चीन में बना मांझा और भारत की गर्दन / जयप्रकाश चौकसे

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चीन में बना मांझा और भारत की गर्दन
प्रकाशन तिथि :18 अगस्त 2016


नई दिल्ली और गाजियाबाद में दो हादसे हुए, जिनमें अबोध बच्चों की गर्दन पतंग उड़ाने में इस्तेमाल मांझे से कटी। पतंग से जुड़ी डोर में मांझा लगाया जाता है, जिसमें पिसा हुआ कांच भी होता है। पूरी डोर मांझे से नहीं सूती जाती, केवल आगे के हिस्से को ही मांझा लगाते हैं, क्योंकि इसी जगह पतंग का पेंच लगता है। पेंच लग जाने के बाद ढील दी जाती है। अर्थात बहुत सी डोर को जाने देते हैं और ऐसे में गोता खाने वाली पतंग को उठाने के िलए डोर खींचते हैं और इसी प्रक्रिया में किसी की पतंग कट जाती है। कुछ गरीब बालक इसी पतंग को 'लूटने' के लिए दौड़ लगाते हैं, परन्तु आपसी खींचतान में प्रायः लूटी हुई पतंग फट जाती है। पतंग लूटने में शामिल हर बच्चा जानता है कि पतंग के फट जाने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं, फिर भी पूरी शिद्दत से पतंग लूटने का खेल खेला जाता है। बच्चों का मन ही पतंग जैसे कल्पना के अनंत अाकाश में उड़ता है।

मकर संक्राति के अवसर पर पूरे देश में जमकर पतंगबाजी होती है, परन्तु गुजरात में सबसे अधिक पतंग मकर संक्राति को उड़ाई जाती है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी पतंग उड़ाई जाती हैं। पतंग के समान त्यौहार यूरोप के कुछ देशों में भी लोकप्रिय है। होली जैसा त्यौहार रंग के बदले टमाटरों के साथ मनाए जाने का दृश्य जोया अख्तर की फिल्म 'जिंदगी न मिलेगी दोबारा' में दिखाया गया था। सभी देशों में मनाए जाने वाले उत्सावों का अध्ययन हमें बताता है कि सभी देशों के अवाम में अनेक चीजें समान हैं, क्योंकि राजनैतिक और सरहदों के परे और बावजूद बहुत कुछ है। बकौल निदा फाज़ली - बेजान लकीरें 'इन्सां को मोहब्बत क्या जाने, दिल मंदिर भी है, मस्जिद भी है, यह बात सियासत क्या जाने' (अधूरी रही फिल्म 'वापसी' का गीत)।

नई दिल्ली और गाजियाबाद में मांजे से गर्दन कटने की खबर में यह भी शामिल था कि यह मांझा चीन में बना हुआ था। चीन ही की फितरत है कि खेल में प्रयुक्त मांझे से गर्दन कट सकती है। हर वर्ष दीपावली के अवसर पर भी चीन में फटाखों का इस्तेमाल होता है। चीन के व्यापारियों और उद्योगपतियों को भारत के तीज-त्यौहार की गहरी जानकारी है। वहां का कोई हुक्मरान ऐसा गलत बयान भी नहीं देता कि तक्षशिला बिहार में स्थित है। हमारे नेता को यह भी ज्ञात नहीं कि किस कस्बे में बिजली है। उनके बयान अदालत में गीता की शपथ लेकर कहे गए 'सत्य' की तरह होते हैं। जाने किस जानकारी के आधार पर हुक्मरान अंग्रेजों ने भारतीय अदालतों में 'गीता की शपथ' का प्रावधान रचा। हमारी अदालतों में तो 'किस्सा तोता-मैना' या 'गुलेबकावली' की शपथ भी रखी जा सकती थी। बाबू देवकीनंदन खत्री की 'चंद्रकांता संतति' व 'भूतनाथ' की शपथ भी ली जा सकती है, क्योंकि सारे हुक्मरान अय्यारों की तरह अवाम को लखलखा सुंघाकर हुकूमत कर रहे हैं। चिंताजनक यह है कि आम आदमी को लखलखा सूंघने की आदत पड़ चुकी है।

कुछ वर्ष पूर्व सलमान खान अॉडी कार के शो रूम का उद्घाटन करने के लिए अहमदाबाद आमंत्रित थे और उसी अवसर पर पारिवारिक मित्र के आग्रह पर वे पतंग उड़ाने गए, जहां श्री नरेंद्र मोदी के साथ उन्होंने पतंग उड़ाई। इस घटना को बहुत तूल दिया गया और राजनैतिक लाभ भी उठाया गया, जबकि असल जिंदगी में सलमान खान को पतंगबाजी, कंचे खेलना, गिल्ली-डंडा खेलना इत्यादि बहुत पसंद है और लंबे अॉउटडोर शूटिंग पर उनके साथ पतंगबाजी का सामान जाता है।

अनेक वर्ष पूर्व फिल्म पूंजी निवेशक गुणवंतलाल शाह दिलीप अभिनीत तुलसीदास बायोपिक बनाना चाहते थे और खाकसार उन्हें अमृतलाल नागर की किताब का सारांश सुनाने जाता था। प्रायः दिलीप कुमार अपनी छत पर पतंगबाजी करते थे और उनका उचका खाकसार ने पकड़ा है। छत पर बने एक कमरे में मांझा सूतने का सामान और रबर के दास्ताने भी रखे थे। पतंगबाजी पर दिलीप साधिकार बोलते थे। उनके पड़ोसी के साथ एक बोतल बीयर की शर्त पर पतंग लड़ाई जाती थी। संभवतः कभी ऐसी ही पतंगबाजी में पड़ोसन सायरा बानो से जाने कैसे पेंच लड़ गया। यह राजनैतिक शगल है पाकिस्तान को प्रमुख शत्रु बताकर चीन को नजरअंदाज करना।