चांद हो या आफताब हो, लाजवाब हो / जयप्रकाश चौकसे

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चांद हो या आफताब हो, लाजवाब हो
प्रकाशन तिथि : 17 जुलाई 2019


चांद से प्रेरित अनेक फिल्मों के नाम रखे गए हैं जैसे 'दूज का चांद', 'चांद का टुकड़ा', गुरुदत्त की 'चौदहवीं का चांद' इत्यादि। सूरज की अपेक्षा चांद ने मानव कल्पना को अधिक प्रेरित किया है। सूर्य रोशनी है, सूर्य तर्क है, ताप है परंतु मनुष्य को अंधेरा अधिक पसंद है। मनुष्य का मिजाज अलसबोर है- चम्पई उजाला और सुरमई अंधेरा। इसी तरह फिल्मी गीतों में भी चांद और चांदनी छाए हुए हैं। तथ्य तो यह है कि पूनम की रात समुद्र में उत्तुंग लहरें उठती हैं और लगता है कि चांद देखकर समुद्र के हृदय में विरह की पीड़ा बढ़ जाती है, जो उत्तुंग लहरों द्वारा वह अभिव्यक्त करता है। शैलेन्द्र ने फिल्म 'अनाड़ी' के एक गीत में चांद को जादूगर कहा है। फिल्म 'चोरी चोरी' में गीत है 'वो चांद खिला वो तारे हंसे, ये रात अजब मतवाली है। 'चोरी चोरी' के दो गीत सुनकर पोलैंड से भारत आए एक शोधकर्ता ने कहा कि यह माधुर्य मनुष्य की सृजन शक्ति के परे हैं। यह तो दिव्य संगीत है। गुलजार स्वीकार करते हैं कि चांद उनके काव्य का केंद्र है।

दशकों से दक्षिण भारत से 'चंदामामा' नामक पत्रिका प्रकाशित होती रही है। एसएस राजामौली ने 'चंदामामा' में प्रकाशित रचनाओं से प्रेरित होकर 'बाहुबली' का आकल्पन किया, जिसकी अपार सफलता ने तर्कहीनता को सत्य की तरह स्थापित कर दिया और सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्मों को हाशिये पर धकेल दिया। यह भी कहा जाता है कि समुद्र नहीं वरन दिमाग में केमिकल लोचा होने वाले रोगी भी चांद को देखकर बौरा जाते हैं। अंग्रेजी के निबंधकार चार्ल्स लैंब की सगी बहन ने पागलपन के दौरे में अपने माता-पिता की हत्या कर दी थी। उसने कुछ वर्ष पागलखाने में काटे। चार्ल्स लैम्ब ने अपनी जवाबदारी पर उसे पागलखाने से मुक्त कराया। पूनम की रात वे अपनी बहन को साथ लेकर चांदनी में घूमते हुए उसके मन से चांद संबंधित पागलपन दूर करते रहे। अपनी बहन के इलाज के लिए उन्हें धन चाहिए था, जिसे वे निबंध प्रकाशित करा कर कमाने लगे। इस तरह अंग्रेजी साहित्य में चांद के कारण निबंध विधा में उल्लेखनीय काम हुआ।

20 जुलाई 1969 को अमेरिका का अपोलो ग्यारह उपग्रह चांद पर उतरा। वे चांद से 50 पाउंड वजन के पत्थर के टुकड़े साथ लेकर आए ताकि शोध किया जा सके। नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा, जो मानव इतिहास की लंबी छलांग के रूप में स्थापित हो गया। चांद पर गुरुत्वाकर्षण बहुत कम है, इसलिए मनुष्य उछलता हुआ या उड़ता हुआ दिखाई पड़ता है। माइकल जैक्सन ने अपने नृत्य में मूनवॉक ईजाद की जो आज भी युवा नाचने वालों को दर्शकों की तालियां दिलाता है।

