चिरंतन दुविधाआें की अमर कहानियां / जयप्रकाश चौकसे

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चिरंतन दुविधाआें की अमर कहानियां
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2014


शेक्सपीयर का'हेमलेट' सबसे अधिक मंचित नाटक है। सबसे अधिक इस पर फिल्में बनी हैं। शरतचंद्र चटर्जी के 'देवदास' पर भी अनेक भारतीय फिल्में बनी हैं। 'गीता' भी भारतीय वैदिक साहित्य की ऐसी कृति है जिसके कुछ अंश सबसे अधिक बार उद्दरित किए गए आैर अदालती मान्यता के कारण सबसे अधिक शपथ भी 'गीता' की ली गई है। इन तीनों में आखिर क्या समानता है कि माला के मनकों की तरह दोहराया जाता है? हेमलेट जानता है कि उसकी मां ने उसके चाचा के साथ षड्यंत्र रचकर उसके पिता की हत्या की है परंतु दुविधा है कि मां चाचा की हत्या कैसे करे? अर्जुन की दुविधा है कि कैसे भाइयों, गुरु, पितामह पर शस्त्र चलाए? श्री कृष्ण उसे दुविधा संशय से मुक्त कराते हैं। देवदास की दुविधा है कि कैसे अपने पिता का विरोध करके पारो को अपनाए? तीनों लोकप्रिय नायक अपनों के खिलाफ कदम उठाने से संकोच करते हैं। तीनों करुणा आैर ममता के कारण निष्ठुर कर्म की राह पर नहीं चलना चाहते। यही संकोच दुविधा आम आदमी को भी रोज सालती है कि कैसे वह अपने भ्रष्ट रिश्तेदारों के खिलाफ आवाज उठाए गोयाकि मानवीय करुणा संवेदना ही सारे अन्याय भ्रष्टाचार को अपरोक्ष रूप से पनपने देती है।

बहरहाल दुविधा यथार्थ जीवन का सबसे निर्मम सच है आैर हमारे भीतर जो निरंतर युद्ध चलता है- सत्य असत्य का, नैतिकता अनैतिकता का, कर्तव्य भावना का, उसी युद्ध से भावनात्मक तादात्म्य के कारण अर्जुन, हेमलेट आैर देवदास लोकप्रिय हैं। महिला वर्ग में देवदास की लोकप्रियता इसलिए है क्योंकि उनके मन में एक देवदास की कामना हमेशा कुलबुलाती है कि उनका कोई ऐसा हताश प्रेमी हो जो उनके विरह में शराब पी-पीकर मर जाए, उनकी दहलीज पर प्राण त्यागे। उनके भीतर छुपी अनन्य प्रेमिका के लिए इससे अधिक कुटिल संतोष क्या हो सकता है? अर्जुन, हेमलेट आैर देवदास मानवीय कमजोरियों के प्रतीक के रूप में हमारे अवचेतन में दर्ज हैं। हमारी दुविधाओं का ही प्रतीक हैं। हमारे अवचेतन के उन अंधेरे कोनों में रहते हैं जहां हमें स्वयं जाने से डर लगता है। हमारे भीतरी भय आैर चाहतों के ये चलते फिरते स्वरूप हैं। हेमलेट को फ्रायड का कोई अनुयायी इडीपस कॉम्प्लेक्स से पीड़ित बताकर कह सकता है कि पिता की हत्या नहीं की, मां ने स्वयं उसके प्यार को ठुकराया है। मस्तिष्क की बीमारियां मुखौटे लगाकर सरेआम घूमती हैं।

बहरहाल विशाल भारद्वाज ने हेमलेट पर 'हैदर' बनाई है। वे मैकबेथ पर 'मकबूल' ऑथेलो पर 'आेंकारा' बना चुके हैं। किसी घटिया मौलिक कथा के बदले किसी कालजयी लेखक की रचनाओं का अपना संस्करण बनाना बेहतर है, भले ही वे शेक्सपीयर के महान योद्धा ऑथेलो को ग्रामीण अंचल के टुच्चे नेता के कातिल हाथ की तरह पेश करें। गलतफहमी के कारण ऑथेलो के हाथों पत्नी की हत्या होती है तो दर्शक की सहानुभूति उसके साथ है परंतु दुष्ट नेता के काले 'हथियार' से कैसे सहानुभूति हो। ऑथेलो के खिलाफ षड्यंत्र का कारण तो है कि एक नीग्रो योद्धा श्रेष्ठि वर्ग के 'गोरों' की रक्षा करता है आैर रंगभेद की भीतरी ग्लानि ही उन्हें हत्या के लिए प्रेरित करती है।

बहरहाल कुछ इस तरह की खबरें हैं कि हेमलेट उर्फ हैदर कश्मीर में जन्मा है आैर चाचा भारतीय सेना की मदद से उसके पिता की हत्या करवाते हैं। कि अमन स्थापित करने के लिए भेजी गई सेना अपने पूर्वाग्रह आैर अपनों के व्यक्तिगत बदले के लिए निर्दोष लोगों की हत्या कर देती है। यह एक विवाद को जन्म दे सकता है। सुलगते कश्मीर आैर शांत डेनमार्क में कोई समानता नहीं है। बहरहाल हर सृजनकर्ता को अपना संस्करण बनाने की स्वतंत्रता है आैर कृतियों की महानता इसी पर आधारित है कि उनकी विविध व्याख्या की जा सकती है। शाहिद कपूर वे सबसे कमजोर कलाकार होंगे जिन्हें हेमलेट अभिनीत करने का स्वर्ण अवसर मिला है।