चुनाव परिणाम दिवस नया उत्सव है / जयप्रकाश चौकसे

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चुनाव परिणाम दिवस नया उत्सव है
प्रकाशन तिथि : 11 दिसम्बर 2018

मनोहर श्याम जोशी ने कहा था कि चुनाव परिणाम घोषित होने का दिन उत्सव की तरह मनाया जाता है। टेलीविजन पर नतीजों के दिन सबसे अधिक टीआरपी मिलती है। इस दिन दिखाए विज्ञापन की दरें भी सामान्य दिनों से अधिक होती हैं। सट्टा हमारा अघोषित राष्ट्रीय खेल है। क्रिकेट से अधिक सट्टा चुनाव पर खेला जाता है। एक दौर में चीन सबसे अधिक जुआ खेलने वाला देश माना जाता था। इसलिए मुहावरा बना कि आपके पास तो चीनी व्यक्ति की तरह न्यूनतम अवसर भी नहीं है परंतु आप सट्टा खेलने से बाज नहीं आते हैं। क्रिकेट में बाएं हाथ से गेंदबाजी करने वाले की ऑफ स्पिन गेम को चाइनामैन कहा जाता है। सलीम दुर्रानी इस विधा के विशेषज्ञ माने जाते थे। ज्ञातव्य है कि मनोहर श्याम जोशी को सोप ऑपेरा विधा के अध्ययन के लिए विदेश भेजा गया था। उन्होंने रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित सीरियल 'बुनियाद’ लिखा था 'बुनियाद’ के पात्र इतने लोकप्रिय हुए थे कि 'बड़की’ के विवाह का जश्न पूरे देश में मनाया गया था। 'बुनियाद’ की सफलता के बाद मनोहर श्याम जोशी ने कुछ फिल्में लिखीं जिन्हें सफलता नहीं मिली। मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास 'कुरु कुरु स्वाहा’ आत्म-कथात्मक कृति है। यह उनका जीनियस था कि उन्होंने एक ही व्यक्ति से तीन चरित्र गढ़े-मनोहर चंचल है, श्याम प्रेमल हृदय हैं और जोशी को वेद उपनिषद का ज्ञान है। आजकल भारत में वेद उपनिषद का महत्व बताना लोकप्रिय हो चुका है। एक महान व्यक्ति ने तो यहां तक बयान दिया कि इंग्लैंड के कवि कीट्स व शैली ने वेद उपनिषद पढ़े थे। उस समय तक इन ग्रंथों के अनुवाद केवल जर्मन भाषा में उपलब्ध थे। कीट्स, कोलरिज व शैली की किसी कविता में वेद उपनिषद का कोई प्रभाव नहीं है परंतु हर प्रसिद्ध कृति को वेद-उपनिषद प्रेरित बताना आजकल में फैशन में है।

अंग्रेजी के कवि टीएस एलियट के पिता संस्कृत भाषा और साहित्य के शिक्षक रहे थे। अतः एलियट पर पूर्व का प्रभाव है। यहां तक कि उन्होंने अंग्रेजों की तरह कभी गेन्जीस नहीं लिखते हुए 'गंगा’ ही लिखा है और हिमालय को हमेशा 'हिमवत’ ही लिखा है। ठीक इसी तरह आजकल सभी दवाओं के साथ आयुर्वेद जोड़ा जाता है। जंगल नष्ट कर देने पर जड़ी-बूटी कहां से मिल सकती है। कोलरिज की एक कविता की पहली पंक्ति है- 'इन ज़नाडू डिड कुबला खान लिव’ यकीनन ज़नाडू भारत में नहीं है। बहरहाल, परम ज्ञानी आम आदमी यह जानता है कि सिंहासन पर कोई भी विराजे, उसके कष्ट कम नहीं होने वाले हैं। आम आदमी ने स्वयं को भी यकीन दिला दिया है कि उसे अभाव का अभ्यस्त होना है। हमारे यहां सत्ता की कुर्सी अपने ऊपर बैठने वाले का चरित्र बदल देती है। व्यवस्था कुछ ऐसी है कि हारा हुआ उम्मीदवार भी 'मरे हुए हाथी’ की तरह 9 लाख का होता है। जीते तो करोड़पति, हारे तो लखपति। आम आदमी तो 'हजारी’ भी नहीं हो पाता। इस पूरे खेल में वह चिल्लर है।

चुनावी नतीजों के बाद मंत्री पद के लिए प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो जाती है। जब दिल्ली से आदेश की प्रतीक्षा करते हैं और कुछ उतावले तो दिल्ली पहुंच जाते हैं। इनके लिए कभी दिल्ली दूर नहीं रही। चुनावी मौसम में हवाई जहाज के टिकट मिलना कठिन हो जाता है। नेता रेल द्वारा यात्रा नहीं करता, जबकि रेल का हर डिब्बा भारत का प्रतीक है कि विभिन्न धर्म, जाति और रंग वाले लोग एक साथ यात्रा करते हैं और अपना टिफिन भी शेयर करते हैं। भारत अपने मूल स्वरूप में आज भी रेल के डिब्बे में मौजूद है। यात्रा के प्रारंभ में महसूस होता है कि जगह से अधिक यात्री डिब्बे में आ गए हैं परंतु मात्र 10 किलोमीटर की यात्रा के बाद ही सभी एडजस्ट हो जाते हैं। जाने कैसे चमत्कारिक ढंग से जगह फैल जाती है और सारे यात्री उसमें समा जाते हैं। दीपावली पर खरीदे पटाखे कुछ लोग बचाकर रखते हैं और चुनाव परिणाम के दिन वे काम आते हैं। जितना गुलाल होली पर नहीं उड़ाया जाता उससे अधिक गुलाल विजेता के जुलूस में उड़ाया जाता है। चुनाव ही राजनीति क्षेत्र की असली होली है और चुनाव पूर्व प्रचार द्वारा विरोधी के चेहरे को काला कर दिया जाता है। प्रकाश झा की पहली फिल्म 'दामुल’ में दिखाया गया है कि मतदान में बाहुबली क्या करते हैं। प्रकाश झा की 'अपहरण’ और 'गंगाजल’ भी सामाजिक सोद्देश्यता की फिल्में रहीं परंतु सितारों से जड़ी 'राजनीति’ उनकी पहली घटिया फिल्म है और इसके बाद वे पटरी से ही उतर गए। युवा रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ अभिनीत 'राजनीति’ को पहले सोनिया-राहुल फिल्म की तरह प्रचारित किया गया। यहां तक कि रणबीर कपूर को अंधेरी से चर्चगेट लोकल ट्रेन में यात्रा कराई गई जैसी कुछ माह पूर्व राहुल गांधी कर चुके थे। परंतु फिल्म तो मारिया पुजो के 'गॉडफादर’ से प्रेरित थी।

बहरहाल हम 'हू तू तू’ की तरह चुनाव खेलने में माहिर हो चुके हैं। इस चुनाव को अगले आम चुनाव का पूर्व अभ्यास कहा जा रहा है परंतु हर चुनाव कुरुक्षेत्र के 18 दिनों तक लड़े जाने वाले युद्ध की तरह प्रतिदिन बदली जाने वाली रणनीति की तरह होता है। महाभारत चुनाव समझने की एकमात्र कुंजी है।