चिड़ीमार / बी.एल. माली ‘अशांत’ / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: जनवरी-मार्च 2012  

बात आ नीं है कै जमीं नीपजै कोनी, बात आ है कै नीपज री लागत बढगी। खेतीखड़ के खावै! मसीनां नीपज री लागत बढाई है। पैली घर रा मिल परा काम करता तो किणी नैं कीं देवणो नीं पड़तो। अब तो गोज सूं पीसा निकळै बै जाय'र नीपज री लागत पर पड़ै। खरचा बधग्या। जमीं खरचां रो बोझ नीं परोटै। खेतीखड़ अर खेती दोनूं बोझ्यां मरै। सगळा जमींदार नीं है। किसान किसानी करै। सगळा रै ट्रैक्टर, थ्रेसर नीं है। घर री खात सूं अब काम नीं चालै। आं खातां अर दवायां रो खरचो खेती परोटै नीं। नीपज कांईं कर लेवै, वां री कीमत आमदनी में मावै नीं। सै कीं लागत में चुका देवै तो फेर घर रा के खावै?

किसान खेती छोड़ैला तो कीमतां बधैली। किसान रै साथ गरीब दुख पावैला। खेती माथै बोझ कम करणै री बात आछी है। पण कीकर करी जावै। सरकार अेक टाबर का दो टाबर री बात करै। तो किणनैं दूजै काम में लगावै अर किणनैं खेती सूंपै। बेटी आपरै घर री सरतर करै। किसानी भारी हुयगी अर खेती करणियो किसान माड़ो। रामसरूप रो घर आज भी गोबर-माटी रो है। भींतां आज भी गोबर सूं लीप्योड़ी। कहण नै तो जमीं नहरी है, पण नहरी जमीं रा दुख भी भारी है। बिरानी री तो बात ई मत बूझो। सुख तो मैंगा है। दुखां रा दाम नीं देवणा पड़ै। नहरी जमीं पाणी तरियां किसान नैं पीती जावै। अर बिरानी किसान री नीं भूख मेटै नीं तिस। किसानी घटती रा पूरा करै। किसान रै कुणसा महल-माळिया है! सहर-कस्बां मांय दूध री खपत ढांडा-ढोरां गांवां में भरत बढाई, कोई बाखड़ी तो कोई ब्याई - दोनूं मिल परी बात समा मेली है। घर माथै बोझ बेसी बधग्यो। बिजळी, मोबाइल, टेलीविजन, मोटर साइकिलां रा बीजा-बीजा खरचा है। पैलां पाणी रा पीसा नीं देवणा पड़ता पण अब तो पाणी भी पीसां रो। सिरकार छोड़ै थोड़ै ई। बिजळी विभाग, पाणी मोहकमो अर बजार - तीनूं किसान रै सिर पर बाळ नीं छोड़ै। आं खरचां रो पेटो नीपज सूं भरै। ब्याव-सादी री बातां तो करजै री है। साहूकार री थैली भरणै री। ...बाणियां घर भरै, किसान रा रीतै। नीपज पर नसै रो बोझ देखादेखी बधग्यो। नसो पैली रोटी रो हो, अब ओ नुंवो नसो डिस्टलीरियां नै आबाद कर दी। किसानी चकरी बम। किण-किण बात रो लेखो लेवां! राज रा अैलकार खेतीखड़ नै ढूंढै। अस्पताळ अर कचेड़ी सैंग बीं माथै मुंहडो धोयां खड़ी है। फसल नीपजै तो मंडी आळा बेपारी ऊभा हू ज्यावै। जिका ब्याव-सादी बीजी जरूरतां में दाम देवै, वै नीपज नै दोनूं हाथां लूटै। अब तो आं किसान, मजदूर, बेपारी नांव सूं संगठण बणा लियो है। किसान नैं लूटण खातर। किसान में जमींदार भेळा नीं है। वै बडा लोग है, वां री बडी बातां है। बिरानी री नीपज नै भगवान लूटै अर नहरी नैं मंडी आळा....। भगवान अर अैलकार खाली ऊमरो नीं काढै। ऊमरां रो नाज-धान अै लेवै तो किसान खातर कांईं बंचै? करज!