बालक कृष्ण ने ज़िद की कि वे चांद से नज़र मिलाने के बाद ही दूध पीएंगे। माताएं बड़ी जुगाड़ू होती हैं। माता ने पानी से भरी थाली में चांद की छवि दिखाकर कृष्ण को दुग्धपान कराया। सूरदास की बालक रूप में कृष्ण पर लिखी कविताओं में बालकों को होने वाली बीमारियों के संकेत भी दिए गए हैं। मेडिकल विज्ञान की डॉक्टरों के लिए निकाली पत्रिका में एक लेख इस विषय में पढ़ा था। सदियों से एक लोरी गाई जा रही है- 'चंदा मामा दूर के पुए पकाए पूरके, आप खाएं थाली में, मुन्ने को दें प्याली में'।

चांद पर पहुंचने से मनुष्य का धरती के बारे में ज्ञान बढ़ा। चांद से उसने धरती को सूर्य की तरह उदय होते देखा है। यह भी गौरतलब है कि दूसरे महायुद्ध के समाप्त होने के बाद अमेरिका और रूस के बीच शीतयुद्ध का प्रारंभ हुआ। अंतरिक्ष की खोज के लिए दोनों के बीच होड़ प्रारंभ हो गई। रूसी यूरी गॉगरिन ने अंतरिक्ष यात्रा की परंतु चांद पर पहला कदम नील आर्मस्ट्रॉन्ग का पड़ा। चांद पर पानी नहीं है, इसलिए रूस और अमेरिका दोनों ने वहां यान भेजना बंद कर दिए हैं। अब उनका लक्ष्य अन्य ग्रह हैं। भारत चांद का अभियान जारी रखे हुए है, जबकि उसे बेरोजगारी व भूखमरी जैसी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। पुरातन आख्यान आज भी हमारी सामूहिक सोच को संचालित करते हैं। हमारे सामूहिक अपराध बोध का ही परिणाम है वर्तमान की विकृतियां। विज्ञान की खोज के दशकों पूर्व साहित्यकार एचजी वेल्स ने विज्ञान फंतासी रचनाएं प्रारंभ कर दी थीं। सिनेमा की खोज के बाद जूल्स बर्न ने चंद्रयात्रा पर कथा और फिल्म की रचना कर दी थी। एचजी वेल्स इस विधा के पितामह हैं। उनके युग में उनकी कल्पना का मखौल बनाने वाले यह जानते नहीं थे कि भविष्य में ये सब वास्तव में घटित होने वाला है।

राजकुमार हिरानी और आमिर खान की फिल्म 'पीके' के अंतिम दृश्य में अंतरिक्ष से आया प्राणी धरती के एक अहंकारी व्यक्ति से कहता है कि यह गोला (पृथ्वी) बहुत छोटा है और इस छोटे से गोले के छोटे से भाग में रहने वाला अपने को त्रिकालदर्शी समझने की नादानी कर रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान हमें अपनी लघुता का अहसास कराता है। हम अपनी लघुता से जीवन को ही बौना करार दे रहे हैं। फिल्मकार कैमरून की फिल्म 'अवतार' में पृथ्वी से दूसरे ग्रह पर आया एक दल वहां के वृक्ष कटवाता है ताकि वहां अपना कैम्प स्थापित कर सके। दल की एक महिला सदस्य कहती हैं कि धरती से करोड़ों मील दूर हम यहां के वृक्ष काट रहे हैं तो इन वृक्षों की पीड़ा धरती पर उगे वृक्षों को हो रही होगी। दरख्त कहीं भी पनपे हों, उनके बीच एक अनाम अदृश्य रिश्ता होता है। मनुष्य का लालच और मूढ़मति नेता पृथ्वी को धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं। तथाकथित विकास का रथ धरती पर उगी कोंपलों को रौंद रहा है। लाखों वृक्ष लगाकर ही पृथ्वी को बचाया जा सकता है परंतु लोहे के ट्री गार्ड चोरी हो जाते हैं और कबाड़ में बेच दिए जाते हैं। हम धीरे-धीरे पृथ्वी को ही कबाड़खाना बनाते जा रहे हैं। मनुष्य को अपने आत्मघाती स्वभाव पर अंकुश लगाना होगा। हमारी 'डेथ विश' पृथ्वी की फांसी का वारंट है। नेताओं के भरोसे मत रहिए, स्वयं अपने गोले की रक्षा का जतन करिए।