज्जा प्यारे तेल लगवा ले, काहे घबराए, काहे घबराए"।

दुनिया का कोई भी क्षेत्र चमचों से अछूता नहीं है। अगर आप खुद मुख्तयार हैं याने चमचागिरी आती है तो सोने में सुहागा समझिए। बहुत जल्दी तरक्की करेंगे। अगर नहीं आती तो इन चमचों के माध्यम से आएगी, अन्यथा तरक्की किस चिड़िया का नाम है, ढुंढते ही रह जाएगें।

राजनीति, नौकरी, साहित्य इत्यादि सभी क्षेत्रों में चमचों का दखल है। राजनीति में आप चमचागिरी के सहारे एक साधारण कार्यकर्ता से बड़ी जल्दी ही मंत्री पद पा सकते हैं। अगर मंत्री पद नही मिला तो कोई एम एल सी की सीट या कार्पोरेशन की अध्यक्षी अवश्य ही प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आपको जरुरत से ज्यादा मीठा होने की आवश्यकता है। भले ही शुगर की बिमारी हो जाए, लेकिन मीठा तो होना ही पड़ेगा। तभी तरक्की संभव है।

नौकरी करते हैं तो हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि- "बॉस इज आल वेज राईट"। "हां जी, हांजी कहना और इसी गांव में रहना"। जी-हजूरी डटकर करो, भले फ़िर दूसरा काम मत करो। बॉस की नजर में हमेशा बने रहो। फ़िर तरक्की ज्यादा दूर नहीं है। घटिया से घटिया लिखिए, बस नामवर साहित्यकारों की चरण चम्पी करते रहिए, नजरे इनायत होने पर आपसे बड़ा साहित्यकार-कवि कोई दूसरा नहीं है। चमचागिरी महान है चमचा देश की शान है, हमारी संस्कृति की जान है।