बडा घरां री बडी बातां है। खेती री बढती लागत किसान रै घुण री दांई लाग मेली है। आ लागत बारली अर मांयली दोनूं लागत। लागत सूं कीमत रो निर्धारण इण धरती माथै फकत खेती री नीपज रो ई नीं है। किसानी साथै ओ धोखो है। ठाडो अन्याव। किसान सूं पीसै रा दो पीसा लेवणियां किसान नैं पीसै रा पाव-रत्ती भी नीं देवै। लागत अर हाडां री मजूरी नीं मिलसी तो किसान कांईं करसी? कोई घिरतो-फिरतो सुणतो हुवै तो माटी री नींद उडावजो। ......रामस्वरूप रै इतरो करज कै वो उणनैं जीतै जी नीं उतार सकै। नीं बीं री जमीन। वो जमीन रो कांईं करसी? जमीन बीं रो भलो नीं कर सकै। फेर वो किसान कीकर रैसी? रामस्वरूप किसान है, वो किसानी नै जिंदी देखणो चावै। कोई उपाय है?

लारलै दिनां बीं री जोड़ायत बीमार हुयगी। डागदर दवायां रो बींटो बांध दियो। जांच-एक्सरां-सोनोग्राफी मांय बीं रो भारी बोझ बधग्यो। पण बो आ ईज सोच लीनी- गाडी मांय छाजला रो कांईं भार। जोड़ायत है तो घर है। घर है तो वो है। फेर किसानी वो बिना जोड़ायत रै कीकर करैला। है सो ई बिक जावैला। मालिक री किरपा सूं किरसण ठीक हुयगी। घरां आई जद तांईं तीस-चाळीस हजार रो बिल बंधग्यो। बीं री कमाई खेत सूं निसरगी। बीं रो बेटो इणी साल बारवीं में चोखा नम्बर ल्यायो। इंजिनियरी री परीक्षा मांय बढिया 'मेरिट' में पास हुयो। गांव में आछी बात बणी। पण रामसरूप सोच्यो- अब वो बेटै री पढ़ाई रो पेटो कीकर भरसी! जोड़ायत री बीमारी रो बाको वो उधार लेय'र भर्यो। अब उधार कठै तांईं पूगैली! कोई देवैलो करज?

रामसरूप री जोड़ायत जी समायो। वा आपरी भुवा सूं अस्सी हजार रुपिया उधार लिया। रामसरूप सोचै- आवतीं च्यार साल तांईं आ रकम आई साल उधार लेवणी पड़ैली। चुकाणै रा तो गेला ई कठै! बाळ-बाळ बंध जावैलो। बेटो तो पतो नीं कद इंजिनियर बणैलो का नीं बणैलो पण रामसरूप करज सूं काठो बंध जावैलो। पण रामसरूप रो कद बधग्यो। पेट री भुख कुण देखी!

बेटी ब्या'वण-सावै है। जमीन घर खरचो चलावै कै बेटी नै पराई करै! किसान नै अब आपरो चोळियो बदळणो पड़ैला। किसानी सूं लाज नीं बचैला। पण किसान मजूरी कीकर करै? लोग कांईं कैवैला! .....धरती कांईं सोचैली?

अेक रात खाट माथै बैठ्यो वो आपरी जोड़ायत नै कैयो- "बताय कांईं करां?" वा बोली- "कांईं करो, आ मनैं बूझो? मोट्यार हो, कमतर करो!" बो कैयी- "बात कमतर री नीं है। मैनत सूं रात्यूंरात बेटी रै ब्याव जितरा पीसा नीं कमाया जा सकै। बेपार आपां नै करणो आवै कोनी। ऊँच-नीच कर नीं सकां, फेर?" जोड़ायत बोली- "फेर के! बेटी तो....।"

रामसरूप बात समझग्यो। पण पीसै बिना समझ भी नीं आवै। जमीन खोद'र पीसो नीं निकाळ्यो जा सकै। जे जमीन कनै इज पीसा हुवता तो रामसरूप आ बात कहतो ई क्यूं? जमीन ई तो आ जूंण बींनै दीनी है। जमीन किसान नै गांव सूं बांधियो है। बो जमीन अर घर छोड'र नीं जा सकै। जे जावै तो कठै जावै! बो किसान है। बीं रो करम किसानी है।.....

फेरां रात टळ नीं सकै। बेटै री पढाई वो रोक नीं सकै। करज सूं वो छुट नीं सकै तो रामसरूप रो कांईं होसी। मनैं रामसरूप री चिंता है। ....किसानी नैं रामसरूप री चिंता है। कोई घिरतो-फिरतो-सुणतो हुवै तो इण फंसी कमेड़ी नैं इण चिड़ीमार सूं छुटावज्यो!