चुनावी कुरुक्षेत्र में रामपुर का महत्व / जयप्रकाश चौकसे

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चुनावी कुरुक्षेत्र में रामपुर का महत्व
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2019


अभिनेत्री जया प्रदा उत्तर प्रदेश के रामपुर संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। वे राजनीति और व्यवसाय क्षेत्र के जबरदस्त जुगाड़ू अमर सिंह की खास मित्र रही हैं और जिस दौर में अमर सिंह राजनीतिक तौर पर तन्हा छोड़ दिए गए थे उस दौर में भी जया प्रदा ने उनका साथ दिया था। अतः उनका त्वरित भारतीय जनता पार्टी में शामिल होना और आनन-फानन में टिकट पाने में भी संभवत जुगाड़ू अमर सिंह का मशविरा रहा होगा। मुलायम सिंह के निकटतम मित्र का इस तरह आस्था बदलना चौका देने वाला माना जाएगा। जया प्रदा का मुकाबला आजम खान से हो रहा है जो कद्‌दावर नेता हैं।

ज्ञातव्य है कि जया प्रदा ने दक्षिण भारत की कुछ फिल्मों में अभिनय करने के बाद ऋषि कपूर के साथ 'सरगम' फिल्म में अभिनय किया था, जिसके गीत 'ढपली वाले ढपली बजा' को नृत्य निर्देशक पीएल राज ने बड़ी खूबी से फिल्माया था। फिल्म में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था। उन दिनों पीएल राज का तकियाकलाम था कि यह दौर है पीएल और एलपी का। उस दौर में श्रीदेवी और जया प्रदा के बीच मुकाबला चल रहा था और 'तोहफा' नामक फिल्म में दोनों ने अभिनय किया था।

जया प्रदा ने फिल्म अभिनय की पायल शिखर पर होते हुए उतार फेंकी थी और हाथ में माइक पकड़कर भाषण देने लगी थीं। गोयाकि उन्होंने शैलेन्द्र रचित 'गाइड' के गीत के विपरीत काम किया था। उस गीत के बोल थे, 'तोड़कर बंधन मैंने बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है आज फिर मरने का इरादा है' आज जया प्रदा के मन में जीतने का इरादा है परंतु आजम खान का 'मरने का कोई इरादा' नहीं है। यह एक रोचक मुकाबला होगा।

जया प्रदा ने अमिताभ बच्चन के साथ भी कुछ फिल्मों में अभिनय किया है और पुराने दिनों की खातिर वे उनसे अनुरोध कर सकती हैं कि वे उनका प्रचार करें परंतु चतुर सुजान अमिताभ बच्चन चुनाव से दूर ही रहेंगे, जिसका अर्थ है यह भी हो सकता है कि वे केंद्र में मिली-जुली सरकार बनने का आंकलन कर रहे हैं। इस चुनाव में कोई लहर दिखाई नहीं दे रही है। मतदाता अनमना है और सारे टोटके आजमाने के बाद वह हताश है कि उसके अच्छे दिन मृग-मरीचिका की तरह है कि जैसे रेगिस्तान में पानी का भ्रम हो रहा है। वादों पर एतबार नहीं रहा है और यादों में खाई रोटी से पेट भरता नहीं।

इस घटियापन के स्वर्ण काल में चुनाव के समुद्र मंथन से अमृत निकलने की उम्मीद नज़र नहीं आती। जहर केवल देवता ही हजम कर पाए हैं। दरअसल, अमृत और जहर के लिए समुद्र मंथन कभी आम आदमी के लिए किया ही नहीं गया। वह तो देवता-दानव के बीच आपसी चुहल थी। आम आदमी को तो भूख ने बड़े प्यार से पाला है। वह बड़ी सख्त जान है, जिसका जीवन गीत है 'देखना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है'।

उत्तर प्रदेश में रामपुर क्षेत्र है परंतु रमेश सिप्पी की 'शोले' में चित्रित रामगढ़ पूरी तरह से काल्पनिक था। बैंगलुरू के निकट एक स्थान पर 'शोले' के रामगढ़ का सेट लगाया गया था। फिल्म की अपार लोकप्रियता के कारण बैंगलुरू स्थित वह जगह एक पर्यटन स्थल में बदल गई है। फिल्म शूटिंग होने के कारण कुछ स्थल लोकप्रिय हो जाते हैं परंतु हादसों के कारण भी पर्यटन केंद्र बन जाते हैं। मुंबई में 26 11 के आतंकवादी स्थल भी पर्यटकों की भीड़ जुटाने लगे। रेस्तरां की दीवार पर लगी गोलियों के निशान के इर्द-गिर्द एक फोटो फ्रेम बना दिया गया। भारी संख्या में पर्यटक उन्हें देखने आने लगे, इस तरह विध्वंस का भी जश्न मनाया जाने लगा। इतिहासकार लैगनर की किताब से ज्ञात होता है कि वर्तमान में जलियांबाग एक पारिवारिक पिकनिक का स्थान है, जबकि उसे शहीदों का स्मारक होना चाहिए था।

दुनिया के किसी भी देश में लोकेशन का किराया फिल्म निर्माता से नहीं लिया जाता। यह जजिया केवल भारत में लिया जाता है। चुनाव प्रधान भारत में इस चुनाव के परिणाम आने के बाद कुछ संसदीय क्षेत्र पर्यटन स्थल बन सकते हैं। यह अफवाह भी है कि तीसरे जेंडर की मुखिया लक्ष्मी को भी चुनाव लड़ने के लिए कहा जा रहा है। उनके चुनाव में आते ही कोई भी विरोधी शर्म की आशंका से चुनाव नहीं लड़ेगा कि वह तीसरे जेंडर से हार गया है। श्याम बेनेगल की एक फिल्म में कुछ इसी तरह का दृश्य भी था। क्या 'लक्ष्मी' को चुनाव टिकट देने का साहस कोई राजनीतिक दल दिखाएगा। उनकी संख्या कम होने के कारण वह कोई वोट बैंक नहीं है परंतु उनसे कोई हारना नहीं चाहेगा। इसलिए भी वे अपराजिता की तरह हैं, उन्हें किसी धार्मिक शहर से भी चुनावी कुरुक्षेत्र में उतारा जा सकता है। चुनाव गणतंत्र व्यवस्था का वह एटम बम है, जिसका आणविक विकिरण लंबे समय तक बना रहता है।