चलती का नाम गाड़ीसवार है इसमें अवाम / जयप्रकाश चौकसे

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चलती का नाम गाड़ीसवार है इसमें अवाम
प्रकाशन तिथि : 12 फरवरी 2021


अमेरिका में फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन पूर्व किसी छोटे कस्बे में फिल्म का एक शो करते हैं। निर्माता दर्शक की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं। कभी-कभी फ़िल्मकार प्रतिक्रिया जानने के बाद फिल्म में परिवर्तन करते हैं। एक बार यह प्रयोग किया गया कि इसी तरह के प्रदर्शन पूर्व शो में दर्शक की सीट पर दो बटन लगाए गए। उनसे कहा गया कि फिल्म समाप्त होने के पहले सुखांत देखने के लिए हरा बटन और दुखांत देखने के लिए लाल बटन दबाएं। परिणाम यह निकला कि दोनों के लिए समान मत प्राप्त हुए। सारांश यह है कि दर्शक की प्रतिक्रिया केवल सार्वजनिक प्रदर्शन के बाद ही मिलती है। प्रदर्शन के पूर्व आयोजित प्रीव्यू देखते आम दर्शक स्वयं को विशेष व्यक्ति समझने लगता है कि वह अवाम के देखने के पहले फिल्म देख रहा है।

एक पुरानी घटना यह है कि एक अघोरी अमेरिका आता है। अघोरी जमात यह मानती है कि संसार में सभी कुछ ईश्वर की रचना है। अत: मैला भी खाया जा सकता है। उसके मेजबान ने $10 का टिकट बेचकर एक शो आयोजित किया, जिसमें अघोरी मेज पर रखा मैला खा जाएगा। शो को लंबा खींचने के लिए मेज पर 5 प्लेटें रखी गईं इसमें श्वेत-अश्वेत, महिला-पुरुष इत्यादि के विविध मल हैं। अघोरी ने केवल एक प्लेट का मल खाने से इंकार कर दिया। कुछ और डॉलर दिए जाने के बाद भी उसने इंकार कर दिया। उसने यह स्पष्टीकरण दिया कि उसमें एक मक्खी पड़ी थी। ग़ौरतलब है कि मल खाने वाले अघोरी को मक्खी पड़ जाने पर ऐतराज था। इसी तरह यह बताना कठिन होता है कि किस फिल्म में दर्शक को अदृश्य मक्खी दिख जाएगी।

दिलीप कुमार अभिनीत ‘अमर’ असफल रही। राज कपूर और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ फ्योदर दोस्तोयेव्स्की के लोकप्रिय उपन्यास ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ से प्रेरित थी परंतु असफल रही। विजय आनंद द्वारा निर्देशित फिल्म ‘तेरे मेरे सपने’ भी नहीं चली। देवानंद और सुचित्रा सेन अभिनीत ‘मुंबई का बाबू’ नहीं चली। सलमान खान की ‘जय हो’ और ‘भारत’ नहीं चलीं। शाहरुख खान अभिनीत ‘जीरो’ भी असफल रही। धर्मेंद्र और हेमा मालिनी अभिनीत फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ असफल रही।

राज कपूर की ‘मेरा नाम जोकर’ और गुरुदत्त की ‘कागज के फूल’ नहीं चली जबकि दोनों का संगीत सफल रहा था। ऋषि कपूर की ‘कर्ज’ की असफलता से ऋषि नैराश्य में चले गए थे।

राजकुमार राव की ‘ट्रैप्ड’ और ‘शादी में जरूर आना’ भी असफल रही। दरअसल दर्शक और मतदाता की पसंद का ऊंट किस करवट बैठेगा यह कोई नहीं जानता। सामूहिक अवचेतन की पसंद जान लेना आसान नहीं है। मानसरोवर का जल सुबह, दोपहर और शाम अलग अलग दिखता है। पहाड़ी के पीछे से सूर्य का प्रकाश अलग-अलग कोण से आता है, जिस कारण यह प्रभाव इतना विविध होता है।

दर्शक की तरह मतदाता का झुकाव कभी समझ नहीं आता। टेलीविजन पर नतीजे आने के पहले के आकलन प्राय: गलत हुए हैं। 31% मत पाकर भी सरकार बनी है। 60% व्यक्ति ही मत देते हैं। इस तरह गणतंत्र के नाना प्रकार हैं। वोट बैंक एक मिथ है। अवाम को कभी-कभी त्रास देने वाला नेतृत्व अच्छा लगता है। कभी किसी को विकल्प नजर नहीं आता। हमारा गणतंत्र चलती का नाम गाड़ी है।